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जमीन को लेकर ब्राह्मण नियोग और अन्य नियोगों के बीच विवाद
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ब्राह्मण नियोग ने दी अनिश्चितकालीन अनुष्ठान ठप करने की धमकी
भुवनेश्वर। ओडिशा की राजधानी स्थित भगवान लिंगराज मंदिर में विवाद के कारण अनुष्ठान नीति एक बार फिर बाधित हो गई है। इस बार बुधवार को अनुष्ठान रोकने के पीछे लिंगराज मंदिर में ब्राह्मण नियोग और अन्य नियोगों के बीच विवाद बताया जा रहा है। यह झगड़ा भगवान लिंगराज की विवादित जमीन को लेकर विवाद का नतीजा बताया गया है।
राज्य के उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, भगवान लिंगराज की बंजर भूमि, जिसका उपयोग अब तक पूजा पंडा नियोग और ब्राह्मण नियोग के सेवकों द्वारा किया जाता था, धीरे-धीरे मंदिर को वापस मिल रही है। वहीं, उन विवादित जमीनों पर बाडू नियोग द्वारा बनाई जा रही दुकानों को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए कोर्ट से हरी झंडी मिल गई है।
हालांकि, अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए ब्राह्मण और पूजा पंडा नियोग ने बाद में अदालत में एक याचिका दायर की और बाडू नियोग द्वारा दुकानों के निर्माण पर स्थगन आदेश प्राप्त किया। इससे बाड़ू नियोग नाराज चल रहा है।
इस जमीन के मामले को एक साजिश करार देते हुए ब्राह्मण नियोग और पूजा पंडा नियोग ने कथित तौर पर विरोध तौर पर मंदिर के अनुष्ठानों को रोक दिया है। इस कारण बुधवार को मंगला आलती के बाद भगवान लिंगराज के अनुष्ठान स्थगित कर दिए गए हैं।
ब्राह्मण नियोग के सचिव बिरंचि नारायण पति ने कहा कि बंदोबस्ती आयुक्त की चुप्पी के कारण उच्च न्यायालय ने यह एकतरफा आदेश जारी किया है। यदि बंदोबस्ती विभाग उच्च न्यायालय के आदेश को सही मानता है, तो फिर सेवतों से बंजर जमीनें क्यों छीन ली गईं। उन्होंने कहा कि ये जमीनें हमें तत्कालीन राजा द्वारा दी गईं थीं। इसलिए इसे हमें वापस कर दिया जाना चाहिए अन्यथा हम भगवान लिंगराज के अनुष्ठानों को अनिश्चित काल के लिए रोक देंगे।
हालांकि, बाड़ू नियोग ने साजिश के आरोपों का खंडन करते हुए दावा किया है कि वे भगवान के पहले सेवायत हैं और राजा ने वास्तव में उन्हें जमीन दी थी, ना कि ब्राह्मण नियोग को।
बाड़ू नियोग के सचिव कमलाकांत पूजापंडा ने कहा कि किसी को भी भगवान लिंगराज के अनुष्ठानों को रोकने का अधिकार नहीं है। ब्राह्मण नियोग को राजा द्वारा भगवान की सेवा करने के लिए संपत्ति दी गई थी। हम उन सेवतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहते हैं, जिन्होंने मंदिर में अनुष्ठान बंद कर दिया है।
पिछले अदालत के आदेश का हवाला देते हुए पूजापंडा ने कहा कि न्यायाधीश एमएम दास ने फैसला सुनाया था कि जो सेवायत मंदिर में अपनी सेवा नहीं देते हैं, उन्हें हमेशा के लिए मंदिर छोड़ने के लिए कहा जाना चाहिए और भगवान लिंगराज की उनके द्वारा उपयोग की गई संपत्ति को भी जब्त कर लिया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि बंदोबस्ती आयुक्त द्वारा इस आदेश को लागू करने का यही सही समय है।
उन्होंने कहा कि केशरी वंश के तत्कालीन राजाओं ने हमें मंदिर में आनंद लेने और सेवा करने के लिए कई स्थानों पर जमीनें दी थीं, लेकिन ब्राह्मण नियोग ईर्ष्यालु हो गए हैं और इसीलिए ये सभी आरोप लगाए गए हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि यह पहली बार नहीं है कि भगवान लिंगराज के अनुष्ठानों को सेवायतों द्वारा निलंबित कर दिया गया है। कई नियोगों के बीच विवाद कई वर्षों से चल रहा है, जिससे भक्तों की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं।