Home / National / श्रीमंदिर में 328 साल पहले इसी तरह का लगा था अघोषित कर्फ्यू
पुरी श्रीजगन्नाथ मंदिर = साभार गूगल

श्रीमंदिर में 328 साल पहले इसी तरह का लगा था अघोषित कर्फ्यू

  • तब वजह बना था लुटेरा एकाम्र खां और अब वजह है कोरोना वायरस

पुरी श्रीजगन्नाथ मंदिर = साभार गूगल

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर
महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करने के लिए हर दिन देश एवं विदेश से भारी संख्या में भक्त आते हैं। करोड़ों ओड़िआ लोगों के आराध्य देवता हैं महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी। हर दिन बड़दांड भक्तों की चहल कदमी से चल चंचल रहता था। हालांकि कोरोना वायरस को लेकर राज्य सरकार एवं पूरी जिला प्रशासन की तरफ से जारी किए गए दिशा-निर्देश के बाद बड़दांड पुरी तरह से भक्त शुन्य हो गया है।

श्रीमंदिर में भक्तों के दर्शन पर रोक लगा दी गई है। ऐसा लग रहा है मानो बड़दांड में अघोषित कर्फ्यू लग गया है। 328 साल के बाद भक्त महाप्रभु के दर्शन करने से वंचित हो रहे हैं। उस समय एक्राम खां के हमले के चलते भक्त महाप्रभु के दर्शन करने से वंचित हुए थे।
राज्य सरकार की तरफ से जारी की गई एडवाइजरी के बाद से बड़दांड में ना ही कोई भक्त दिख रहा है और ना ही कोई दर्शनार्थी।
इतिहासकारों के मुताबिक, 1692 में औरंगजेब के निर्देश पर एकाम्र खां तथा उसके भाई जम्मा उल्ला ने श्रीमंदिर के ऊपर हमला किया था। इस संदर्भ में महाप्रभु के सेवकों को पता चलने के बाद सेवकों ने श्रीमंदिर के चारों द्वार को बंद कर दिया और महाप्रभु को विमला मंदिर के पीछे छिपा दिया। एकाम्र खां बाहरी भंडार में लूटपाट किया और सेवकों ने उसे नकद 30 हजार रुपए दिए थे। इसके अलावा सेवकों ने उसे महाप्रभु की 3 नकली मूर्ति भी बना कर दिए थे।

एकाम्र खां जब यहां से गया तब सिंहद्वार गुम्मट के किनारे को तोड़ दिया और नकली महाप्रभु की मूर्ति को चमड़ा की रस्सी में बांधकर वड़दांड में घसीटते हुए ले गया था। उसके जाने के बाद सेवकों ने विमला मंदिर के पीछे छिपाई गई महाप्रभु की मूर्ति को लाकर रत्न सिंहासन पर अवस्थापित किए। महाप्रभु को रत्न सिंहासन पर विराजमान कराने के बाद सेवकों ने चारों द्वार बंद रखकर गुप्त रूप से महाप्रभु की सेवा एवं नीति किए। पालिया सेवकों ने दक्षिण द्वार गुप्त दरवाजे से श्रीमंदिर के अंदर पहुंचकर महाप्रभु की नीति करने की जानकारी इतिहासकार सुरेंद्र मिश्र ने दी है।
हालांकि मादला पांजी के मुताबिक उस समय घंटी नहीं बजाई जा रही थी। रुकमणी हरण एकादशी नीति का पालन नहीं किया गया। स्नान पूर्णिमा नीति बाहर पोखरी में की गई। महाद्वीप मंदिर के ऊपर नहीं उठाया गया तथा उस साल रथयात्रा भी विधि के मुताबिक नहीं की गई। उस समय भी भगवान से भक्त अलग हो गए थे। तब भगवान और भक्तों के बीच का बाधक एकाम्र खां बना था। लुटेरे के कारण भक्तों से भगवान अलग हो गए थे। एक बार फिर 328 साल के बाद उसी घटना की पुनरावृत्ति हुई है हालांकि इस बार भक्त एवं भगवान को अलग करने में कोरोना वायरस वजह बना है।

Share this news

About desk

Check Also

बीजद के पूर्व विधायक विजय मोहंती का निधन

गेस्ट हाउस में पाये गये थे अचेत अवस्था में भुवनेश्वर। बीजू जनता दल (बीजद) के …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *