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गठबंधन के चक्रव्यूह में फंसी भाजपा-बीजद, निर्णय पर शीर्ष नेतृत्व उहाफोह में ओडिशा में गठबंधन MODI-NAVEEN BJP-BJD ALLIANCE बीजद-भाजपा गठबंधन तय, 12 को घोषणा संभव

सात माह पहले रची गई ओडिशा में गठबंधन की पटकथा

  • केंद्र नेतृत्व कर चुका है सबकुछ फाइनल, प्रदेश नेतृत्व दुविधा में

  • महज घोषणा ही है बाकी

हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर।

भारतीय जतना पार्टी (भाजपा) और बीजू जनता दल (बीजद) के बीच ओडिशा में  गठबंधन की पटकथा लगभग सात माह पहले की रच दी गई थी। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व सीट बंटवारे को भी अंतिम रूप दे चुका है, जबकि प्रदेश ईकाई अब भी दुविधा में है।

शुक्रवार को नई दिल्ली से आने के बाद ओडिशा भाजपा अध्यक्ष मनमोहन सामल ने कहा कि गठबंधन पर कोई चर्चा नहीं हुई है। सामल ने आज दोहराया कि उनकी पार्टी ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव अकेले लड़ेगी। दिल्ली की बैठकों पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इस बात पर चर्चा हुई कि पार्टी राज्य और केंद्र में कैसे सरकार बनाएगी। इससे पहले कल दिन में भाजपा के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज हरिचंदन ने भी कहा था कि गठबंधन के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

हरिचंदन ने कहा था कि प्रदेश अध्यक्ष और पार्टी के प्रमुख नेताओं ने केंद्रीय नेतृत्व से कहा है कि अगर हम अकेले चुनाव लड़ेंगे तो अच्छे नतीजे आएंगे। इसलिए, भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के निर्णय के अनुसार कार्य करेगी।

लेकिन सूत्रों की मानें, तो ओडिशा में भाजपा और बीजद के बीच गठबंधन होना तय है, क्योंकि इस पटकथा सात महीने पहले ही रच दी गई थी, जिसकी जानकारी बीजद के कुछ शीर्ष नेताओं और भाजपा के कुछ शीर्ष नेताओं को ही थी। कहा जा रहा है कि यही कारण है कि बीते सात महीने के दौरान किसी भी भाजपा के वरिष्ठ नेता ने बीजद मुखिया तथा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के खिलाफ कोई कड़ा बयान नहीं दिया है। शायद यही कारण है कि जाजपुर के हालिया दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी नवीन पटनायक सरकार को टार्गेट नहीं किया। बीजद सरकार के खिलाफ उन्होंने एक भी बयान नहीं दिया। यहां तक कि वह मंच पर मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के साथ-साथ हंस-हंसकर बातें कर रहे थे। इस दौरान नवीन पटनायक ने भी मोदी और केंद्र सरकार के कार्यों की जमकर तारीफ की थी।

इन दोनों नेताओं के सॉफ्ट रूख से ओडिशा में गठबंधन की अटकलों को और बल मिला बात आगे बढ़ी, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के साझा बयान नहीं आने के कारण तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। हालांकि सूत्रों का कहना है कि भाजपा के चाणक्य तथा गृहमंत्री अमित शाह के साथ बीजद के नेताओं ने सीट बंटवारे को अंतिम रूप से दिया है। सीट बंटवारे को लेकर कहीं से भी कोई दुविधा की स्थिति नहीं रही है। बस घोषणा ही बाकी है, लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल और पृथ्वीराज हरिचंदन के बयानों ने संभावित गठबंधन की स्थिति को और दिलस्चप बना दिया है, लेकिन एक बात यह भी तय है कि बीजू जनता दल गठबंधन को लेकर आश्वस्त है, क्योंकि वह जनता है कि इसकी पटकथा सात महीने पहले ही रची गई थी और इसकी भनक भाजपा प्रदेश नेतृत्व को नहीं थी और अब भी वह दुविधा में है, क्योंकि सबकुछ भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व के साथ तय हो रहा है।

शायद ही कारण है कि बीजद के दो नेताओं वीके पांडियन और प्रणव प्रकाश दास की गुरुवार शाम को नई दिल्ली यात्रा ने गठबंधन की अटकलों को बल दिया था। हालांकि, दोनों नेता गठबंधन को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं, लेकिन बीजद की महिला शाखा की अध्यक्ष स्नेहांगिनी छुरिया ने कहा कि वह इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगी, थोड़ा इंतजार कीजिए। कहा जा रहा है कि दोनों नेताओं के दिल्ली दौरे के दौरान गठबंधन पर सकारात्मक बात नहीं होती तो छुरिया ने अपने बयान में इंतजार शब्द प्रयोग नहीं किया होता है। हालांकि मामला केंद्रीय नेतृत्वों के बीच का है, इसलिए घोषणा करने को लेकर थोड़ा वक्त लग सकता है।

सीट बंटवारे पर स्थिति

वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि बीजू जनता दल और भाजपा के सीट बंटवारे को लेकर जो सहमति बनती नजर आ रही है, उसमें भाजपा को लोकसभा के लिए 13 से 16 सीटें मिल सकती हैं। विधानसभा में भाजपा की मौजूदा सीटों के साथ-साथ बीजद उन सीटों पर भी समर्थन देने के लिए तैयार है, जहां कांग्रेस से हार मिली थी। इस स्थिति में भाजपा के खाते में 40 से 45 सीटें जा सकती हैं, जबकि बीजद को सिर्फ बहुमत तक ही विधानसभा की सीटें चाहिए, जो अब के चुनावों में जीतती आ रही है।

