Home / Odisha / चंद्रयान-3 की सफलता में ओडिशा के पांच वैज्ञानिकों का भी योगदान

चंद्रयान-3 की सफलता में ओडिशा के पांच वैज्ञानिकों का भी योगदान

  • चांद पर सफल लैंडिंग के बाद झूम उठे ओड़िया वैज्ञानिकों के गांव के लोग

  • केंद्रापड़ा के सुशील कुमार नायक सुनिश्चित कर रहे थे सुरक्षित लैंडिंग

  • दुनियाभर से युवा वैज्ञानिक को भी मिल रही है प्रशंसा

भुवनेश्वर। चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को सफलता पूर्वक चांद पर पहुंचाने में ओडिशा के पांच वैज्ञानिकों का भी योगदान रहा है। चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम के चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर कदम रखने के साथ ही बुधवार को इस टीम में शामिल ओड़िया वैज्ञानिकों के गांव खुशी से झूम उठे। लोगों ने एक-दूसरे को बधाइयां दी तथा गांव और राज्य का नाम रौशन करने के लिए वैज्ञानिक परिवार को भी देश-विदेश से बधाइयां मिलने लगी हैं।

वैज्ञानिकों की टीम शामिल केंद्रापड़ा के सुशील कुमार नायक सुरक्षित लैंडिंग सुनिश्चित कर रह थे। इनके पिता को खुशी का ठिकाना नहीं हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चंद्रयान-3 की सफलता का पूरा श्रेय मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों को दिया है। इसे संभव बनाने वाली वैज्ञानिकों की टीम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए ओड़िया वैज्ञानिक सुशील कुमार नायक को देश के विभिन्न हिस्सों और दुनिया से भी प्रशंसा मिल रही है।

नायक केंद्रापड़ा जिले के पट्टामुंडई ब्लॉक के बलिया गांव के निवासी हैं। नायक के गांव में उनके परिवार के सदस्य गर्व महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने जिले और राज्य को भी गौरवान्वित किया है। ऐतिहासिक उपलब्धि के नायक के पिता मुरलीधर नायक ने खुशी का इजहार किया है। एक निजी चैनल को दिए गए साक्षात्कार में मुरलीधर नायक ने अपने वैज्ञानिक बेटे के बचपन के बारे में बताया कि मैं पारादीप बंदरगाह पर तैनात था। इसलिए मैंने उसका दाखिला पारादीप पोर्ट ट्रस्ट हाई स्कूल में कराया। उन्होंने 2000 में 87 प्रतिशत अंक के साथ मैट्रिक पास किया। ओयूएटी के बेसिक साइंस कॉलेज से पास होने के बाद, उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय संस्थान से अपनी डिग्री हासिल की। उनकी पहली पोस्टिंग सत्यम कंप्यूटर में हुई थी। हालांकि, उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और आईटीसी टूल्स प्लाजा में दो महीने का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने सफलतापूर्वक एक साक्षात्कार पास किया और इसरो में शामिल हो गए। वह 2009 से इसरो में काम कर रहे हैं। वह फ्लाइंग जोन में एक अधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जहां तक मेरी जानकारी है, उनका काम चंद्रयान-3 की उचित और सुरक्षित लॉन्चिंग सुनिश्चित करना था। उलटी गिनती के दौरान चंद्रयान-3 उनकी निगरानी में था। उन्होंने कहा कि माता-पिता के रूप में हमने उसे सिखाया कि जब देश की सेवा करने का अवसर आए तो संकोच न करें।

मैं अच्छी तरह जानता हूं कि ‘नो पेन, नो गेन’।

गंजाम से दो व ढेंकानाल से एक वैज्ञानिक

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के दो वैज्ञानिक गंजाम जिले के ब्रह्मपुर के देवाशीष महापात्र और ढेंकानाल जिले के कामाख्यानगर उप-मंडल के अंतर्गत गोविंदपुर गांव के मूल निवासी शरत कुमार दास हैं। हालांकि दास अनुगूल जिले के तालचेर क्षेत्र में रह रहे हैं। देवाशीष के पिता ने अपनी और परिवार के अन्य सदस्यों की खुशी का वर्णन करते हुए कहा कि हम चंद्रयान-3 की सफलता से बहुत खुश हैं। हम मिशन के बारे में खुद को अपडेट रखने के लिए रात भर बैठे रहे। मेरा बेटा पीएसएलवी के फायरिंग सेक्शन में कार्यरत एक वरिष्ठ वैज्ञानिक है, 2006 से इसरो के साथ काम कर रहा है। वह बचपन से ही शोध-उन्मुख रहा है। अपने दोस्तों में वह विज्ञान में सबसे अधिक अंक प्राप्त कर रहा था। सारंग इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक और जादवपुर यूनिवर्सिटी से एमटेक करने के बाद उन्होंने गेट परीक्षा में सफलता हासिल की। फिर उन्हें 2006 में इसरो के लिए चुना गया।

देवाशीष की मां ने कहा कि जब विक्रम लैंडर ने चांद पर कदम रखा तो उन्हें जो खुशी हुई, उसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकतीं।

इसी तरह, शरत कुमार दास ने कहा कि विक्रम लैंडर के चंद्रमा की सतह पर उतरने का क्षण उनके जीवन का एक विशेष क्षण रहेगा।

इसरो से शरत ने कहा कि हमें खुशी है कि भारत दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक कदम रखने वाला पहला देश बन गया है। एनआईटी, राउरकेला से भौतिकी (इलेक्ट्रॉनिक्स) में एमएससी करने के बाद मैंने नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। फिर मैं इसरो में शामिल हो गया। मैं अब घटक गुणवत्ता मूल्यांकन समूह के समूह निदेशक के रूप में काम कर रहा हूं। मैं साझा करना चाहता हूं कि चंद्रयान-3 में सफल कार्यान्वयन के लिए उपयोग किए गए इलेक्ट्रॉनिक घटकों का उपयोग हमारे प्रमाणीकरण के बाद ही किया गया था। अब मिशन ने सफलता हासिल की है।

इसी तरह ब्रह्मपुर के नागराजू काकीनाड़ा भी चंद्रयान-3 मिशन का हिस्सा थे। इसरो में एक वैज्ञानिक के रूप में वह पिछले छह वर्षों से काम कर रहे हैं।

नागराजू काकीनाडा ने वीर सुरेंद्र साई प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (वीएसएसयूटी), बुर्ला से बी.टेक पूरा किया और आईआईटी दिल्ली से दूरसंचार इंजीनियरिंग में एम.टेक किया।

अटल कृष्ण खाटुआ ने किया अंतरिक्ष यान की सुरक्षा सुनिश्चित

ऐसी ही कहानी केंदुझर के अटल कृष्ण खाटुआ की है जो 10 साल से अधिक समय से इसरो के साथ काम कर रहे हैं। कहा गया कि उन्हें क्रायोजेनिक चरण में तरल इंजन के उत्पादन और आपूर्ति का काम सौंपा गया था।

वैज्ञानिक ने थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम के साथ अलग-अलग तापमान के बीच अंतरिक्ष यान की सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में काम किया। केंदुझर के मगुरूगाड़िया के रहने वाले अटल ने भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान से बीटेक किया और 2012 में इसरो में वैज्ञानिक के तौर पर शामिल हुए।

Share this news

About desk

Check Also

कोरापुट में ट्रक की चपेट में आने से चार की मौत

खेत में मजदूरी करने जा रहे सभी चार युवक कोरापुट। कोरापुट जिले में नेशनल हाईवे-26 …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *