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भारत आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध
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विश्व को अर्थव्यवस्था सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ने की जरूरत
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समुद्री सुरक्षा चुनौतियों को भारत के लिए चिंताजनक बताया
नई दिल्ली, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि आज दुनिया के सामने आतंकवाद और कट्टरवाद सबसे बड़ा खतरा है। भारत आतंकवाद के बारे में वैश्विक चिंताओं को साझा कर रहा है। आतंकवादियों का मजबूत गठजोड़ केवल सामूहिक सहयोग से ही तोड़ा जा सकता है। अपराधियों की पहचान करके उन्हें जवाबदेह ठहराया जा सकता है और उनके खिलाफ कड़े कदम उठाए जा सकते हैं। आतंकवाद को बढ़ावा देने, समर्थन करने, वित्तपोषित करने और उन्हें पनाह देने वालों के खिलाफ आसियान देशों को एकजुट होने की जरूरत है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के सदस्य के रूप में भारत आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए प्रतिबद्ध है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बुधवार सुबह वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आसियान देशों के रक्षा मंत्रियों की 8वीं बैठक (एडीएमएम-प्लस) को संबोधित कर रहे थे। बैठक में 10 आसियान (दक्षिणपूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) देशों और आठ संवाद भागीदार देशों ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के रक्षा मंत्रियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने ’वसुधैव कुटुम्बकम’ का सन्देश देते हुए कहा कि पूरी दुनिया एक परिवार है और भारत एक परिवार के रूप में दुनिया की परिकल्पना करता है। वर्तमान क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिवेश में शांति और सुरक्षा के लिए नई चुनौतियां उभर रही हैं। मौजूदा समय की चुनौतियों का समाधान पुरानी प्रणालियों से नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम एक-दूसरे को समझें और अपने व्यक्तिगत विचारों का सम्मान करें।
उन्होंने दुनिया के सामने मौजूदा चुनौती कोरोना वायरस के बारे में कहा कि हमें लगातार नए वेरिएंट मिल रहे हैं, जो अधिक संक्रामक और शक्तिशाली हैं। भारत दूसरी लहर से उबर रहा है, जिसने हमारी चिकित्सा व्यवस्था को काफी हद तक पीछे धकेल दिया है लेकिन महामारी का विनाशकारी प्रभाव अभी भी सामने आ रहा है। विश्व को अर्थव्यवस्था सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ने की जरूरत है लेकिन मुझे विश्वास है कि यह तभी संभव है, जब पूरी मानवता का टीकाकरण हो। विश्व स्तर पर उपलब्ध पेटेंट मुक्त टीके, निर्बाध आपूर्ति श्रृंखला और अधिक वैश्विक चिकित्सा क्षमताएं कुछ ऐसे प्रयास हैं, जिन्हें भारत ने संयुक्त प्रयास के लिए सुझाया है। राजनाथ सिंह ने बातचीत और अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों के पालन के माध्यम से विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर भी जोर दिया।
उन्होंने भारत-प्रशांत में एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी आदेश का आह्वान करते हुए कहा कि विवादों के शांतिपूर्ण समाधान बातचीत और अंतरराष्ट्रीय नियमों के आधार पर होना चाहिए। भारत ने इस क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए हिन्द-प्रशांत में अपने सहकारी संबंधों को मजबूत किया है। भारत हिन्द-प्रशांत के लिए साझा दृष्टिकोण के बारे में आसियान के नेतृत्व वाले मजबूत प्लेटफार्म का समर्थन करता है। उन्होंने कहा कि दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र के साथ भारत का जुड़ाव नवम्बर, 2014 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ पर आधारित है। इस नीति का प्रमुख मकसद आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ सांस्कृतिक संबंध और रणनीतिक संबंध विकसित करना है।
रक्षा मंत्री ने समुद्री सुरक्षा चुनौतियों को भारत के लिए चिंताजनक बताते हुए कहा कि संचार के समुद्री मार्ग हिन्द-प्रशांत क्षेत्र की शांति, स्थिरता, समृद्धि और विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस संबंध में दक्षिण चीन सागर के घटनाक्रम ने इस क्षेत्र और उसके बाहर ध्यान आकर्षित किया है। भारत इन अंतरराष्ट्रीय जलमार्गों में नेविगेशन, ओवर फ्लाइट और अबाधित वाणिज्य की स्वतंत्रता का समर्थन करता है। भारत को उम्मीद है कि आचार संहिता की वार्ता से ऐसे परिणाम निकलेंगे जो अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप होंगे। भारत पड़ोसी देशों को किसी भी संकट के समय सहायता देने में प्राथमिकता देता है। एशियाई तटरक्षक एजेंसियों के प्रमुखों की बैठक के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत समुद्री खोज और बचाव के क्षेत्रों में सहयोग के माध्यम से क्षमता निर्माण को बढ़ाना चाहता है। उन्होंने अंत में कोरोना महामारी के चलते प्रतिबंधों के बावजूद आयोजन के लिए एडीएमएम-प्लस के अध्यक्ष ब्रुनेई दारुस्सलाम को धन्यवाद भी दिया।
साभार – हिस