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ईश्वर रूपी शक्ति मां से जुड़ने का नाम ही योग साधना हैं -कथाव्यास पंडित श्री श्रीकांत जी शर्मा

भुवनेश्वर।
स्थानीय राम मंदिर, यूनिट 3 में मारवाड़ी महिला समिति भुवनेश्वर के सौजन्य से चल रही देवी भागवत कथा के छठे दिवस पर कथाव्यास श्रीकांत शर्मा ने बताया कि
आज भुवनेश्वरी मां की प्राप्ति अपेक्षाकृत मनुष्य शरीर की प्राप्ति से ज्यादा सुलभ है क्योंकि मनुष्य शरीर की प्राप्ति के लिए एक निश्चित समय सीमा होती है, जो लगती ही लगती है। लेकिन विमलेश्वरी मां की प्राप्ति जीव को यदि वह समर्पण भाव से भगवती मां को याद करें तो नौ दिन क्या एक क्षण में हो सकती है।
तप में शक्ति रूपा मां को प्राप्त करने की शक्ति होती है। तप की शक्ति के बल पर ही शुंभ निशुंभ ने महा चंडी मां को 6 महीने में साक्षात रूप में पा लिया। विवेक को सदैव सुरक्षित रखना चाहिए क्योंकि एकबार विवेक नष्ट हो जाता है तो सौ गुणा विपत्ति आ जाती है। जीवन में भी जिसके साथ सुमति होती है उस की संताने देवतुल्य संस्कारी होती हैं जबकि जिसकी मती कुमति होती है उसकी राक्षस जैसे निकृष्ट।
 इसलिए मां भगवती से सदैव सुमति की मांग करनी चाहिए।  कपिल मुनि का वचन है कि ईश्वर से जुड़ने का नाम ही योग है। सिर्फ आसन प्राणायाम नहीं यह सहायक हो सकते हैं मूल नहीं ,साधक सत्य का लय ईश्वर में करता है ।आयु का अंतिम दिन सुखद हो इसके लिए एकाग्रता के साथ भक्ति करना जरूरी है।
   शक्ति रूपा महागौरी को पाने के लिए भक्ति मार्ग सबसे श्रेष्ठ मार्ग हैं। जो भक्ति करते हैं वह किसी की निंदा या वंदना की परवाह नहीं करते हैं भक्ति से उनके भीतर का अहंकार पिघल जाता है। इसके साथ ही वे सहनशील होते हैं ,सहनशीलता भक्ति का पहला सूत्र है जिसके मन में करूना है ,दूसरे के दुख को देखकर दुखी हो जाता है, वही भक्ति कर सकता है ।भक्ति में किसी प्रकार का स्वार्थ नहीं होना चाहिये ।
 भक्त बिना स्वार्थ के सबके हित का कार्य करते हैं ।भक्ति सरल हिदय वाले व्यक्ति को प्राप्त होती ,चालाक इसे नहीं पा सकता है ।भगवान ने खुद कहा है:— निर्मल मन जन सो मोहि पावा,मोहि कपट छल छिद्र न भावा।
मुंबा देवी मां सरल व्यक्ति के ही निकट आ जाते हैं और चालक से दूर रहते हैं। ज्ञान मार्ग से भी नारायणी मां मिलती हैं लेकिन वह साधकों का मार्ग है भक्त जिस सरलता से भैरवी मां को पा जाता है ज्ञानी उतनी सहजता से नहीं प्राप्त कर पाते हैं।
 बाल व्यास जी ने यह भी कहा कि सबके आदि और अनादि “श्री” भुवनेश्वरी मां है। श्रीमद् देवी भागवत कथा से उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि मन में विकार आने से संस्कार खराब होने शुरू हो जाते हैं देवता और दैत्य में यही फर्क है देवता सबका भला चाहते हैं और दैत्य सबका बुरा चाहते हैं। यह गुण और दोष उनकी जन्म के पूर्व की सोच और संस्कार से जुड़ा है। देवता की उत्पत्ति के पीछे जहां सबके कल्याण का चिंतन है वहीं दैत्य के जन्म के पीछे द्वेष का भाव जुड़ा है । दैत्य जब पृथ्वी को सात पाताल के नीचे लेजाकर दबा आये तब भगवान ने सूअर के रूप में अवतार लेकर उसे खोजा और पुरानी जगह पर पृथ्वी को प्रतिष्ठित किया। ईश्वर सब को खोजता है लेकिन इंसान समाज को जो देता है वही पाता है । इसलिए ज्ञान और विद्या को छुपाओ मत उससे दूसरे का हित करो । मनु को आदिनारायण बताते हुए उन्होंने कहा कि मनु और शतरूपा से सृष्टि चली, मातृ पितृ सत्ता से संतुलन आवश्यक है। शक्ति के रूप में उपासना का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि शक्ति देवी रूपा मां मात् सरूपा है। माता के अंदर वात्सल्य भाव मौजूद होता है। वे करुणामयी है ।भक्तों की विपत्ति आपति सहन नहीं कर पाती है। इसलिए ऐसा माना जाता है कि इन से की गई प्रार्थना तत्काल और निश्चित फल देती है ।ऐसी सर्वशक्ति माता के रहते किसी और की आराधना पूजा क्यों की जाए? यही विश्वास हमें शक्ति साधना की ओर प्रेरित करता है। उन्होंने बताया कि शिव पुराण के अनुसार पूजा शक्ति है। उन्होंने अहंकारी नहुष राजा के पतन की कथा सुनाई। उन्होंने माया के इस संसार का वास्तविक वर्णन किया।कथा व्यास ने देवी भागवत के अन्तर्गत वर्णित सुकन्या और अश्विनी कुमार की रोचक कथा सुनाई।

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