नई दिल्ली, दिल्ली हाई कोर्ट ने 2008 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले के आरोपित मोहम्मद हकीम को जमानत दे दी है। जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भांभानी की बेंच ने मोहम्मद हकीम को 25 हजार रुपये के मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा कि आरोपित साढ़े 12 साल विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में रहा है। सुप्रीम कोर्ट के केए नजीब मामले में दिए गए दिशानिर्देशों के मुताबिक आरोपित की त्वरित न्याय के अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। ऐसे में अगर उसे और जेल में रखा गया तो यह उन अधिकारों का उल्लंघन होगा। कोर्ट ने आरोपित को निर्देश किया कि वो अपना फोन नंबर जांच अधिकारी को उपलब्ध कराए जिस पर उससे कभी भी संपर्क किया जा सके। कोर्ट ने कहा कि आरोपित अपना नंबर हमेशा चालू रखेगा। कोर्ट ने आरोपित को अपना पासपोर्ट ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने निर्देश दिया कि ट्रायल कोर्ट की अनुमति के बिना आरोपी देश छोड़कर बाहर नहीं जाएगा। आरोपित किसी गवाह से नहीं मिलेगा और न ही उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करेगा।
मोहम्मद हकीम को 4 फरवरी 2009 को गिरफ्तार किया गया था। उसके खिलाफ 13 सितंबर 2008 को पांच एफआईआर दर्ज की गई थीं। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 121, 121ए, 122 और 123 के अलावा एक्सप्लोसिव सब्सटेंस एक्ट की धारा 3 और 5 और यूएपीए की धारा 16, 18 और 23 के तहत आरोप लगाए गए थे। हकीम ने पटियाला हाउस कोर्ट में जमानत याचिका दायर की थी। पटियाला हाउस कोर्ट ने 20 मार्च को उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।
स्पेशल सेल ने इस मामले में 16 लोगों को आरोपित बनाया है। सुनवाई के दौरान हकीम की ओर से पेश वकील नित्या रामकृष्णन ने कहा कि स्पेशल सेल की ओर से दाखिल चार्जशीट और ट्रायल कोर्ट की ओर से तय आरोपों में आरोपित की भूमिका सीमित है। मोहम्मद हकीम पर आरोप है कि उसने साईकिल पर कुछ बाल बियरिंग लखनऊ से दिल्ली पहुंचाया। आरोपों में कहा गया है कि उन बाल बियरिंग का इस्तेमाल आईईडी बनाने में किया गया। इन आईईडी से 2008 में दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट को अंजाम दिया गया।
नित्या रामकृष्णन ने कहा कि इस मामले में अभी अभियोजन पक्ष की ओर से गवाहों के बयान दर्ज हो रहे हैं। अब तक 256 गवाहों के बयान दर्ज हो चुके हैं जबकि अभी 60 से ज्यादा गवाहों के बयान दर्ज होने हैं। आरोपी साढ़े बारह साल कैद में गुजार चुका है। उन्होंने आरोपित को जमानत देने की मांग करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपित की त्वरित ट्रायल के अधिकार का हनन हो रहा है। उन्होंने कहा कि आरोपित का पहले कोई आपराधिक इतिहास नहीं रहा है और वह यूनिवर्सिटी का छात्र था।
हकीम की जमानत का विरोध करते हुए एनआईए की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक अमित चड्ढा ने कहा कि आरोपित के खिलाफ काफी गंभीर आरोप हैं। उस पर दिल्ली के विभिन्न इलाकों में 13 नवंबर 2008 में सीरियल ब्लास्ट करने का आरोप है। उस सीरियल ब्लास्ट में 26 लोगों की मौत हुई थी जबकि 135 लोग घायल हुए थे। इस सीरियल ब्लास्ट की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन ने ली थी। इस मामले में पांच एफआईआर दर्ज की गई थीं।
इस मामले की जांच के दौरान संदिग्ध आतंकियों की तलाश में बाटला हाउस में एनकाउंटर के दौरान एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई जबकि दो पुलिस अधिकारी घायल हो गए थे। उन्होंने कहा कि स्टील के बाल-बियरिंग बाटला हाउस के परिसर से बरामद किए गए थे। हकीम की इस मामले में संलिप्तता का खुलासा इस मामले के दूसरे आरोपित जीशान अहमद ऊर्फ अंडा ने अपने डिस्क्लोजर स्टेटमेंट में 3 अक्टूबर 2008 को किया था। उसके तीन महीने के बाद एटीएस लखनऊ ने हकीम की गिरफ्तारी की थी।
साभार-हिस