कोलकाता। देश के कुछ प्रमुख रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बड़ी भूल और अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते चीन 1962 से लगातार भारत की सीमा में घुसपैठ करता आ रहा है। 62 के युद्ध के 58 साल बीत चुके हैं लेकिन चीन अपनी विस्तारवादी नीति से बाज नहीं आ रहा। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए जरूरी है कि भारत अब सख्त तेवर के साथ ठोस कदम भी उठाए। जिस तरह से पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर पर भारत अब अपना दावा ठोंक रहा है। उसी तरह से अक्साई चिन पर भी हमें दावा ठोंकने की जरूरत है। वह हमारा हिस्सा है और भारत को उसे लेने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए राजनीतिक, कूटनीतिक, आर्थिक और वैश्विक रणनीति तो कारगर होगी ही, आवश्यकता पड़ने पर सैन्य कार्रवाई के लिए भी भारत को तैयार रहना चाहिए।
देश की इस सबसे बड़ी बहुभाषी न्यूज़ एजेंसी ‘हिन्दुस्थान समाचार’ को दिए विशेष साक्षात्कार में सेवानिवृत्त कर्नल सब्यसाची बागची और रिटायर्ड ब्रिगेडियर प्रवीर सान्याल ने कहा कि भारत 65 फीसदी युवा जोश के साथ 130 करोड़ की आबादी वाला दुनिया का एक मजबूत राष्ट्र बनकर उभरा है। कोई हमें आंख दिखाए, हमारी सीमा में घुसे और हम उसे पीछे खदेड़कर नजरअंदाज कर दें, यह नहीं चलेगा। रक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि 1962 के युद्ध में चीन हमारी सीमा में घुसपैठ कर गया था। उसमें हमारी पराजय हुई थी और बात संयुक्त राष्ट्र संघ में चली गई थी। तब तक चीन ने भारत के अक्साई चीन वाले बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसी हिस्से को चीन से आजाद कराने की हिम्मत नहीं दिखाई और आज तक वह चीन के ही कब्जे में है।
कर्नल सब्यसाची बागची ने बताया कि चीन कभी भी हमारा पड़ोसी नहीं था। हमारी सीमा तिब्बत से लगती थी और चीन से दूर-दूर तक नाता नहीं था। लेकिन 1962 के युद्ध के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तिब्बत में चीन के वर्चस्व को स्वीकारा। अक्साई चिन पर भी कब्जा बरकरार रहा जिसके बाद चीन हमारी सीमा के अंदर तक प्रवेश कर गया। इसी भूल के कारण वह बार-बार हमारी सीमा में घुसता रहता है। लाल बहादुर शास्त्री के बाद नरेन्द्र मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने चीन के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार किया है। 2017 के डोकलाम में भारतीय सैनिकों ने जिस तरह से चीन का सामना किया और अब गलवान घाटी में उन्हें सबक सिखाया गया है, यह रुख और अधिक सख्त किए जाने की जरूरत है।
इस समस्या के स्थाई समाधान के बारे में उपाय सुझाते हुए कर्नल बागची ने कहा कि हमें तिब्बत से सटी भारत-चीन सीमा पर समझौते करने की जरूरत है। इसके लिए न केवल कागज पर बल्कि जमीनी तौर पर भी सीमा का रेखांकन कर सीमांकन करने की जरूरत है ताकि उसके बाद अगर चीनी सैनिक हमारी सीमा में प्रवेश करते हैं तो उन्हें सबक सिखाया जा सके। उन्होंने कहा कि संख्या बल के मामले में भारत में सैनिकों की संख्या कम है, लेकिन हमें इस तरह से समझने की जरूरत है कि चीन एक तानाशाह देश के तौर पर उभर रहा है। वहां अधिक संख्या में सैन्य बल होना चाहिए जबकि हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहां चीन के 21 लाख सैनिकों के मुकाबले भारत के 14 लाख सैनिक बहुत भारी पड़ेंगे। क्योंकि हमारी सेना को लड़ाई का शानदार अनुभव रहा है और चीनी सैनिकों को सबक सिखाते रहे हैं।
ब्रिगेडियर प्रवीर सान्याल ने कहा कि 1962 और आज के भारत में बहुत अंतर है। आज सामरिक तौर पर हम चीन के मुकाबले कहीं भी कमजोर नहीं है। 1962 के बाद 1967 में भी चीन से लड़ाई हुई थी और तब भारत के सिर्फ 70 जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से अधिक सैनिकों को मार गिराया गया था। तभी चीन समझ गया था कि भारत के साथ टकराव आसान नहीं इसीलिए प्रॉक्सी वार करता है। कभी पाकिस्तान को मदद करता है, कभी नेपाल को, तो कभी घुसपैठ करता है। इस बार भी गलवान में हमने उसे अच्छा सबक सिखाया है। भारत के लिए दूसरी अच्छी बात यह है कि चीन की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं है। वहां जनता सरकार के खिलाफ रहती है और लगातार विद्रोह होते हैं। आंतरिक मोर्चे पर चीन पहले से ही कमजोर है। इसीलिए अपनी सैन्य शक्ति को लगातार मजबूत करता है। वर्तमान परिदृश्य में दुनियाभर के देश अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया भारत के साथ मजबूती से खड़े हैं और कह चुके हैं कि आवश्यकता पड़ने पर चीन के खिलाफ सैन्य बल इस्तेमाल करेंगे। वह भी भारत के साथ मिलकर। इसीलिए यह बेहतर मौका है कि भारत चीन को ना केवल सीमा पार धकेलने पर ध्यान दे बल्कि अक्साई चिन जैसे भारतीय प्रांतों पर भी अपना कब्जा जमाने के लिए ठोस कदम उठाया जाए।
ब्रिगेडियर सान्याल ने कहा कि चीन से अगर युद्ध हुआ तो उसे घुटने टेकने पड़ेंगे क्योंकि हर एक मोर्चे पर भारत उस पर भारी पड़ेगा। उन्होंने यह भी बताया कि दुनियाभर के देशों के दबाव में चीन झुकने को मजबूर है और यह सही समय है जब उसे स्थाई सबक सिखाने के लिए ठोस और कारगर कदम उठाए जाए।
दोनों रक्षा विशेषज्ञों ने इस बात पर भी जोर दिया कि जिस तरह से चीन के साथ व्यापारिक समझौते रद्द किए जा रहे हैं, उसी तरह से उस पर आर्थिक निर्भरता भी लगातार कम करनी होगी। कर्नल बागची और ब्रिगेडियर प्रवीर ने चीन के 59 मोबाइल एप्लीकेशन को बैन करने के भारत सरकार के निर्णय को सराहनीय बताया और कहा कि इस तरह के और भी फैसले लिए जाने की जरूरत है। दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि चीन को केवल सीमा से बाहर करने पर ही ध्यान केंद्रित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि भारत को अपनी ओर से आक्रामक होकर अपने देश की भूमि को उसके कब्जे से मुक्त कराया जाना चाहिए। तभी चीन को सबक मिलेगा और अपनी हद में रहना सीखेगा।
साभार- हिस