इण्डो एशियन टाइम्स,
बेटियों !
छू लेना तुम आसमान
सहेज कर हृदय में
धरा का नेह
पंख लगा कर
सजगता और स्पष्टता के
बिखेर देना हवाओं में
सद्भावों की महक
बिम्बित रखना नयनों में
सपनों की चमक
जीवनदायी-वरदायी हो
यह उड़ान तुम्हारी…
बेटियों !
छू लेना तुम आसमान
लौट आना फिर
अपनी जड़ों को सींचने
नन्हें बीजों में
नये अनुभव उलींचने
नव क्रान्ति का होगा अंकुरण
जलाओगी तुम हर शाम
देहरी का जगमग दीप
उज्ज्वल मुक्ता जननी
तुम्हीं हो एक पावन सीप….
बेटियों !
तुम ना बनना देवी
बनी रहना सदैव मानवी
कर पाओगी तभी
पहचान अस्तित्व की
ना उलझ जाना
कर्तव्य-अधिकार के द्वंद्व में
लाख बरगलाये संसार
आनन्द में जीना स्वविवेक से…
ईश्वरीय उपहार है
यह मानव जन्म
व्यर्थ है यह समीकरण
मैं पुरुष…तुम स्त्री
वह बेहतर…मैं कमतर
ना है समान , ना ही असमान
सब से बड़ा सच
एक-दूजे से भिन्न हैं नर-नारी…
ना होड़ मर्द बनने की
ना ही जरूरत कोमलता छोड़ने की
खो मत देना
अपनी नारी सुलभ गहनता
देखा-देखी के उपक्रम में ,
गढ़ना तुम राजमार्ग अपने लिए
सुघड़ शिल्पी हो तुम…
बेटियों !
छू लेना तुम आसमान…!!
✍️ पुष्पा सिंघी , कटक
Posted by: Desk, Indo Asian Times