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बुंदेलखंड में काव्य का प्रभाव ज्यादा : महेश कटारे

झांसी। प्रख्यात साहित्यकार महेश कटारे ने कहा कि बुंदेलखंड में कविता यानी काव्य का प्रभाव बहुत ज्यादा है। बुंदेलखंड काव्य की अनुपम धरती है। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में आयोजित हिंदी की राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में उन्होंने कहा कि यह बुंदेलखंड शौर्य की धरती है। शौर्य का वर्णन जितनी खूबसूरती से काव्य में किया जा सकता है उतना अन्य विधा में नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी की चिंताओं को देखते हुए साहित्य में नए उद्योग करने ही पड़ेंगे।
श्री कटारे ने कहा कि कविता लिखना आसान नहीं है। उन्होंने मुल्ला नसरुद्दीन की कहानी भी सुनाई। उन्होंने कहा कि हम अपनी खोई हुई चीजों को ढूंढ़ने के लिए साहित्य में जाते हैं। उन्होंने जगनिक और फणीश्वरनाथ रेणु की रचनाओं पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज बुंदेली में बहुत प्रभावी लेखन किया जा रहा है। उन्होंने डा वृंदावन लाल वर्मा के गांव की मौजूदा दशा और उनके साहित्यिक खूबियों की भी चर्चा की। जो सोच नहीं पाता है वो चूहा बन जाता है।
हिंदुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज, हिंदी विभाग, पंडित दीनदयाल उपाध्याय शोध पीठ, बीयू और राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त महाविद्यालय, चिरगांव के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन आधुनिक हिंदी साहित्यकार साहित्यकार विकास में बुंदेलखंड का योगदान, हिंदी साहित्य की विकास यात्रा और बुंदेली भाषा एवं साहित्य विषय पर आयोजित सत्र की अध्यक्षता डा. आद्या प्रसाद द्विवेदी ने की। डा. द्विवेदी ने कहा कि लोक साहित्य ने हिंदी साहित्य को बहुत प्रभावित किया है। रामचरित मानस में लोक शब्द 27 बार आया है। उन्होंने कहा कि यदि साहित्य को लोक से विलगित कर दिया तो वह थोथा रह जाएगा। उन्होंने बताया कि उन्हें डा वृंदावन लाल वर्मा से रू ब रू होने का सौभाग्य मिला। उनसे मृगनयनी पर भी सवाल पूछे। उन्होंने कहा कि मृगनयनी में भी लोक बार बार आया है। उन्होंने समाज में मोबाइल की बढ़ती लत पर भी चिंता जताई। उन्होंने सभी विद्यार्थियों को पत्र और पत्रिकाओं को पढ़ने की सलाह दी। उन्होंने हबीब तनवीर का जिक्र करते हुए कहा कि लोक शैली अपनाने के नाते वे समाज में प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने लोक कलाओं की खूबियों को भी रेखांकित किया।
रांची से आए प्रो जेवी पाण्डेय ने भगवान श्रीराम, महादेव और हनुमान जी को नमन करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त सर्वाधिक प्रिय कवि रहे। उन्होंने कहा कि वे गुप्त जी की कविताओं को बचपन से ही पढ़ते और याद करते रहे। उन्होंने अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी समेत कई रचनाओं का उल्लेख किया। राम काव्य परंपरा में अनेक कवियों का योगदान है। उन्होंने राष्ट्रकवि को आधुनिक युग का तुलसीदास बताया। उन्होंने साकेत की रचना के मर्म को भी रेखांकित किया। हिंदी कविता को गुप्त जी ने बहुत कुछ दिया है। उनकी साहित्यिक साधना अतुलनीय है। गुप्त जी भारतीय संस्कृति के आख्याता हैं। गुप्त जी का साहित्य अनमोल है।
डा. बहादुर सिंह परमार ने कहा कि सियासत के लिहाज से बुंदेलखंड बहुत समृद्ध है। उन्होंने कहा कि आज बुंदेली गद्य, पद्य, निबंध, संस्मरण और नाटक बहुत बड़ी संख्या में लिखे जा रहे हैं लेकिन उनका समुचित ढंग से प्रचार और प्रसार नहीं हो पा रहा है। उन्होंने वर्तमान में सक्रिय लेखकों और साहित्यकारों का जिक्र भी किया।
सिद्धार्थ नगर से आए डा सत्येन्द्र दुबे ने कहा कि समूचा हिंदी साहित्य केवल स्त्री के महत्व को उद्घाटित, स्थापित और रेखांकित करने में जुटा रहा। यह काम बुंदेलखंड में प्रमुखता से हुआ है। उन्होंने रोबोट फिल्म का उदाहरण देते हुए बताया कि यदि आप समय से आगे निकल जाते हैं तो सभी प्रश्नों का जवाब नहीं मिल पाता है। दरअसल बाज़ार हर व्यक्ति को केवल उपभोक्ता बनाए रखना चाहता है। यदि आप सोचेंगे तो यह बाजार आप को खारिज या डिस्मेंटल कर देगा।
सीतापुर से आए डा शशांक कुमार सिंह ने बुंदेलखंड के मनीषियों को नमन करते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मानव जीवन अपने आप में एक पहेली है। इसे समझने के लिए हर मनुष्य को विविध चुनौतियों से निपटना होता है। बुंदेलखंड की बिरासत काफी समृद्ध है। बुंदेली लोक साहित्य आम जन की विभिन्न समस्याओं, पीड़ाओं और विसंगतियों को प्रमुखता से रेखांकित करता है। बुंदेलखंड में प्रेम, भक्ति और पराक्रम की त्रिवेणी सदैव बहती रही।
डा. चित्र गुप्त श्रीवास्तव ने कहा कि बुंदेलखंड क्षेत्र के अनेक कवि अब भी अल्प ज्ञात हैं। उनका साहित्य लिपिबद्ध नहीं किया जा सका है। उन्होंने कहा कि मैथिली शरण गुप्त ने इतिहास और साहित्य को जोड़ने का काम किया है। लेकिन अब भी बुंदेली में गद्य लिखे जाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है।
हिंदी विभागाध्यक्ष और कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो मुन्ना तिवारी ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अपनी थाती को संजोए रखने के लिए हमने यह राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की। उन्होंने सभी साहित्यकारों की रचनाओं से भी परिचित कराया। लोक भाषाएं ही हिन्दी की असली ताकत हैं।
संचालन डा श्रीहरि त्रिपाठी ने किया। सभी अतिथियों को पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम में प्रो रक्ताभ भास्कर, प्रो पुनीत बिसारिया, प्रो रचना विमल, डा. अचला पाण्डेय, डा. जय सिंह, उमेश शुक्ल, डा. सुनीता वर्मा, डा. सुधा दीक्षित, डा. प्रेमलता, नवीन पटेल, पुनीत श्रीवास्तव, अजय कुमार गुप्त, कौशल त्रिपाठी, राघवेन्द्र दीक्षित, शैलेंद्र तिवारी, अभिषेक कुमार, अतीत विजय समेत अनेक लोग उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में आए सभी अतिथियों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।
साभार -हिस

 

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