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भाकपा बांदा सहित पांच सीटों पर उतारेगी प्रत्याशी
बांदा। उत्तर प्रदेश में कम्युनिस्ट पार्टी ने लोकसभा की बांदा सहित पांच सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया है। इससे इंडिया (India) गठबंधन में एक और दरार पड़ती नजर आ रही है। आईएनडीआईए (इंडिया) गठबंधन और कम्युनिस्ट पार्टी का देश भर में गठबंधन है। उप्र में एक भी सीट न मिलने पर कम्युनिस्ट पार्टी ने यह कदम उठाया है। हालांकि कम्युनिस्ट पार्टी का पहले जैसे जनाधार नहीं रह गया है।
इंडिया गठबंधन में शामिल घटक दल गठबंधन धर्म को निभा नहीं पा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन होते-होते रह गया। इसके बाद पल्लवी पटेल ने भी तीन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर दिया, जिससे पल्लवी की पार्टी अपना दल कमेरावादी का गठबंधन खटाई में पड़ गया। वहीं जनाधिकार पार्टी भी इंडिया गठबंधन की वकालत करके कुछ सीटें मांग रही हैं लेकिन अभी तक बात नहीं बन पाई है। इधर कम्युनिस्ट पार्टी ने भी नखरा दिखाना शुरू कर दिया है। जिससे उप्र में कम्युनिस्ट से गठबंधन टूटने की नौबत आ सकती है।
दो दिन पहले चित्रकूट के रामनाथ रामकिशन धर्मशाला में कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक संपन्न हुई। इस बैठक में केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य व उप्र प्रभारी डॉक्टर गिरीश व प्रदेश के राज्य सचिव अरविंद राज स्वरूप मौजूद थे। इसी बैठक के दौरान पार्टी के नेताओं ने बताया कि पार्टी बांदा लोकसभा क्षेत्र से साहित्यकार रामचंद्र सरस को चुनाव मैदान में उतरेगी। इसके अलावा शाहजहांपुर, अयोध्या, लालगंज और घोसी लोकसभा सीट पर तथा रॉबर्ट गंज के विधानसभा उपचुनाव में अपना अलग प्रत्याशी खड़ा करेगी, अन्य सीटों पर सपा कांग्रेस प्रत्याशी का समर्थन करेंगे।
गठबंधन होने के बावजूद कम्युनिस्ट पार्टी ने उप्र की पांच सीटों में किन कारणों से अपने प्रत्याशी उतारे हैं इस बारे में यूपी प्रभारी डॉ. गिरीश का कहना है कि पूरे देश में उनका दल इंडिया गठबंधन में है। इसके बाद भी सपा मुखिया अखिलेश यादव व कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने आपस में बैठक कर सीटों का बंटवारा कर लिया। इसमें उनकी राय नहीं ली गई, ऐसे में प्रदेश की पांच सीटों पर हम अपने प्रत्याशी उतार रहे हैं। बांदा सीट से रामचंद्र सरस चुनाव लड़ेंगे। वह पहले भी 2014 में इसी सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। शेष चार सीटों के प्रत्याशियों की जल्दी ही घोषणा कर दी जाएगी।
बताते चलें कि कभी बुंदेलखंड में अपनी अलग पहचान बनाने वाली कम्युनिस्ट पार्टी का अब पहले जैसा बोलबाला नहीं रहा। अब तो पार्टी अपने अस्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में जुटी है। 60 के दशक में कम्युनिस्ट पार्टी की बांदा लोकसभा सीट पर दस्तक हुई थी। पहले राम सजीवन चुनाव लड़े लेकिन हार गए। इसके बाद 1967 में कम्युनिस्ट के जागेश्वर यादव ने चुनाव जीत कर लाल परचम फहराया था। इसके बाद जनसंघ का उदय होने से कांग्रेस और जनसंघ के बीच लड़ाई में कम्युनिस्ट पीछे चली गई। लेकिन 80 के दशक में एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी की वापसी हुई। 1984 में राम सजीवन फिर चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस की लहर के कारण चुनाव हार गए। 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में राम सजीवन ने जीत हासिल की। 1991 के राम मंदिर आंदोलन के कारण कम्युनिस्ट को पराजित होना पड़ा। 90 के दशक में राम सजीवन कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़कर बसपा में चले गए, जिससे कम्युनिस्ट में नेताओं का अकाल पड़ गया। हालांकि विधानसभा चुनाव में भी कम्युनिस्ट का वर्चस्व कायम था। बांदा चित्रकूट लोकसभा की पांच सीटों में चित्रकूट, बबेरू और नरैनी में कम्युनिस्ट पार्टी ने 1972, 1977, 1985 और 1989 में जीत हासिल की। लेकिन 90 के दशक के बाद कम्युनिस्ट अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
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