वैष्णव का समर्थन था रणनीति का हिस्सा

सूत्रों ने कहा कि सात माह पहले ही गठबंधन की पटकथा रची गई थी। अगर ऐसा नहीं होता तो अचानक राज्यसभा चुनाव में अश्विनी वैष्णव एक बार फिर बीजद के समर्थन से ओडिशा से राज्यसभा नहीं जा पाते। शायद यही कारण था कि लोकसभा चुनाव बालेश्वर और कटक से लड़ने को लेकर किए गए पत्रकारों के सवालों के जवाब अश्विनी वैष्णव ने कभी भी खुलकर नहीं दिया था।

प्रदेश भाजपा इकाई की सोच  

भाजपा की ओडिशा इकाई का मनना है कि चुनाव में अकेले जाना ही बेहतर होगा, क्योंकि उनका तर्क है कि गठबंधन से कांग्रेस को विपक्ष के रूप में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। बीजद से हाथ न मिलाने से पार्टी को भविष्य में ओडिशा में सरकार बनाने का मौका मिल सकता है।

भाजपा की केंद्रीय इकाई की नजर 400 पर

हालांकि भाजपा की प्रदेश ईकाई की सोच के विपरीत केंद्रीय नेतृत्व का अपने पूर्ववर्ती एनडीए साझेदार के साथ औपचारिक गठबंधन का मतलब पूर्वी राज्य में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय खिलाड़ी हासिल करना है। ओडिशा में भाजपा दो दशकों से पैर जमाने की कोशिश कर रही है, लेकिन अब तक के नतीजे सामने हैं। यहां मतदाताओं के वोट देने का पैटर्न भी बड़ा विचित्र है, क्योंकि एक ही मतदाता लोकसभा के लिए भाजपा को, विधानसभा और त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में बीजद का चयन करती है। चूंकी भाजपा ने लोकसभा में 400 से अधिक सीटें हासिल करने लक्ष्य रखा, इसलिए गठबंधन से ओडिशा में खुद के साथ-साथ समर्थन के जरिए सभी सीटें हासिल की जा सकती हैं। इसके साथ ही एनडीए की छत्रछाया में एक और राज्य होने से भाजपा को राज्यसभा में सभी सीटों का अतिरिक्त फायदा होगा।

भाजपा की नजर में बीजद को ये फायदा

भाजपा कोर कमेटी के एक सूत्र ने बताया कि गठबंधन की पेशकश बीजद की ओर से आई है, क्योंकि वह सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है और नवीन पटनायक की लोकप्रियता 2014 जैसी नहीं है। मोदी के दबाव से न केवल बीजद अपनी राजनीतिक जमीन की रक्षा करेगी, बल्कि पटनायक को अपने उत्तराधिकार की योजना तय करने के लिए पांच साल का और कार्यकाल मिलेगा।

भाजपा का साथ क्यों चाहते हैं नवीन

भाजपा के एक अंदरूनी सूत्र ने बताया कि पटनायक की पार्टी को तीन कारकों के कारण भाजपा से हाथ मिलाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। सूत्र ने कहा कि नवीन की उम्र बढ़ रही है और जमीन पर सत्ता विरोधी लहर महसूस की जा रही है। गठबंधन के साथ, बीजद को केंद्रीय प्रोत्साहन और धन की एक नई गति मिलेगी। इससे बीजद को ओडिशा के दृष्टिकोण को साकार करने और सत्ता में वापसी के लिए सत्ता विरोधी लहर से लड़ने में मदद मिलेगी। त्रिकोणीय लड़ाई की स्थिति में बीजद को तेलंगाना में बीआरएस की तरह नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस ने यह कहकर मतदाताओं को बरगलाया कि भाजपा और बीआरएस के बीच चुनाव जीतने की समझ है। भाजपा के लिए समय आ गया है कि या तो नवीन पर हमला करके विपक्ष की भूमिका निभाए, या अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिए एकजुट हो जाए। भाजपा को बीजद से गठबंधन के लागत-लाभ विश्लेषण पर विचार करना होगा। भाजपा के विपक्ष में जगह खोने से कांग्रेस को फायदा हो सकता है। इसके विपरीत, बीजद की सीटें कम करने और बीजेपी की संख्या 40 तक बढ़ाने का मौका है। तीसरा कारक यह बताया गया कि पांडियन भाजपा के साथ जुड़ने के इच्छुक हैं। पांडियन के लिए भाजपा के साथ गठबंधन करना ज्यादा फायदेमंद होगा। इससे न केवल उन्हें मंत्री के रूप में राजनीतिक वैधता मिलेगी, बल्कि सरकार को स्थिरता भी मिलेगी। संख्या कम होने पर पटनायक जद (यू) की तरह कमजोर होंगे। ऐसे में भाजपा पार्टी में फूट डाल सकती है। यही कारण है कि गठबंधन पांडियन और पटनायक के लिए अच्छा है।

इस खबर को भी पढ़ेंः-भाजपा-बीजद के संभावित गठबंधन में टिकट बंटवारे पर सस्पेंस

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