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प्यार की बेजुबान बोल, न तूम कुछ कहो, न कुछ सूने हम; विवाह की बेदी तक पहुंची सोशल मीडिया की दोस्ती

  • मूक-वधीर जोड़े ने प्रेम की अनोखी मिसाल कायम किया, सात जनम तक साथ निभाने का किया एक-दूजे के साथ वादा

राजेश बिभार, संबलपुर

प्यार के इजहार के लिए न जुबां की जरूरत है और ना ही इसे सुनने के लिए कान की. प्यार का संबंध दिल से होता है. यह एक बात फिर एक प्रेमी युगल ने साबित कर दिया है. प्रेमी युगल मूक एवं वधीर हैं. दोनों के दिल ने एक-दूसरे के प्यार को सूना और समझा और फिर सोशल मीडिया से शुरू हुई दोस्ती विवाह की बेदी पर जा पहुंची.

प्रेम की यह कथा चर्चे में हैं. बहुत लोग प्रेम की ऐसी कथाओं को कोरी बकवास मानते हैं, किन्तु भारतीय इतिहास की परंपरा में ऐसी अनेकों गाथाएं लिखी गईं हैं, जिसने साबित किया है कि प्रेम ही विकास की जननी है. प्रेम ही एक संप्रदाय को दूसरे संप्रदाय से मिलाने का जरिया है. प्रेम ही एक प्रांत को दूसरे प्रांत से जोड़ने का तरीका है. आज 21वीं सदी की आधुनिकता में भी कुछ हृदय ऐसी है, जो बेवफाई एवं अपमान से दूर होकर प्रेम की असली परिभाषा को परिभाषित करने का प्रयास कर रहा है. ओडिशाा के संबलपुर जिले में इस प्रेम कहानी ने यह साफ कर दिया है कि यदि आप में हिम्मत या फिर जज्बा है तो आप सारी बाधाओं को पार कर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि जुबान से कमजोर एवं सुनने से कमजोर एक जोड़े ने देश एवं समाज को प्रेम का असली आईना दिखाने का काम किया है. सोशल मीडिया में दोनों एक दूसरे के संपर्क में आए और धीरे-धीरे दोनों के बीच प्रेम परवान चढ़ा और अंतत: दोनों ने अपनी-अपनी भावनाओं का सम्मान करते हुए एक- दूसरे को जीवन साथी बनाने का फैसला लिया और अंतत: वैदिक मंत्रोचारण के बीच जन्म-जन्म के लिए एक दूजे के हो गए. गौरतलब है कि संबलपुर जिले के बुर्ला थाना अंतर्गत चिपलिमा निवासी आदिकंद त्रिपाठी एवं खीरोदिनी त्रिपाठी की खुशहाल जिंदगी में तीन कन्या एवं एक पुत्र का जन्म हुआ. समय के साथ-साथ श्री आदिकंद त्रिपाठी ने अपनी बड़ी बेटी एवं छोटी बेटी के साथ-साथ एकलौते पुत्र का पूरे शानोशौकत के साथ विवाह कर दिया. किन्तु मझली बेटी लक्ष्मी त्रिपाठी (40) बचपन से ही मूक एवं वधीर थी, मसलन श्री आदिकंद त्रिपाठी को उसका घर बसाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. इसके बावजूद श्री त्रिपाठी ने अपने दिव्यांग कन्या लक्ष्मी को पढ़ाया और उसे घर के कामकाज में निपूण बनाया. लक्ष्मी ने भी पिता की भावनाओं का समझा और घर के प्रत्येक काम में हांथ बटाने लगी. इसके बावजूद त्रिपाठी दंपत्ति लक्ष्मी के भविष्य को लेकर काफी चिंतित थे. किन्तु कुदरत ने पहले ही लक्ष्मी का भाग्य निर्धारित कर दिया था. सोशल मीडिया में हांथ चलाते-चलाते लक्ष्मी की मुलाकात एक दिन झारखंड प्रदेश के पश्चिम सिंहभूम जिला के लोटापाहाड़ निवासी खुदीराम शुक्ला एवं सावित्री शुक्ला के सबसे छोटे पुत्र महाबीर से हो गई. महाबीर भी बचपन से ही मूक एवं वधीर थे, मसलन वे भी अपनी जीवन की दिशाओं को खोजने का प्रयास कर रहे थे. सोशल मीडिया में पहले लक्ष्मी एवं महाबीर का परिचय हुआ. फिर दोस्ती हो गई, और प्यार पनप उठा. अंतत: दोनों ने एक-दूसरे को जीवन साथी बनाने का फैसला किया. उनके फैसले को दोनों परिवार के सज्जनों ने सम्मान दिया और फिर संबलपुर शहर के प्रमुख शिवालयों में से एक भतरा के शंकर मठ में वैदिक मंत्रोचारण के बीच दोनों एक-दूसरे के जीवन साथी हो गए. निश्चित तौरपर लक्ष्मी एवं महाबीर ने प्रेम की एक नयी गाथा लिख डाली है, जो अमर प्रेम की कहानियों को और बुलंदी तक पहुंचाएगा. फिलहाल संबलपुर शहर में इस विवाह की चर्चाएं जोरों पर है.

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