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कहा- अपनों का हित सर्वोपरि होना चाहिए
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भारत की एकता ही विविधता का केंद्र
भुवनेश्वर। भारतीय परंपरा सब लागू होती है और इसे कोई तोड़ नहीं सकता है। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहीं। वह ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित सोआ विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में देशभर से पधारे 300 से अधिक साहित्यकारों को संबोधित कर रहे थे।
यहां अखिल भारतीय साहित्यिक परिषद के सर्वभाषा साहित्यिक सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत की एकता की ताकत को लेकर कहा कि भारतीय परंपरा सभी पर लागू होती है और इसे कोई तोड़ नहीं सकता है। भारत की एकता ही विविधता का केंद्र है। भागवत ने कहा कि भारत और दुनिया में हित की परिकल्पना अलग-अलग होती है। दुनिया में अपने हित की बात होती है, जबकि भारत में अपनों की हित सर्वोपरि है। इसके लिए भागवत ने मां-बेटे के रिश्ते का उदाहरण भी दिया, जिसमें बेटे द्वारा सभी खाना खाने बाद भूखी मां खुश और सुखी महसूस करती है। मां कभी यह नहीं सोचती है कि वह भूखी है, वह अपने बेटे की हित को सर्वोपरि मानती है। ठीक ऐसे ही कुछ भारतीय परंपरा है।
भागतव ने कहा कि दुनिया ने अपने हित की परिकल्पना के तहत भारत के लोगों को विभिन्न समुदायों में बांटना शुरू किया और धर्म आधारित विभेद को पैदा किया, लेकिन आज भी भारत की अखंडता कायम है और हम अपनों के हित को सर्वोपरि मानते हैं। इसलिए सभी को खुद के हित की जगह अपनों, समाज और देश की हित बात करनी चाहिए।
दुनिया की खुशी की चाबी भारत के पास
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज दुनिया की खुशी की चाबी भारत के पास है। इसलिए पुरी दुनिया भारत की तरफ नजर टिकाई हुई है। अतः विश्व की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत को मजबूत होना चाहिए, एकजुट होना चाहिए और इसमें साहित्य की भूमिका अहम है।
उन्होंने कहा कि सुख, समृद्ध और शांति से दुनिया को चलाने की शक्ति भारत के पास और इसपर भारत को खुद चलकर नेतृत्व करना होगा। पूरी दुनिया की इस पर नजर है। दुनिया चाहती है कि भारत खुद सशक्त होकर आगे आए।
केवल हवा होने से काम नहीं होता
देशभर से पधारे साहित्यकारों को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि केवल हवा होने से काम नहीं होता। इसके लिए सबको एकजुट करना होगा और एकजुट करने के लिए प्रयास करना होगा। तभी जाकर देश का विकास होगा। मौके पर मौजूद लोगों को समझाने के लिए मोहन भागवत ने ओडिशा में आने वाले चक्रवात का सहारा लिया तथा प्रसंगवश इससे संबंधित कई घटनाओं का जिक्र किया।
दुनिया को चलाने की ताकत भारत में
साहित्याकारों को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि सुख, समृद्धि और शांति से दुनिया को चलाने की ताकत भारत में है। इसके लिए भारत को खुद ही आगे बढ़कर दुनिया का नेतृत्व लेना होगा। हमें पूरे देश को जगाना होगा और इस जागरण में साहित्य का बड़ा योगदान होगा। क्योंकि हमारा देश विविध भाषाओं वाला देश है और विविधता को जोड़ने का काम साहित्य परिषद कर रहा है।