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अनाज के एक दाने अनाज को मोहताज, दूसरे राज्यों में पलायन को हुए मजबूर

  • अपने गांव में नहीं मिल रहा है रोजगार, बाहरी राज्यों की कंपनियों के श्रमिक दलाल सक्रिय

गोविंद राठी, बालेश्वर

कोरोना महामारी के बीच बालेश्वर जिले के 36 ग्राम पंचायत के सैकड़ों लोगों के समक्ष जीवन के बचाये रखने को लेकर संकट खड़ा हो गया है. ये लोग अनाज के एक दाने को मोहताज हैं तथा अपने गांव में रोजगार नहीं मिलने के कारण दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं. बालेश्वर जिले में बाहरी राज्यों की कंपनियों के दलाल सक्रिय हैं.

बेरोजगारी के कारण परिवार के भरण पोषण कि चिंता सताने लगी है. अप्रत्याशित बारिश के कारण खेती शुरू नहीं हो पायी है. सरकार की रोजगार गारंटी योजना पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं. खबर है कि खइरा प्रखंड की 36 पंचायतों के सैकड़ों लोग काम के सिलसिले में राज्य से पलायन करने को मजबूर हैं.

राज्य के बाहर की फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर पहले साल लॉकडाउन में अपने घरों को लौट आये. एक आंकड़े के मुताबिक, इन 37 पंचायतों के करीब 11 हजार प्रवासी घर लौटे थे. उन्होंने सोचा कि वह घर पर रहकर कुछ‌ ना कुछ काम कर लेंगे. हालांकि, सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में नौकरियों की कमी के कारण इनकी सोच पर पानी फिर गया और ये अब कोरोना की दूसरी लहर में तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात की ओर पलायन कर रहे हैं. जानकारी के मुताबिक इस बार करीब 25 हजार लोग गांव छोड़कर जा चुके हैं. सूत्रों का दावा है कि राज्य के बाहर की कंपनियां हरिपुर, रतिना, रापेया, गगंधुली और अन्य पंचायतों से लोगों को लाने के लिए दलालों के माध्यम से बसें भेज रही हैं. लोग अपने परिवार के साथ बाहरी राज्य की ओर जा रहे है. ताजा उदाहरण सरदांग पंचायत के हन्नाबाबी गांव के दमसाही गांव को छोड़ने वाले परिवार का है. 40 साल से भी अधिक समय से यह दम समुदाय बांस के उत्पाद कुला, डाला आदि बनाकर गांव में बेच रहा था, लेकिन लॉकडाउन में इन वस्तुओं की बिक्री न होने से साही के रामचंद्र महाराणा, शुकदेव कुमार, उनके परिवार के मुखिया संतोष बेहरा अपने परिवार के सदस्यों के साथ काम करने के लिए तमिलनाडु भाग गए. रामचंद्र की मां कौशल्या महाराणा ने दुःख व्यक्त किया कि उनके बेटे ओर बहु खाने की अनाज की कमी के कारण घर छोड़ दिया. मानवाधिकार मिशन के संयोजक कान्हु चरण पाकल ने कहा कि प्रशासन को इस मामले को देखने की जरूरत है, क्योंकि ऐसी घटनाएं गांवों में हो रही हैं. हालांकि केंद्र और राज्य सरकारों ने रोजगार के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण गारंटी रोजगार योजनाएं शुरू की है, लेकिन वन, बागवानी, मृदा संरक्षण, पंचायत और मत्स्य पालन क्षेत्रों में 2,000 से अधिक श्रमिकों को अभी तक भुगतान नहीं किया गया है. झिंकिरिया पंचायत के सदस्य कैलाश मांझी और झपिरिया पंचायत के सरपंच अजय सामल ने कहा कि श्रमिकों के लिए 215 रुपये की अपर्याप्त मजदूरी के कारण चावल की खेती में अनिश्चितता को देखते लोग गांव छोड़ रहे हैं. इस संबंध में बीडीओ परशुराम पंडा ने कहा कि पौधे लगाने और भूमि विकास जैसे बहुत सारे काम मजदूर न मिलने के कारण ठप‌ पड़े हैं.

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