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आजादी के दशकों बाद भी मौजूदा कानून हालात रोकने में विफल
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर.
शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है. ओडिशा में इन दिनों रैगिंग से परेशान होकर मौत को गले लगाने की घटनाएं नियमित देखने को मिल रही है. आजादी के दशकों बाद भी मौजूदा कानून कालेजों और विश्वविद्यालय परिसरों में रैगिंग को रोकने में विफल रहा है. हालही में कई ऐसे मामले मिले हैं, जिसमें पुलिस को आज सुराग हासिल नहीं हो पाया है. इसके उदाहरण स्वरूप हम ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित बीजेबी ऑटोनॉमस कॉलेज की छात्रा रुचिका मोहंती की आत्महत्या मामले को ले सकते हैं. गुरुवार तक इस मामले की जांच कर रही कमिश्नरेट पुलिस ने लगभग 200 लोगों से पूछताछ कर चुकी है, लेकिन सुराग हाथ नहीं लगा है. अभी भी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मानसिक उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार सीनियर छात्र कौन थे.
आप रैगिंग की गंभीरता को इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि 200 लोगों से पूछताछ के बाद नतीजा जीरो है, जबकि संबंधित छात्रा की कक्षा में छात्रों की संख्या कितनी होगी और उसके हास्टल के रूम के आसपास के रूमों में रहने वाले छात्राओं की संख्या किनती होगी, लेकिन किसी को भी कुछ पता नहीं है. गजब है रैगिंग की गंभीरता और सोचनीय है.
रैगिंग से जुड़ी दूसरी घटना एक इंजीनियरिंग कालेज से जुड़ा हुआ है, जिसकी छात्रा ने राजधानी भुवनेश्वर स्थित आचार्य विहार में एक घर में आत्महत्या कर ली. उसका शव फंदे से लटका हुआ मिला था. वह किराये पर रह रही थी. इस मामले को रैगिंग से जोड़कर देखा जा रहा है.
सौ टके के सवाल, क्यों नहीं पड़ती किसी नजर
आज समय में अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों की संरचनाएं हाईटेक होती हैं. सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं. सुरक्षागार्ड तैनात होते हैं, लेकिन सौ टके के सवाल ये हैं यह सब किस काम के हैं. क्या रैगिंग की घटनाएं इन कैमरों में कैद नहीं होती हैं? क्या तैनात सुरक्षा गार्ड की नजर इन पर नहीं होती है? क्या विद्यालय में शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक कर्मचारियों की नजर रैगिंग की घटनाओं पर नहीं पड़ती है? क्या प्रबंधन इसे अनदेखी करता है? यह सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि बीजेबी ऑटोनॉमस कॉलेज में 200 लोगों से पूछताछ के नतीजे शून्य रहे.
मौत रोकने को कब बनेगा ठोस कानून
आजादी के दशकों बाद भी मौजूदा कानून शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग रोकने में विफल रहा है. मौत की सिलसिला को रोकने और विद्या के मंदिर को मौत के मंदिर में तब्दील होने से रोकने के लिए नये कानून की जरूरत है. ऐसी घटनाएं विधिकायों का ध्यानाकर्षण तो जरूर करती हैं, लेकिन कुछ दिनों के चिल्लपों के बाद सबकुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है. सवाल यह है कि रैगिंग रोकने के लिए कठोर कानून कब बनेगा?