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डोडा गणेश मंदिर- आस्था का बड़ा केंद्र


दक्षिण भारत में भगवान गणेश का यह अद्भुत मंदिर, ‘डोडा गणेश’ के नाम से है विख्यात है।
दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में गणेश जी के इस मंदिर से जुड़ी हैं कई मान्यताएं। कहा जाता है कि टीपू सुल्तान के सेनापति ने इस मंदिर के परिसर में ब्रिटिश सेना के खिलाफ अपनी रणनीति बनाई थी।
हिंदू धर्म में गणेश भगवान की पूजा का हर अनुष्ठान में सबसे पहले की जाती है। भारत ही नहीं देश के बाहर भी गणेश जी कई मंदिर हैं। इन्हीं में से एक बेंगलुरु के पास बसावनगुड़ी में मौजूद डोडा गणपति की प्रतिमा है। दक्षिण में डोडा का मतलब बड़ा होता है। डोडा गणपति यानि बड़े गणपति। नाम के अनुसार ही यहां की प्रतिमा ऊंची है। ये तकरीबन 18 फीट ऊंची और 16 फीट चौड़ी। इस की खासियत ये भी है कि ये काले ग्रेनाइट की एक ही चट्टान पर उकेर कर बनाई गई है। इस मंदिर और प्रतिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। इसे बेंगलुरु के स्वयं-भू गणपति भी कहा जाता है। इसी मंदिर के पीछे एक नंदी प्रतिमा भी है, जिसे दुनिया की सबसे ऊंची नंदी प्रतिमा के रूप में जाना जाता है।
बेंगलुरु से लगभग 13 किमी दूर बसावनगुड़ी में डोडा गणपति का मंदिर है। माना जाता है कि गौड़ा शासकों ने इसे लगभग 500 साल पहले बनवाया था। इस मंदिर के पहले भी यहां स्वयं-भू गणपति की ये विशाल प्रतिमा थी और लोग आस्था के साथ इसका पूजन किया करते थे। इसका निर्माण 1537 के आसपास का माना जाता है। मंदिर प्राचीन दक्षिण भारतीय वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। मंदिर के गर्भगृह में विशाल गणपति प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां कुछ इतिहासकार मानते हैं मंदिर बहुत पुराना नहीं है। अंग्रेजों के भारत आने के बाद ही ये बना है।
इतिहासकारों की मानें तो इस मंदिर का टीपू सुल्तान के अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम से गहरा संबंध है। टीपू के सेनापति ने इसी मंदिर के परिसर में ही ब्रिटिश सेना के खिलाफ रणनीति बनाई थी और उन पर हमला किया था। इस तरह मंदिर के लेकर दो मत हैं लेकिन फिर भी ये मंदिर सारे विवाद और ऐतिहासिक तथ्यों से अलग श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है।

साभार पी श्रीवास्तव

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