-
महाप्रभु श्री जगन्नाथ रसगुल्ला खिलाकर लक्ष्मी माता को मनाया
-
श्रीमंदिर में रत्न वेदी पर महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन शुरू
पुरी। पुरी महाधाम में शुक्रवार देर रात को निलाद्रि बिजे अनुष्ठान के साथ ही महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा का नौ दिवसीय वार्षिक रथयात्रा का भव्य समापन हुआ। निलाद्रि बिजे अनुष्ठान में महाप्रभु श्री जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा अपने निवास स्थान पर लौटते हैं। इस अनुष्ठान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भगवान जगन्नाथ और उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी के बीच प्रेम और स्नेह का चित्रण है। संध्या धूप के बाद निलाद्रि बिजे अनुष्ठान की प्रक्रिया शुरू हुई। तीनों रथों में चारमालाएं लगाई गईं।
इस बीच, मुदिरथ सेवकों ने भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को उनके संबंधित रथों पर पुष्पांजलि अर्पित की और डोरालागी अनुष्ठान किया। कहलिया सेवायतों ने बिगुल बजाया, जिसके बाद भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों की पहांडी शुरू हुई।
सबसे पहले, महाजन सेवायत राम, कृष्ण को तलध्वज से और मदन मोहन को नंदीघोष से ‘गोटी पहांडी’ में श्रीमंदिर परिसर में दक्षिणी घर में ले गए। बाद में भगवान सुदर्शन को देवी सुभद्रा के रथ दर्पदलन से मंदिर ले जाया गया।
भगवान सुदर्शन की पहांडी के बाद भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को रत्न बेदी पर ले जाया गया और अंत में ब्रह्मांड के स्वामी भगवान जगन्नाथ की पहांडी हुई। इसके बाद भेट मंडप में डंबरू पर भगवान की स्थापना की गई। यह सेवा महाजन सेवकों द्वारा की जाती है। फिर पतिमहापात्र सेवकों ने देवताओं को चंदन का लेप, आलती, ढांडी प्रसाद, दुर्वाक्षत, बंदपणा, दहीपति, घास, बिदिया चढ़ाया।
इसके बाद भितरछा महापात्र ने देवी लक्ष्मी को एक पवित्र दीपक अर्पित किया, लेकिन भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों के वार्षिक प्रवास के दौरान श्रीमंदिर में अकेली रह गईं देवी लक्ष्मी ने मंदिर के मुख्य द्वार सिंहद्वार को बंद करने का निर्देश दिया। हालांकि, भगवान जगन्नाथ सिंहद्वार की ओर बढ़े और वह खुल गया।
इसके बाद, भगवान जगन्नाथ को बाइसी पहचा, आनंद बाजार, भीतरा बेधा और सात पहचा के माध्यम से जगमोहन ले जाया गया।
इस दौरान देवी लक्ष्मी, जो पहले से ही परेशान थीं, ने जय-विजया द्वार बंद कर दिया। वह भगवान जगन्नाथ से नाराज थीं, क्योंकि उन्होंने वार्षिक प्रवास रथयात्रा के दौरान उन्हें अपने साथ नहीं ले गये थे।
तब अनुष्ठान की सुंदरता सामने आई। लक्ष्मी की ओर से देवदासी (महिला सेवक) और भगवान जगन्नाथ की ओर से बड़ग्राही दैत्य और अन्य दैतापतियों के बीच शब्दों का आदान-प्रदान हुआ।
बाद में भगवान जगन्नाथ ने देवी लक्ष्मी को आश्वासन दिया कि वे इसे फिर से नहीं दोहराएंगे।
इसके बाद देवी लक्ष्मी ने उनके लिए जय-विजय द्वार खोलने का निर्देश दिया। अंत में भण्डार गृह के पास भगवान जगन्नाथ ने उत्तर की ओर देखा और इसी तरह देवी लक्ष्मी ने दक्षिण की ओर देखा और दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा। भित्तरछा सेवकों ने विवाह की गांठ खोली और बंडपणा अर्पित किया। अपनी अर्धांगिनी को प्रसन्न करने के लिए भगवान जगन्नाथ ने उन्हें रसगुल्ले अर्पित किए।
इसके बाद भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों को रत्न वेदी पर विराजमान किया गया और दैत और पतिमहापात्र सेवकों ने चंदन का लेप अर्पित किया।
कोथासुंसिया सेवकों द्वारा रत्नजड़ित वेदी से चारमाला को हटाने के साथ ही निलाद्रि बिजे अनुष्ठान समाप्त हो गया और नौ दिनों तक चलने वाले वार्षिक प्रवास का समापन हो गया।
रत्न सिंहासन पर भगवान के दर्शन शुरू
पुरी के श्रीमंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के रत्न सिंहासन पर दर्शन शुरू हो गये हैं। भगवान अपने मौसी के यहां से बाहुड़ा यात्रा में लौटने के बाद सोना वेश व अधरपणा नीति के अगले दिन मंदिर में प्रवेश करते हैं। निलाद्री नाथ के निलाद्री में प्रवेश करने के कारण इसे निलाद्री बिजे कहा जाता है।
रथयात्रा का यह अंतिम अनुष्ठान
रथयात्रा का यह अंतिम अनुष्ठान है और आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को होता है। उन्हें उनके संबंधित रथों से पहंडी के जरिये में मुख्य मंदिर के अंदर ले जाया जाता है।