- बिहार और यूपी के कुछ ग्रामीण किसानों और नागरिकों से बातचीत का अनुभव सीधा आप तक।
वे कहने लगे कि मोदी सरकार में ही ऐसा सम्भव हो पाया है जब हमें बिना किसी रिश्वत दिए और बैंक में बाबुओं के सामने बिना हाथ जोड़े और गिड़गिये पैसे मिल जाते हैं। नहीं तो बैंकों के चक्कर काटने, रिश्वत देने और अपमानित हुए बिना हमारा ही पैसा हमें नहीं मिल पाता था। कोरोनकाल में दिसम्बर महीनें तक अनाज और जन धन खातों में पैसे मिलते रहे। अगर मोदी सरकार जनता के लिए इतना नहीं सोचती तो उनका और उनके परिवार का बुरा हाल हो जाता।
विनय श्रीवास्तव, स्वतंत्र पत्रकार
दिल्ली और सिंधु बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन के ठीक विपरीत स्थिति बिहार और यूपी के ग्रमीण किसानों की है। यहां के किसानों को नए कृषि कानून से कोई शिकवा शिकायत नहीं है। अलबत्ता उन्हें इस बात की खुशी है कि नया कृषि कानून आने के बाद वे अपने उपज को बेचने के लिए पहले से अधिक स्वतंत्र और मजबूत होंगे।
किसान आंदोलनों के बीच मुझे अवसर मिला है अपने गृह राज्य बिहार आने का। अपने गांव सांखे खास सहित बिहार और यूपी के कुछ अन्य गांवों में भी घूमने का अवसर मिला। गांवों के किसानों और जनता से रूबरू होने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ। उनसे कृषि कानून पर चल रहे आंदोलन से लेकर कोरोना काल के विकट परिस्थितियों और मोदी नीतियों के बारे में के बारे विस्तार पूर्वक चर्चा हुई।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जो दृश्य हम टीवी में समाचारों के माध्यम से सुन और देख रहे हैं उसके ठीक विपरीत गांवों का माहौल है। यहां लोग नए कृषि कानून से तो खुश हैं ही। उन्हें समय समय पर केंद्र सरकार की योजनाओं की राशि डायरेक्ट अपने बैंक खातों में देखकर भी बहुत प्रसन्न हैं। लोगों से जब यह जानने की कोशिश की कि क्या उन्हें वह सब फायदे उसी प्रकार मिल रहे हैं जिस प्रकार सरकार अपनी खूबियां गिनाती है ? इसपर लोगों का यही कहना था कि हां वे सभी सुविधाओं को नियमित समय पर प्राप्त कर पा रहे हैं। पिछले सप्ताह किसानों को मिले दो दो हजार रुपये का जिक्र खुद किसानों ने ही किया। वे कहने लगे कि मोदी सरकार में ही ऐसा सम्भव हो पाया है जब हमें बिना किसी रिश्वत दिए और बैंक में बाबुओं के सामने बिना हाथ जोड़े और गिड़गिये पैसे मिल जाते हैं। नहीं तो बैंकों के चक्कर काटने, रिश्वत देने और अपमानित हुए बिना हमारा ही पैसा हमें नहीं मिल पाता था। लोगों ने यह भी बताया कि कोरोनकाल में दिसम्बर महीनें तक अनाज और जन धन खातों में पैसे मिलते रहे। अगर मोदी सरकार जनता के लिए इतना नहीं सोचती तो उनका और उनके परिवार का बुरा हाल हो जाता।
यानी लोगों को किसान सम्मान निधि से लेकर उज्ज्वला और आयुष्मान योजना सहित सभी प्रकार की सुविधाओं को प्राप्त कर रहे हैं। जब इन लोगों से यह जानने की कोशिश की कि जब सुविधएं मिल ही रही हैं तो फिर समय समय पर मोदी सरकार के खिलाफ आदोंलन क्यों शुरू हो जाता है ? इस पर लोगों की प्रतिक्रिया सुनकर मैं भी हैरान रह गया। उनका कहना था कि जो लोग किसी के कुछ करते हैं उन्हीं से बहुत कुछ पाने की उम्मीद और जागृत हो जाती है। ऐसे में लोग सिर्फ अपनी अपनी नाजायज़ मांगे मनवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाने लगते हैं। यहां लोगों का साफ साफ कहना है कि अभी चल रहा किसान आंदोलन पूर्ण रूप से राजनीति से प्रेरित है। राजनीतिक पार्टियों द्वारा किसानों और आम नागरिकों में भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किसानों से सीधे संवाद से भी यह साफ है कि नए कृषि कानून से किसानों को कोई नुकसान नहीं है। एम एस पी यानी मिनिमम सपोर्ट मौजूदा व्यवस्था जारी रखने पर लिखित में भरोसा देने पर राजी है। सरकार ने यह भी कहा कि वह एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी यानी एपीएमसी के तहत बनी मंडियों को बचाने के लिए कानून में भी बदलाव करेगी। आंदोलन कर रहे किसानों से यही आग्रह है कि वे अपने इस आंदोलन को समाप्त करें। क्योंकि आपके आंदोलन के सहारे राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेंक रही हैं। जगह जगह उग्र प्रदर्शन हो रहे हैं। टॉल प्लाजा बाधित किया जा रहा है। कुल मिलाकर किसान आंदोलन का दिशा बदल चुका है।