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आचार्य श्री महाश्रमण युगप्रधान अभिवन्दना समारोह का भव्य आयोजन

  •  महान व्यक्तियों का जन्मदिन मनाना कल्याणकारी – डाक्टर मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी

भुवनेश्वर. युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के विद्वान शिष्य डा. मुनि ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा-3 व मुनि जिनेश कुमार जी ठाणा-3 के सान्निध्य में आचार्य श्री महाश्रमण युगप्रधान अभिवन्दना समारोह का आयोजन श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा द्वारा तेरापंथ भवन में किया गया. इस अवसर पर अच्छी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे. इस अवसर पर उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए डा. मुनि ज्ञानेन्द्र कुमार जी ने कहा कि जन्म सभी का होता है, अपना जन्म दिन मनाते हैं, परंतु महान व्यक्तियों का जन्मदिन सभी मनाते हैं. क्योंकि महान व्यक्तियों का जन्म दिन मनाना कल्याणकारी होता है. आज आचार्य श्री महाश्रमण जी ने 61वें वर्ष में प्रवेश किया है. हम उनकी विशेषताओं की अभिवंदना कर रहे हैं. उनकी विनम्रता इतनी गहरी है कि वे छोटे संतों को भी नाम के साथ जी लगाकर पुकारते हैं. उनकी सरलता विशिष्ट है. छोटे से छोटे व्यक्ति की भी बात सुनते हैं. उपयोगी लगती है, तो उसे मान लेते हैं. उनकी निर्मलता बेजोड़ है. पद से पहले भी ये इन्हीं गुणों से सुशोभित थे और पद पाकर भी वे गुणों के समूह से सुशोभित है. युगप्रधान पदाभिषेक पर यही मंगलकामना है कि आप करोड़ दिवाली राज करें, मेरी उम्र भी आपको लगे. स्वस्थ रहते हुए दीर्घयु बनें.
इस अवसर पर मुनि जिनेश कुमार ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जैन आचार्यों की श्रृंखला में एक महनीय नाम है- आचार्य श्री महाश्रमण. जो युग की नब्ज को टटोलकर युगीन समस्याओं के समाधान सुझाते हैं. उन्हें सम्पूर्ण धर्मसंघ द्वारा युगप्रधान पद से अभिषिक्त किया गया है. आचार्य महाश्रमण अलबेले योगी व अनुत्तर साधक है. उनका संयम पर्यंव निर्मल है. निस्पृहता गंभीरता, शालीनता, विशालता, उदारता, सहजता, सरलता, विनम्रता, विर्लोभता, समता जिनकी पहचान है. वे आचार्य महाश्रमण तत्ववेता, विधिवेत्ता, भारतीय संस्कृति के उज्ज्वल व अनमोल रत्न है. आचार्य महाश्रमण ज्ञान के हिमालय, दर्शन के दृढ़स्तम्भ, चारित्र के चूड़ामणि व तप के तीर्थयात्री हैं. वे महातपस्वी, आचारनिष्ठ, सहनशील, विनय के सुमेरू, गुरुआज्ञा के प्रति समर्पित, संघ निष्ठ प्रमोद भावों से ओत:प्रोत व्यक्तित्व के धनी हैं. उनका जन्म आज ही के दिन वैशाख शुक्ला नवमी वि.सं. 2019 को सरदारशहर में हुआ. उनकी माता का नाम नेमादेवी व पिता का नाम झूमरमल जी दुग्गड़ था. वे 12 वर्ष की उम्र में मुनि सुमेरमल जी लाडनूं के कर कमलों से दीक्षित हुए. आचार्य तुलसी उन्हें महाश्रमण पद व आचार्य महाप्रज्ञ ने उन्हें युवाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया. वि.सं.2067 वैशाख शुक्ला दशमी को वे आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए. उनके द्वारा किये गए जनकल्याणकारी कार्यों को देखकर चतुर्विध धर्मसंघ ने उन्हें युगप्रधान पद से विभूषित किया. आज हम उनकी अभिवन्दना करते हुए मंगलकामना करते हैं कि वे दीर्घकाल तक मानवता की सेवा करते रहें.
इस अवसर पर डा. मुनि विमलेश कुमार ने कहा आचार्य श्री महाश्रमण जी का जीवन गहराई लिये हुए हैं. उनमें विचारों की ऊंचाई व चारित्र की गहराई है. उनका जीवन पुरुषार्थी, परोपकारी व परमार्थी है. इस अवसर पर मुनि पदम कुमार ने आचार्य महाश्रमण जी की विशेषताओं का वर्णन करते हुए अभिवंदना में विचार व्यक्त किये. मुनि कुणाल कुमार ने सुमधुर स्वरों में अभिवंदना गीत प्रस्तुत किया. मुनि वृन्द ने सामूहिक गीत प्रस्तुत किया. इस अवसर पर श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष बच्छराज बेताला, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष विवेक बेताला, तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष मधु गिड़िया, महासभा पंचमंडल सदस्य भवरलाल बैद, कटक सभा उपाध्यक्ष गजराज नाहटा ने अभिवन्दना में अपने विचार व्यक्त किये. श्रद्धानिष्ठ संगायक कमल सेठिया, सपना बैद, तेरापंथ महिला मंडल ने सुमधुर अभिवन्दना गीत प्रस्तुत कर वातावरण में एक नई पुलकन भर दी.
कार्यक्रम का संचालन मुनि परमानंद ने किया. मुनि विमलेश कुमार ने संकल्पमयी अभिवंदना करते हुए एक वर्ष में 60 दिन मौन व प्रति मंगलवार व शनिवार को एक वर्ष तक अन्न परिहार करने का संकल्प व्यक्त किया. जिसका जोरदार अर्हम् की ध्वनि से धर्मसभा ने स्वागत किया.

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