नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2020 का कहना है कि भारत ने मलेरिया के मामलों में कमी लाने के काम में प्रभावी प्रगति की है। यह रिपोर्ट गणितीय अनुमानों के आधार पर दुनियां भर में मलेरिया के अनुमानित मामलों के बारे में आंकडे जारी करती है। रिपोर्ट के अनुसार भारत इस बीमारी से प्रभवित वह अकेला देश है जहां 2018 के मुकाबले 2019 में इस बीमारी के मामलों में 17.6 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। भारत का एनुअल पेरासिटिक इंसीडेंस (एपीआई) 2017 के मुकाबले 2018 में 27.6 प्रतिशत थाऔर ये 2019 में 2018 के मुकाबले 18.4 पर आ गया। भारत ने वर्ष 2012 से एपीआई को एक से भी कम पर बरकरार रखा है।
भारत ने मलेरिया के क्षेत्रवार मामलों में सबसे बडी गिरावट लाने में भी योगदान किया है यह 20 मिलियन से घटकर करीब 6 मिलियन पर आ गई है। साल 2000 से 2019 के बीच मलेरिया के मामलों में 71.8 प्रतिशत की गिरावट और मौत के मामलों में 73.9 प्रतिशत की गिरावट आई है।
भारत ने साल 2000 (20,31,790 मामले और 932 मौतें) और 2019(3,38,494 मामले और 77 मौतें) के बीच मलेरिया के रोगियों की संख्या में 83.34 प्रतिशत की कमी और इस रोग से होने वाली मौतों के मामलों में 92 प्रतिशत की गिरावट लाने में सफलता हासिल की है और इस तरह सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों में से छठे लक्ष्य (वर्ष 2000से 2019 के बीच मलेरिया के मामलों में 50-75 प्रतिशत की गिरावट लाना)को हासिल कर लिया है।
मलेरिया के मामलों में कमी का रूख साल दर साल के हिसाब से बनाई गई तालिका में भी देखा जा सकता है। मलेरिया के मामलों और उससे होने वाली मौतों की संख्या साल2018 में (4,29,928 मामले और 96 मौतें)के मुकाबले 2019 में (3,38,494 मामले और 77 मौतें) कम होकर क्रमश 21.27 प्रतिशत और 20 प्रतिशत पर आ गई है। साल 2020 में अक्टूबर महीने तक मलेरिया के कुल 1,57,284 मामले दर्ज हुए हैं जो कि 2019 की इसी अवधि में दर्ज 2,86,091 मामलों की तुलना में 45.02 प्रतिशत की गिरावट को दर्शाता है।
देश में मलेरिया उन्मूलन प्रयास 2015 में शुरू हुए थे और 2016 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन(एनएफएमई) की शुरुआत के बाद इनमें तेजी आई स्वास्थ्य मंत्रालय ने जुलाई 2017 में मलेरिया उन्मूलन के लिए एक राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017 से 2022) की शुरुआत की जिसमें अगले पांच साल के लिए रणनीति तैयार की गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन में मलेरिया के अधिक जोखिम वाले 11 देशों में उच्च जोखिम और उच्च प्रभाव (एचबीएचआई) पहल शुरू की है। इनमें भारत भी शामिल है। इस पहल को पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश – इन चार राज्यों में जुलाई, 2019 को शुरू किया गया। इसमें प्रगति का पैमाना ‘उच्च जोखिम से उच्च प्रभाव’ तक जाना रखा गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन और आरबीएम की भागीदारी में मलेरिया उन्मूलन पहल काअसर भारत में काफी हद तक दिखाई पड़ा और वहां पिछले 2 साल में बीमारी के मामलों में 18 प्रतिशत और इससे होने वाली मौतों को मामले में 20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
भारत के 31 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों – आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, पुदुचेरी, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा एवं नगर हवेली और लक्षद्वीप में मलेरिया की उपस्थिति पाई गई थी और इन राज्यों के इस बीमारी से बहुत ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में इसके मामलों में गिरावट देखी गई। 2018 के मुकाबले 2019 में ओडिशा में 40.35 प्रतिशत, मेघालय में 59.10 प्रतिशत, झारखंड 34.96 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 36.50 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 23.20 प्रतिशत गिरावट देखी गई।
मौजूदा आंकड़े और चित्र मलेरिया के मामलों में पिछले दो दशकों में आई स्पष्ट गिरावट को दर्शाते हैं। केन्द्र सरकार के इस दिशा में किए जा रहे रणनीतिक प्रयासों के चलते 2030 तक मलेरिया के पूर्ण उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त करना संभव दिखाई देता है।