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उज्ज्वला योजना भी नहीं कर पायी इस गरीब का भविष्य उज्ज्वल
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वाराणसी की सड़कों पर जलावन बेचने को भटकता रहा गरीब, खरीदार का पता नहीं
हेमन्त कुमार तिवारी/ आलोक मालवीय वाराणसी
बड़ी विचित्र बात है. कोरोना के कहर के कारण पहले शहर, गली, मुहल्ले में लाकडाउन और शटडाउन हुआ. लोगों का शहर से पहले पलायन, मीलों पैदल चलने की घटना को हम सभी देख चुके हैं. बिगड़ते हालात के बीच लगता है कि अब रोटी पर लाकडाउन हो गया है. दो वक्त की रोटी के लिए दर-दर लोग भटकने को मजबूर हो चुके हैं. पेट की आग बुझाने के लिए जलावन सहारा बन रही है. जी हां! अक्सर लकड़ियों का प्रयोग आग को जलाने के लिए किया जाता है, लेकिन यहां जब यह जलावन जलेगी तो कुछ बुझेगा. हम एक गरीब की बात कर रहे हैं, जो दिनभर वाराणसी की सड़कों पर एक ठेले पर जलावन बेचने के लिए घूमता रहा. अगर यह जलावन किसी चूल्हे में जलेगा तो इस गरीब परिवार के पेट की आग बूझेगी. कहा जाता है कि जब पेट में आग लगती है तो मनुष्य कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है.
आज कोरोना का कहर इस कदर बरप रहा है कि लोग घरों से निकलने में डर रहे हैं, लेकिन यह गरीब परिवार अपने भूख को मिटाने के लिए सन्नाटे भरी सड़क पर जलावन बेचने के लिए भटक रहा है. यह घटना उस इलाके की है, जहां से खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनकर आये हैं. जी हां! आप यहां जो तस्वीर देख रहे हैं, वह शिवनगरी वाराणसी की है. प्रधानमंत्री ने गरीबों के लिए उज्ज्वला योजना चला रखी है और शहर में अन्य वर्गों के लोगों के पास इसकी जरूरत नहीं है. इस कारण इस जलावन के खरीदार का भी मिलना काफी मुश्किल भरा है.
फोटोग्राफर काफी देरतक इस व्यक्ति के इर्दगिर्द घूमते रहे, लेकिन कई गलियों से गुजरने के बाद भी इसका खरीदार नहीं मिला. थककर वह भी एक तस्वीर लेकर चलते बने, लेकिन यह परिवार अपने एक दिन के उज्ज्वल भविष्य के लिए भटकता फिरता रहा. इस परिवार ने बताया कि वह सुबह से ही इस जलावन को बेचने के लिए निकला है, लेकिन इसका कोई भी खरीदार नहीं मिला है. साहब, आज कल लकड़ियां भी कोई खरीदता नहीं है. सबके घरों में गैस आ गया है, लेकिन क्या करें. कोरोना के कारण रोजगार भी नहीं है. उम्मीद ही हमारी आखिरी उम्मीद है, लेकिन सच तो यह भी है कि आज दो जून पेट की आग बुझाना भी मुश्किल हो गया है. आज कोरोना के कारण हमारे से जैसे न जाने कितने परिवारों के समक्ष यह चुनौती है.
साभार-आईपीजे न्यूज
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