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मातृभाषा को बचाने की जिम्मेदारी हम सभी कीः रामनाथ कोविन्द

  • प्रथम अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन का आयोजन

नई दिल्ली। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने शनिवार को कहा कि भाषा संस्कृति की वाहक होती है और संस्कृति की विरासत को सुलभता से पहुंचाने के लिए मातृभाषा को बचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और वैश्विक हिन्दी परिवार के सहयोग से कला केन्द्र के प्रांगण में तीन दिवसीय अंतराष्ट्रीय भारतीय भाषा सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
आज इसके उदघाटन कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी मनोज श्रीवास्तव, इंदिरा गांधी कला केन्द्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के श्याम परांडे, वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी, ऑक्सफोर्ड बिजनेस कालेज के प्रबंध निदेशक पद्मेश गुप्त और पद्मश्री तोमियो मिजोकामि मौजूद रहे। इस दौरान एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
इस अवसर पर कोविन्द ने कहा कि प्रवासी भारतीयों ने विश्वभर में अपना एक स्थान बनाया है। वे राष्ट्रपति रहते हुए दुनिया में जहां भी गए उन्होंने मातृभाषा पर जोर दिया और कहा कि अगली पीढ़ी में अगर भाषा नहीं पहुंची तो वे अपने जड़ों से अलग हो जायेंगे।
इस दौरान उन्होंने वर्तमान सरकार की भारतीय भाषाओं को आगे ले जाने की भूमिका को रेखांकित किया और साथ ही इस बात को भ्रम बताया कि हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में कोई प्रतिस्पर्धा है। उन्होंने कहा कि निहित स्वार्थी लोग राजनीति के लिए इसे मुद्दा बनाते हैं।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता पद्मश्री से सम्मानित जापानी नागरिक तोमियो मिजोकामि ने कहा कि भाषाओं में संबंध होते हैं और यह संबंध दूर और निकटता को भी दर्शाते हैं। जापानी में कहावत है कि दूर की बजाय निकट के रिश्ते ज्यादा मजबूत होते हैं। भारतीय भाषायें एक ही मूल से हैं, इसलिए उनमें स्नेह संबंध हैं।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने इस अवसर पर भारत की भाषाओं और बोलियों की विविधता का उल्लेख किया और इस बात को रेखांकित किया कि धीरे-धीरे बहुत सी बोलियां विलुप्त होती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि आज देश को भारतीय भाषाओं और बोलियों में बड़ी संख्या में विद्वानों की आवश्यकता है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के श्याम परांडे ने कहा कि अगली पीढ़ी तक भाषा का संचार बनाए रखना बेहद जरूरी है। संस्कृति के लिए भाषा बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय भारतीय भाषा दिवस सम्मेलन एक पहला प्रयास है और आने वाले समय में अधिक प्रतिनिधित्व के साथ इसका आयोजन किया जाएगा।
साभार – हिस

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