अलवर, राजस्थान में बहरूपिया कला पहले के जमाने में बहुत प्रचलित थी। अलवर जिले में भी बहरूपिए त्यौहार व कार्यक्रमों के अनुसार अपना रूप बदल मांगने के लिए घर घर व बाजारों में जाते थे। हालांकि इस कला का चलन अब कम हो गया है लेकिन जो कलाकार अब बचे है उनकी भी समय के साथ कला बदल गई है। कोरोना काल के चलते सरकार आम जन से कोरोना गाइडलाइन की सख्ती से पालना करने के समय समय पर निर्देश जारी कर रही है। वहीं इस बीमारी से बचने के लिए मास्क लगाना व दो गज की दूरी रखना जरूरी है। जिसे देखते हुए कटोरी वाला के रायसिस नंगला निवासी बहरूपिया 35 वर्षीय हनीश लोगों को इन दिनों मांगने के साथ जागरूक भी कर रहा है। वह शहर में कुरुर सिंह का। रूप बनाकर घुम रहा है। इस दौरान उसने मास्क भी लगाया हुआ। है। साथ ही जहां भी वह मांगने। के लिए जाता है अपने डायलॉग में मास्क लगाना और दो गज दूरी रखने का संदेश दे रहा है। उसे सुन लोगों को मनोरंजन के साथ एक जरुरी संन्देश मिल रहा है।
लोगों का मनोरंजन करना है बहरूपिया कला
कलाकार हनीश ने बताया कि बहरूपिया कला के माध्यम से विभिन्न प्रकार के रूप रखे जाते है। अभी वह कुरुर सिंह बनकर घूम रहे हैं। इससे पहले वह दूध-दही वाली,गुजर- गुजरी, नारद मुनि, भगवान शिव शंकर, अभिनेता अमरीश पुरी बनते थे। रूप के अनुसार ही उनके डायलॉग बदल जाते हैं। जिसे सुन लोग अपने आपको हंसे बिना नहीं रोक पाते हैं।
बुजुर्गों की परंपरा निभा रहे हैं
हनीश ने बताया कि वह 20 साल से बहरूपिया बन लोगों को हंसा रहा है। छोटा भाई सोनू भी यही काम करता है। उनके पिता मोहनलाल और दादा उमराव भी यही काम करते थे। इनके पिताजी हुसैन भी यही करते थे। परम्परा निभाते आ रहे हैं। उनका यह खानदानी काम है।
साभार – हिस