नई दिल्ली। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने कहा है कि भेदभाव धर्म सम्मत नहीं है, यह तो मानवता पर आघात एवं अन्याय है। हिन्दू समाज में खड़ी असमानता की हर दीवार को हम ध्वस्त करेंगे। यदि सबके हृदय में राम हैं तो वहां ऊंच-नीच या भेदभाव कैसा? हम सभी का यह सामाजिक कर्तव्य है कि भेदभाव के दंश से समाज को मुक्त करें। तभी तो हमारा देश बैकुंठ बनेगा।
बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य में राम नवमी के ठीक पहले अपने एक सोशल मीडिया संदेश में आलोक कुमार ने रविवार को कहा कि सच्चे अर्थों में रामराज्य तभी प्रतिष्ठित होगा जब देश में हर वर्ग और व्यक्ति सुखी, संपन्न, सुशिक्षित, धर्म के अनुकूल जीने वाले व पुरुषार्थी हों। हिंदू समाज के सामूहिक पुरुषार्थ एवं गत 500 वर्षों के संघर्ष की परिणति ने ही तो अयोध्या में भगवान राम को उनके जन्म स्थान पर बने मंदिर में पुन: प्रतिष्ठित किया। उस दिन जब दोपहर के 12 बजेंगे तो वहां छत में से आती हुई सूर्य की किरणें उनके मस्तक का अभिषेक करेंगी। यह आनंद का समय है।
आलोक कुमार ने कहा कि धर्म सम्मत नहीं है भेदभाव को मानना। धर्म सम्मत तो है एकात्मता, धर्म सम्मत है समानता, धर्म सम्मत है समरसता। इसको समझ कर ही भारतीय समाज ने अपने दोषों को दूर करने का निरंतर प्रयत्न किया है और आगे भी ऐसे प्रयास जारी रखने होंगे।
उन्होंने कहा कि राजनीतिक समानता हमें संविधान ने दी। प्रत्येक का वोट बराबर है लेकिन सामाजिक समानता हम सबको प्रयत्न करके देना है। संविधान में लिखा गया कि छुआछूत समाप्त की जाती है, मनुष्यों को बराबर के अधिकार दे दिए जाते हैं, आरक्षण की व्यवस्था की जाती है। समाज ने भी निरंतर प्रयत्न करते हुए भेदभाव की इस दीवार को गिराने का प्रयत्न किया है। ये प्रयत्न चल रहे हैं किन्तु इसको पूरा करना होगा।
आलोक कुमार ने कहा कि राम के भक्त विभाजित हो कर नहीं रह सकते। इसलिए मन में जहां कहीं भी थोड़ा भी छोटापन लगता हो, उसको दूर करके ही एक ताकतवर समाज का निर्माण संभव है। विहिप ने तो 1969 के उडुपी के सम्मेलन में ही प्रस्ताव पास करके यह मंत्र सबके लिए दिया था कि ‘हिंदवा: सोदरा सर्वे, ना हिन्दू पतितो भवेत’ अर्थात सब हिंदू एक हैं, एक ही मां के पुत्र हैं। इसी भावना पर ही हमें आगे भी काम करते रहना है। उन्होंने कहा कि सरकार की योजनाओं को सभी वर्गों तक पहुंचाने का प्रयत्न करना हम सबका दायित्व है। उद्योग व्यापार, स्वास्थ्य और शिक्षा का स्तर सुधरे तब बराबरी आएगी। इस बराबरी के लिए सबको अपनी ज़िम्मेदारी निभानी है।
उन्होंने कहा कि जब हम लोग राम का स्मरण करते हैं तो हम सबको देखना पड़ेगा कि क्या हम में से हर एक के हृदय में राम हैं कि नहीं। और अगर सबके हृदय में राम हैं, तो कोई छोटा-बड़ा नहीं हो सकता। कोई छूत-अछूत नहीं हो सकता। मनुष्यों में छोटा-बड़ा मानने की प्रथा मनुष्यता का अपमान है। ये अन्याय है और इस अन्याय को स्वीकारना, क्षमा के लायक नहीं है।
साभार – हिस