नई दिल्ली. बुद्ध जयंती के पावन अवसर पर विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय कार्याध्यक्ष एडवोकेट श्री आलोक कुमार ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि तथागत बुद्ध की जयंती उनके जीवन और दर्शन पर विचार करने का सुअवसर है। बुद्ध जयंती के दिन मानवमात्र की समता के भगवान के सन्देश को दुबारा स्मरण करना चाहिए। उनके लिए कोई छोटा, पतित या अस्पृश्य नहीं था। उनके जीवन की कुछ घटनाएं बड़ी उद्बोधक है। वह स्वयं शाक्यवंश के थे। एक बार शाक्यवंश के ही कुछ बड़े लोग उनके पास दीक्षा लेने के लिए आये। उसी समय नाई समाज का उपालि भी दीक्षा लेने आया। बुद्ध ने सबसे बात करने के बाद निर्णय दिया कि उपालि को आज दीक्षा दूंगा बाकि लोगों को कल दूंगा और इस तरह उपालि को शाक्यवंश के उन लोगों से वरिष्ठ कर दिया।
श्री आलोक कुमार ने कहा कि एक सफाई कर्मचारी सुणीत था। बुद्ध की यात्रा के समय वो दीवार के साथ रूककर खड़ा हो गया। बुद्ध ने उसको जाकर निमंत्रित किया, आओ सत्यमार्ग पर, आओ बुद्ध के मार्ग पर। उन्होंने अछूत कहे जाने वाले सोपाक और छोटी जाति के कहे जाने वाले कुप्पत-पुर को भी प्रेमपूर्वक दीक्षा दी। इसलिए उनकी जयंती के दिन सब मनुष्यों की समानता का उपदेश अपने हृदय में धारण करके जाति या किसी भी आधार पर छोटे बड़े के भाव को हमे अपने से दूर करना चाहिए।
उनके जीवन में यह प्रश्न भी उठा कि महिलाओं को धम्म में शामिल किया जाये या नहीं। उनके सदैव साथ रहने वाले आनंद ने भी इस बहस में बहुत आग्रह से कहा कि महिलाओं को पुरुषों के सामान अवसर मिलना चाहिए। बुद्ध ने इस मत को स्वीकार कर करके महाप्रजापति गौतमी और अन्य लोगों को संघ में शामिल कर लिया। महिलाओं की समानता का इससे बड़ा उदहारण और कोई नही हो सकता।
उन्होंने कहा कि तथागत बुद्ध के लिए कोई पतित नही था। संत नही हो सके ऐसा कोई व्यक्ति नही था। आम्रपाली नामक वेश्या ने उन्हें अपने घर बुलाया। उनके शिष्यों ने आपत्ति की। पर बुद्ध उसका निमंत्रण स्वीकार करके उसके घर गये; भिक्षा ग्रहण की और उसको मुक्त किया। अंगुलिमाल तो एक दुर्दान्त डाकू था। वह बुद्ध के मार्ग पर आया। बुद्ध ने उसको प्रवेश भी दिया और भिक्खु भी बनाया। बुद्ध ने यह साबित कर दिया कि प्रत्येक व्यक्ति का भूत कैसा भी रहा हो, पर उसका एक भविष्य है।
विहिप कार्याध्यक्ष के अनुसार बुद्ध ने यह भी कहा था कि तुमको मुक्त करने कोई और नहीं आएगा। अप्पो देवो भव। बुद्ध ने कभी किसी को मुक्त करने का आश्वासन नहीं दिया। उन्होंने कहा वह मार्गदर्शक हैं, मोक्षदाता नहीं है। अपना विकास स्वयं करना है। अपना गुण, संवर्धन अपने आप करना है। अपने पुरुषार्थ से ईश्वर को प्राप्त करना है। उन्होंने कर्मकाण्डों का विरोध किया। सरल, सहज उस समय की भाषा में अपने धर्म को व्यक्त कर दिया। उन्होंने अपने धम्म में अपने लिए कोई विशेष स्थान भी नहीं रखा।
उन्होंने कहा कि मैं समझता हूँ कि बुद्ध के उपदेश आज भी उतने ही सत्य और सामायिक हैं जितने उस समय, जबकि वह दिए गये थे। इसलिए विश्व हिन्दू परिषद उनकी जयन्ती पर तथागत बुद्ध को स्मरण करती है। उनके उपदेशों का सम्मान करती है और यह संकल्प लेती है कि समानता का, स्त्रियों को बराबरी का सहभाग देने का और मनुष्यों के कल्याण के लिए उसके स्वयं के पुरुषार्थ के सन्देश को वह सम्पूर्ण देश में फैलाएगी जिससे भारत दोबारा से सामर्थ्यशाली और बलशाली होकर विश्व गुरु की अपनी भूमिका निभा सके।