सामुदायिक जीवन अनुशासन के बिना नहीं चलता क्योंकि समुदाय में रहने वाले व्यक्तियों की रुचियां भिन्न होती है, काम करने की विधियां भिन्न होती है, और उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं. उनके लिए कोई नियम या व्यवस्था ना हो तो आपस में हितों का टकराव होता है और संघर्ष की संभावना बढ़ जाती है. ऐसी स्थिति में व्यवस्थापक या अनुशास्ता कठोरता का प्रयोग करके अनुशासन स्थापित करने का प्रयास करता है. अनुशासन और आत्मानुशासन दोनों में श्रेष्ठ क्या है? इस जिज्ञासा का समाधान महावीर-वाणी में उपलब्ध है. भगवान ने कहा – संयम और तपस्या आदि प्रशस्त प्रयोगों द्वारा मैं अपनी आत्मा पर शासन करूं, यह मेरे लिए श्रेयस्कर है. यदि ऐसा नहीं होता है तो दूसरे लोग बंधन आदि के द्वारा मुझ पर अनुशासन करेंगे. विद्यार्थी प्रारंभ से ही आत्मानुशासन का अभ्यास करता रहे तो वह जीवन की ऊंचाइयों के शिखर को छू सकता है.
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