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मोटी फीस नहीं मिलने पर बहस से करते हैं किनारा
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मुवक्किलों ने सुप्रीम कोर्ट व बार काउंसिल से हस्तक्षेप करने की मांग
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अधिकांश सेवाओं और वस्तुओं के साथ-साथ हर विभाग की वेतन और दरें के तर्ज पर फीस निर्धारित करने की मांग
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मानक शुल्क तालिका कोर्ट परिसर में प्रदर्शित किया जाए
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निर्धारित फीस से अधिक मांगने या वसूलने पर शिकायत दर्ज करने और त्वरित कार्रवाई के लिए सख्त प्रावधान भी हो
हेमन्त कुमार तिवारी, नई दिल्ली।
वकीलों द्वारा अधिक फीस की मांग और पारदर्शिता की कमी के चलते मुवक्किलों में नाराजगी बढ़ती जा रही है। कई मुवक्किलों ने शिकायत की है कि अधिवक्ता बहस के दिन हजारों में मोटी फीस मांगते हैं और फीस नहीं मिलने पर केस में गंभीरता से भाग नहीं लेते। मुवक्किलों का आरोप है कि वकील वकालतनामा लगाते समय पूरी फीस का खुलासा नहीं करते और बाद में अतिरिक्त राशि की मांग की जाती है।
भारत में जब अधिकांश सेवाओं और वस्तुओं के साथ-साथ हर विभाग की वेतन और दरें तय हैं, तो न्यायिक सेवाओं की फीस भी निर्धारित होनी चाहिए। वकीलों की फीस को नियंत्रित करने के लिए एक मानक शुल्क तालिका तैयार की जाए और इसे कोर्ट परिसर में प्रदर्शित किया जाए, ताकि मुवक्किलों को पहले से ही जानकारी हो सके। निर्धारित फीस से अधिक मांगने या वसूलने की स्थिति में शिकायत दर्ज करने और त्वरित कार्रवाई के लिए एक सख्त प्रावधान होना चाहिए। इससे न केवल मुवक्किलों को आर्थिक सुरक्षा मिलेगी बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता भी बढ़ेगी और अधिवक्ता-मुवक्किल संबंधों में विश्वास को बढ़ावा मिलेगा।
बहस के दिन मांगते हैं 10 से 50 हजार रुपये
मुवक्किलों का कहना है कि बहस के दिन वकील 10 से 50 हजार रुपये की मांग करते हैं। यदि मुवक्किल इस अतिरिक्त राशि को नहीं दे पाते तो वकील कोर्ट में बहस में शामिल नहीं होते या फिर केस को उतनी गंभीरता से नहीं लेते। इस वजह से न्याय पाने में देरी होती है और मुवक्किल मानसिक व आर्थिक रूप से परेशान होते हैं।
वकीलों द्वारा शुल्क की पारदर्शिता में कमी
मुवक्किलों का आरोप है कि वकील केस की शुरुआती प्रक्रिया में ही तय नहीं करते कि पूरे मामले में कितना शुल्क लगेगा। शुरुआती चर्चा में केवल वकालतनामा की फीस बताई जाती है और केस की सुनवाई शुरू होने के बाद कई प्रकार के अतिरिक्त खर्च सामने आते हैं। इससे मुवक्किलों को आर्थिक बोझ का सामना करना पड़ता है और न्याय तक पहुंच मुश्किल हो जाती है।
आम जनता की सुप्रीम कोर्ट और बार काउंसिल से मांग
मामले को देखते हुए कई मुवक्किलों ने सुप्रीम कोर्ट और बार काउंसिल से अपील की है कि एक मानक प्रक्रिया बनाकर वकीलों की फीस तय की जाए। उनका कहना है कि जैसे डॉक्टरों की फीस में पारदर्शिता होती है, वैसे ही वकीलों की फीस में भी होनी चाहिए। मुवक्किलों का मानना है कि फीस तय होने से न केवल न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी बल्कि न्याय तक पहुंच भी आसान होगी।
संघर्षरत मुवक्किलों की कठिनाई
कुछ मुवक्किलों का कहना है कि वे केवल न्यूनतम आय वाले लोग हैं और अधिक फीस चुकाना उनके लिए मुश्किल होता है। कई बार उन्हें अपने घर-परिवार की जरूरतों को दरकिनार कर वकीलों की फीस चुकानी पड़ती है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी कमजोर हो जाती है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और बार काउंसिल को इस ओर ध्यान देना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि वकीलों की फीस आम जनता के लिए सुलभ हो।
न्याय तक पहुंच बनाए रखने की पहल की आवश्यकता
इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करते हुए, मुवक्किलों ने सरकार से भी अपील की है कि वे न्याय प्रक्रिया को सभी के लिए किफायती बनाएं और इस संबंध में ठोस कदम उठाएं। फीस की पारदर्शिता और एक तय मापदंड से आम जनता की समस्याओं का समाधान हो सकता है और न्यायिक व्यवस्था में विश्वास बढ़ सकता है।
एकतरफा फैसलों के कारण बढ़ती है वकीलों की मोटी फीस
वकीलों द्वारा भारी फीस वसूली के मामले में आम जनता का कहना है कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और एकतरफा फैसलों के कारण मुवक्किलों को मोटी फीस चुकानी पड़ती है। अधिवक्ता बिना पहले से फीस का खुलासा किए मामले की गंभीरता और सुनवाई की जटिलताओं के आधार पर अचानक से अधिक पैसे की मांग कर देते हैं।
एकतरफा फैसलों के चलते बढ़ रही मुवक्किलों की परेशानी
मुवक्किलों का आरोप है कि वकील अक्सर केस की शुरुआत में कम फीस बताते हैं लेकिन जैसे-जैसे मामला आगे बढ़ता है, फीस बढ़ा देते हैं। कई बार वकीलों का तर्क होता है कि केस जटिल हो गया है, लेकिन इसका खामियाजा मुवक्किलों को भुगतना पड़ता है। वे आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद कोर्ट के चक्कर काटने को मजबूर होते हैं।
आर्थिक संकट से जूझते मुवक्किल
बढ़ती फीस के चलते कई मुवक्किल अपने केस को आगे बढ़ाने में असमर्थ हो जाते हैं। कुछ मामलों में, उन्हें वकीलों के एकतरफा फैसले और मोटी फीस के कारण केस छोड़ना पड़ता है या सस्ते वकील के पास जाना पड़ता है, जिससे उनका न्याय पाने का सपना अधूरा रह जाता है।
न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
एकतरफा फैसलों पर अंकुश लगाने के लिए एक सख्त नीति और शुल्क नियंत्रण प्रणाली की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट और बार काउंसिल से आम जनता की उम्मीदें हैं कि वे इस दिशा में ठोस कदम उठाकर न्याय की पहुंच को हर व्यक्ति के लिए सुलभ और किफायती बनाएं।
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