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महिला और बाल विकास के नाम पर अरबों का बजट, फिर भी बदहाल हालात
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रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों, बस स्टॉप और बाजारों में हाथ फैलाए बच्चे और वृद्ध महिलाएं खोल रही हैं पोल
हेमंत कुमार तिवारी, कोलकाता।
भारत तेजी से आर्थिक महाशक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है। सरकारें दावा कर रही हैं कि हम जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएंगे। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कहीं अलग है। रेलवे स्टेशनों, ट्रेनों, बस स्टॉप और बाजारों में हाथ फैलाए बच्चे और वृद्ध महिलाएं इस दावे की पोल खोल रहे हैं।
बाल भिखारी भारत की एक गंभीर सच्चाई है। ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस से लेकर राजधानी ट्रेनों तक, उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम, हर कोने में यह नजारा आम है। कहीं गंदे कपड़ों में लिपटे बच्चे बासी रोटी के लिए भीख मांग रहे हैं, तो कहीं कुपोषण के शिकार बच्चे भूख से बिलख रहे हैं।
सवाल उठता है कि जब देश में महिला और बाल विकास के लिए हजारों करोड़ का बजट पास होता है, जब संयुक्त राष्ट्र (UN) और तमाम अंतरराष्ट्रीय संगठन भारत में महिला और बाल कल्याण के नाम पर कार्यक्रम चला रहे हैं, तो फिर क्यों बच्चे भीख मांगने को मजबूर हैं?
हर साल बढ़ता बजट, लेकिन हालात बद से बदतर
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को हर साल हजारों करोड़ रुपये का बजट दिया जाता है। इसके अलावा, सभी राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर बाल विकास और पुनर्वास के लिए करोड़ों रुपये आवंटित करती हैं।
संयुक्त राष्ट्र भी करता है और अरबों रुपये खर्च
संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी भारत में बच्चों और महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कई योजनाएं चलाई जाती हैं। यूनिसेफ (UNICEF), यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (UNDP), यूनाइटेड नेशंस वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (WFP) जैसी संस्थाएं अरबों रुपये खर्च कर रही हैं। इसके बावजूद, हकीकत यह है कि बाल भिखारी हर ट्रेन, हर स्टेशन और हर गली-चौराहे पर देखे जा सकते हैं।
ओडिशा ही नहीं बंगाल में भी हाथ फैलाता बचपन
पहले दिन के बाद मैं कोलकाता पहुंचा और अगले दिन का सफर बैंडल से गुरूवार को ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस से हुई। सुबह 9.00 बजे दुर्गापुर के आसपास ट्रेन पहुंची कि एक 7-8 साल का बच्चा भीख मांगते देखा गया। किसी यात्री ने उसे डांट दिया तो किसी ने रुपये दो रुपये पकड़ाए। ट्रेन के अगले डिब्बे में जाने से पहले वह बच्चे की तरह मुस्कुराया नहीं, बल्कि एक परिपक्व भिखारी की तरह अगले यात्री को देखने लगा और चंद सिक्कों के लिए हाथ फैलाते आगे निकल गया।
महिला और बाल विकास विभाग की नाकामी
भारत में हर राज्य में महिला और बाल विकास विभाग मौजूद है। इनका काम बच्चों को शिक्षा, भोजन और पुनर्वास देना है। इसी विभाग के तहत लाखों आंगनवाड़ी केंद्र चलते हैं। इनके नाम पर बजट आता है, योजनाएं बनती हैं, रिपोर्ट तैयार होती हैं, लेकिन परिणाम शून्य है।
योजनाएं जो चली थीं
सिर्फ केंद्र सरकार ही नहीं, कई राज्य सरकारों ने भी बाल भिखारियों को लेकर योजनाएं बनाई थीं। उदाहरण के लिए –
1. उत्तर प्रदेश सरकार ने 2022 में ‘बाल श्रम विद्या योजना’ चलाई थी, जिसमें भीख मांगने वाले बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने और उनके परिवारों को वित्तीय सहायता देने की बात कही गई थी।
2. दिल्ली सरकार ने सड़क पर रहने वाले बच्चों के लिए कई पुनर्वास योजनाएं चलाई थीं।
3. बिहार सरकार ने भी कुछ योजनाएं बनाईं, लेकिन असर नहीं दिखा।
4. ओडिशा में बीजद नेतृत्व वाली सरकार ने भी भुवनेश्वर को भीखारी मुक्त अभियान चलाया था।
सवाल उठना लाजमी है कि…
अब सवाल उठना लाजमी है कि इन योजनाओं का कितना लाभ बच्चों को मिला? इसका जवाब उनके फैले हाथ खुद दे रहे हैं।
बाल भिखारी: समाज के लिए भी खतरा
अगर कोई बच्चा पांच-छह साल की उम्र से भीख मांग रहा है, तो उसकी मानसिकता कैसी बनेगी? यही बच्चे बड़े होकर अपराध की ओर बढ़ सकते हैं।
फिल्मों में हमने देखा है कि कई गिरोह बच्चों को नशा देकर उनसे जबरन भीख मंगवाते हैं। बहुत से बच्चे चिपकने वाला नशा करते हैं, जिससे वे धीरे-धीरे ड्रग्स के आदी हो जाते हैं।
समस्या का समाधान क्या?
सख्त कानून: भारत में बाल श्रम कानून और भिक्षावृत्ति कानून मौजूद हैं, लेकिन वे सिर्फ कागजों में सीमित हैं। सरकार को इन्हें सख्ती से लागू करना होगा और अधिकारियों की जवाबदेही तय करनी होगी।
जमीनी स्तर पर काम: सिर्फ योजनाओं की घोषणाओं से कुछ नहीं होगा। अधिकारी खुद जमीनी हकीकत को देखने निकलें, तो हालात बदल सकते हैं।
नशा और गिरोह पर सख्ती: कई बच्चे जबरन भीख मांगते हैं। ऐसे गैंग्स पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
पुनर्वास केंद्रों को मजबूत करना: सरकार को ऐसे पुनर्वास केंद्र बनाने होंगे जहां बच्चों को शिक्षा, भोजन और सुरक्षित माहौल मिल सके।
सामाजिक पहल: केवल सरकार ही नहीं, समाज को भी जागरूक होना होगा। जब तक लोग ऐसे बच्चों की मदद सिर्फ भीख देकर करेंगे, उनकी स्थिति नहीं बदलेगी।
क्या हम सच में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लायक हैं?
भारत 2027 तक जापान और जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। लेकिन अगर हमारी ट्रेनों में, स्टेशनों पर, बाजारों में छोटे-छोटे बच्चे भीख मांगते रहेंगे, तो यह आर्थिक विकास किसके लिए हो रहा है?
सवाल सिर्फ सरकार से नहीं
सवाल सिर्फ सरकार से नहीं, समाज से भी है। अगर अरबों रुपये के बजट के बावजूद भी यह तस्वीर नहीं बदली, तो कहीं न कहीं हमारी नीतियों और सोच में खामी है। जब तक हर बच्चा स्कूल में नहीं, बल्कि ट्रेनों में भीख मांगते मिलेगा, तब तक “विकसित भारत” का सपना अधूरा रहेगा।