Home / Odisha / भारतीय ज्ञान का विशाल भंडार है जनजातीय समाज – गिरीश कुबेर

भारतीय ज्ञान का विशाल भंडार है जनजातीय समाज – गिरीश कुबेर

  • कहा-उनके स्वदेशी ज्ञान का दस्तावेजीकरण करने की आवश्यकता

भुवनेश्वर। पर्यावरण व प्रकृति के प्रति गहरा प्रेम जनजातीय समाज की प्रमुख विशेषता हैं। वे पेड़ों, पहाड़ों और जल स्रोतों की पूजा करते रहे हैं। जनजातीय समाज भारतीय ज्ञान का एक विशाल भंडार हैं और शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और छात्रों के लिए इस स्वदेशी ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करना, उसका अन्वेषण करना और उसका दस्तावेजीकरण करना आवश्यक है। इस तरह के प्रयासों से जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में हमारी समझ बढ़ेगी और आने वाली पीढ़ियों को लाभ होगा। यह बात वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े एक प्रमुख जनजाति और वन अधिकार कार्यकर्ता गिरीश कुबेर ने कहीं।

वह कोरापुट स्थित ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय में एक भारत श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम के तहत भारतीय ज्ञान परंपरा: जनजातीय समाज की देन विषय पर अपने विशेष व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने आगे कहा कि आजकल हर कोई खुशी के सूचकांक के बारे में बात कर रहा है, लेकिन कोई भी जनजातीय समाज के गांवों और दैनिक जीवन में उनकी खुशी पर विचार नहीं कर रहा है। जनजातीय लोग बहुत ही खुशहाल जीवन जीते हैं। उनकी संस्कृति, संगीत, लोकगीत, चित्रकला और परंपराएँ सभी प्रकृति के इर्द-गिर्द घूमती हैं और कृतज्ञता व्यक्त करती हैं। जबकि यह हमेशा अकादमिक अध्ययनों का हिस्सा रहा है। हमें यह भी पता लगाना चाहिए कि उन्हें किससे खुशी व प्रसन्नता मिलती है। उनके सामुदायिक जीवन पर हमें ध्यान देना चाहिए। जनजातीय समाज समुदाय पर जोर देता है, जहां लोग खुशी और दुख दोनों को एक साथ साझा करते हैं। चाहे वह त्योहार हो या शादी, उनकी परंपराएं समुदाय से बहुत जुड़ी हुई हैं।

उन्होंने कहा कि बाजरा खाना जनजातीय समाज की जीवनशैली है। वे सदियों से इसकी खेती और सेवन करते आ रहे हैं और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।

जनजातीय समाज के लोगों के पास जो ज्ञान का विशाल भंडार है, उस पर अधिक शोध और अध्ययन किए जाने चाहिए, चाहे वह खेती, पर्यावरण, प्रकृति या उनकी कानूनी व्यवस्था से संबंधित हो, सभी विषय पर शोध व दस्तावेजीकरण होना चाहिए।

ओडिशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर चक्रधर त्रिपाठी ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इस बात पर जोर दिया कि यद्यपि भारत की राष्ट्रीयता को तोड़ने वाली ताकतें सक्रिय हैं और पश्चिमी शिक्षा ने हमारे देश की बौद्धिकता और शिक्षा पर गहरा असर छोड़ा है, लेकिन स्वदेशी ज्ञान के अपने विशाल भंडार के साथ जनजातीय समाज भारत की रीढ़ है। उन्होंने बताया कि ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय का उद्देश्य विश्वविद्यालय में स्थानीय छात्रों के नामांकन के प्रतिशत को बढ़ाना और वर्तमान स्थिति में बदलाव लाना है जहां कोरापुट क्षेत्र में जनजातीय महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है। उन्होंने जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय के संकाय और छात्रों को जंगलों का दौरा करना चाहिए और जनजातीय संस्कृति से परिचित होना चाहिए। विभिन्न शैक्षणिक विषयों को जनजातीय पत्रकारिता, जनजातीय अर्थशास्त्र आदि जैसे आदिवासी अध्ययनों पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

एक भारत श्रेष्ठ भारत के नोडल अधिकारी डॉ सौरव गुप्ता ने स्वागत भाषण दिया और अतिथियों का स्वागत किया तथा एक भारत श्रेष्ठ भारत और भारतीय ज्ञान प्रणाली की भावना के बारे में जानकारी दी।

Share this news

About desk

Check Also

ओडिशा में अब हर महीने मिलेगा राशन चावल

ओडिशा के खाद्य मंत्री ने की घोषणा नए साल शुरू होगा वितरण भुवनेश्वर। नए साल …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *