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आईएलएस भुवनेश्वर के वैज्ञानिकों को मिली सफलता
भुवनेश्वर। इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस), भुवनेश्वर के वैज्ञानिकों ने स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले प्रोबायोटिक बैक्टीरिया की नई खोज की है। जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान में प्रतिष्ठित केंद्र आईएलएस, भुवनेश्वर ने ओडिशा के आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य, पोषण और कल्याण को लेकर इस नए शोध को किया है। बताया जाता है कि लगभग तीन साल पहले, आईएलएस के पूर्व निदेशक स्वर्गीय डॉ अजय परिडा के नेतृत्व में जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार ने जनजातीय स्वास्थ्य और पोषण पर आईएलएस के प्रमुख कार्यक्रम का समर्थन किया था।
इस कार्यक्रम के तहत आईएलएस के कई वैज्ञानिक अध्ययन के विभिन्न पहलुओं की निगरानी कर रहे हैं, जो ओडिशा की जनजातियों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार कर सकते हैं।
अपने एक अध्ययन में आईएलएस टीम ने इन लोगों की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के लिए लाभकारी सूक्ष्मजीवों के उपयोग का पता लगाने की योजना बनाई।
प्रोबायोटिक्स अच्छे रोगाणु हैं, जो पर्याप्त मात्रा में जीवित रहने पर मनुष्यों और जानवरों को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।
ये सहायक जीव दस्त, मोटापा और कई प्रतिरक्षा संबंधी विकारों जैसी कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की रोकथाम और नियंत्रण में उपयोगी माने जाते हैं।
ओडिशा की जनजातियों की अनूठी खाद्य आदतों, संस्कृति और पारिस्थितिक तंत्र को महसूस करते हुए आईएलएस के वैज्ञानिकों ने संभावित प्रोबायोटिक्स को अलग करने और उनकी विशेषता बताने की योजना बनाई।
इस संबंध में आईएलएस के डॉ शांति भूषण सेनापति के समूह ने कई प्रोबायोटिक्स को अलग किया है और उनकी विशेषता बताई है।
हाल ही में समूह ने सहायक जीवाणुओं में से एक के पूरे जीनोम अनुक्रम और अन्य प्रोबायोटिक गुणों को प्रकाशित किया है और इस कार्य को इस क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका “वर्ल्ड जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी एंड बायोटेक्नोलॉजी” में प्रकाशित किया गया है।
इस प्रकाशन की प्रमुख लेखिका डॉ जयलक्ष्मी दाश और मनीषा सेठी ने उल्लेख किया है कि तीन और प्रोबायोटिक्स के लिए संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण पहले ही पूरा हो चुका है और अनुक्रम एनसीबीआई डेटाबेस में जमा कर दिए गए हैं।
आईएलएस के निदेशक और आईएलएस-फ्लैगशिप प्रोजेक्ट के प्रमुख अन्वेषक डॉ पुलक कुमार मुखर्जी ने इस उपलब्धि पर अपार प्रसन्नता व्यक्त की है और भविष्य में इन प्रोबायोटिक्स का उपयोग करके कार्यात्मक खाद्य पदार्थों को विकसित करने के लिए इस प्रयास को और अधिक विस्तृत तरीके से विस्तारित करने का उल्लेख किया है।
चूंकि इन प्रोबायोटिक्स की उत्पत्ति ओडिशा जनजातियों से हुई है, डॉ सेनापति को उम्मीद है कि इन जीवों के स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाले प्रभाव ओडिशा के आदिवासी लोगों के लिए अधिक फायदेमंद होंगे और भविष्य में समग्र स्वास्थ्य स्थिति में सुधार करने में मदद करेंगे।