नहीं रहा ‘ऊलगुलान’ का महानायकः नयी सदी दस्तक दे रही थी। 1857 के पहले विद्रोह के बाद भारत के अलग-अलग हिस्सों में ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ एकबार फिर से असंतोष गहरा रहा था। इनमें सबसे संगठित और ब्रिटिश हुकूमत को झकझोर कर रख देने वाला मौजूदा झारखंड में 1895-1900 तक ‘धरती आबा’ बिरसा मुंडा की अगुवाई में चला महाविद्रोह ‘ऊलगुलान’ था।
बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों की लागू की गयी ज़मींदारी प्रथा और राजस्व व्यवस्था के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के साथ जंगल और ज़मीन पर हक़ की लड़ाई शुरू की। आदिवासी अस्मिता, संस्कृति व स्वायत्तता बचाने की यह मुहिम ऐसी जबर्दस्त थी कि एकबारगी अंग्रेजी हुकूमत की पेशानी पर बल आ गए। 1897-1900 के बीच मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच कई बार संघर्ष हुए। अगस्त 1897 में बिरसा मुंडा और उनके तकरीबन चार सौ लोगों ने तीर-कमान से लैस होकर खूंटी थाने पर हमला बोल दिया। 1898 में भी तांगा नदी के किनारे इसी तरह का संघर्ष हुआ।
आखिरकार जनवरी 1900 डोम्बरी पहाड़ पर संघर्ष हुआ, जहां बड़ी संख्या में जमा औरतें और बच्चे भी मारे गए। बिरसा यहां एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। बिरसा मुंडा 03 मार्च को चक्रधरपुर से गिरफ्तार कर लिये गए। 09 जून की सुबह रांची कारागार में कैद बिरसा मुंडा को खून की उल्टियां हुईं और वे अचेत हो गए। डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि उनकी सांसें कब की जा चुकी थीं। धरती आबा की मौत को लेकर कहा जाता है कि अंग्रेजों द्वारा दिए गए जहर से उनकी मौत हुई। जीते जी किंवदंती बने बिरसा मुंडा झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में आज भी भगवान की तरह घर-घर पूजे जाते हैं।
अन्य अहम घटनाएंः
1659ः दादर के बलूची प्रमुख जीवन खान ने दारा शिकोह को धोखे से औरंगजेब के हवाले कर दिया।
1720ः स्वीडन और डेनमार्क ने तीसरी स्टॉकहोम संधि पर हस्ताक्षर किए।
1752ः फ्रांसिसी सेना ने त्रिचिनोपोली में ब्रिटिशर्स के सामने आत्मसमर्पण किया।
1940ः नार्वे ने दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी के समक्ष आत्मसमर्पण किया।
1956ः अफगानिस्तान में जबर्दस्त भूकम्प में 400 लोगों की मौत।
1964ः जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री का पद संभाला।
2011ः भारत के मशहूर चित्रकार एम. एफ. हुसैन का लंदन में निधन।
साभार – हिस
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