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जैसा भाव, वैसा स्वभाव – मुनि जिनेश कुमार जी

  • लेश्या कार्यशाला संपन्न

भुवनेश्वर. आचार्य महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि जिनेश कुमार जी के सानिध्य में अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के निर्देशानुसार स्थानीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में लेश्या कार्यशाला का आयोजन बेबी लॉन गार्डन में हुआ. इस अवसर पर शुभ लेश्या और सही रंग सीखें जीवन जीने का सही ढंग विषय पर बोलते हुए मुनि जिनेश कुमारजी ने कहा कि हमारे जीवन में भाव का बहुत बड़ा महत्व है. इसके जैसे भाव होते हैं, वैसे ही व्यक्तित्व का निर्माण हो जाता है.

निषेधात्मक भावों से निषेधात्मक व्यक्तित्व का निर्माण होता है. सकारात्मक भावों से सकारात्मक व्यक्तित्व का निर्माण होता है. जैसा भाव होता है, वैसा ही स्वभाव व ‌आचरण हो जाता है. इसलिए कहा जाता है कि हम भाव अच्छे रखें. अच्छे भाव रहने से सद्गति का बंधन होता है. बुरे भाव से बुरी गति का बंधन होता है. लोग कहते हैं कि मेरा भव सुधर जाये, संत कहते हैं भव की चिन्ता मत करो, भाव की चिन्ता करो. भाव सुधर गया, तो भव भी सुधर जायेगा. मुनि श्री ने आगे कहा कि हमारी भाव धारा को विचारधारा को संतुलित बनाने में ध्यान का महत्व पूर्ण योगदान रहता है. ध्यान से स्वस्थ भावों का निर्माण होता है. व्यक्ति अशुभ भाव से शुभ भाव में आता है और अच्छा जीवन जीता है. जीने की कला भी आ जाती है.

मुनि श्री ने कहा कि लेश्या एक प्रकार का पर्यावरण है. लेश्या का अर्थ है भावधारा. तैजस शरीर के साथ काम करने वाली भाव धारा को लेश्या कहते हैं. लेश्या प्रशस्त भी होती है, अप्रशस्त भी होती है. कृष्ण, नील, कापोत तेजस पद्म शुक्ल ये लेश्या के भेद हैं. मुनि श्री ने लेश्या ध्यान की चर्चा करते हुए कहा कि जीवन में रंगों का महत्व है. सफेद रंग शांति का प्रतीक है. लाल रंग स्फूर्तिवाला हरा रंग आनंद की अनुभूति कराने वाला पीला रंग बुद्धिका का प्रतीक है. रंगों के ध्यान से आभामंडल पवित्र होता है. हमारे भावों को शुभ्रतम बनाने मनाने के लिए ध्यान, श्वासप्रेक्षा, अनेकांतवाद, मैत्री, करुणा की अनुप्रेक्षा, क्षमाशीलता का अभ्यास करें. साधना करें. इस अवसर पर मुनि परमानंद जी ने कहा- भाव धारा के परिवर्तन से जीवन को क्षेष्ठ बनाया जा सकता है. कार्यक्रम का शुभारंभ मुनि कुणाल कुमार जी के मंगल गीत से हुआ. स्वागत भाषण तेरापंथ महिला मंडल की अध्यक्ष मधु गिड़िया व आभार मंत्री रश्मि बेताला ने किया. मंच संचालन मुनि परमानंद ने किया.

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