Home / National / जोरावर टैंक के लिए जर्मनी ने नहीं दिए इंजन, अब अमेरिकी कंपनी कमिंस को चुना गया

जोरावर टैंक के लिए जर्मनी ने नहीं दिए इंजन, अब अमेरिकी कंपनी कमिंस को चुना गया

  •  चीन सीमा पर उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों में तैनात किये जाने हैं हल्के टैंक

  •  डीआरडीओ का पहला प्रोटोटाइप टैंक 2023 के मध्य तक होना था रोल आउट

नई दिल्ली, जर्मनी की फर्म से समय पर इंजन की आपूर्ति न हो पाने से भारत का ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ परवान नहीं चढ़ सका है, जबकि अब तक इन हल्के टैंकों की आपूर्ति शुरू हो जानी थी। इन टैंकों को चीन सीमा पर पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में उन उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों में तैनात किया जाना है, जहां भारी-भरकम वजन वाले टैंक नहीं ले जाए जा सकते हैं। अब इंजन की सप्लाई के लिए अमेरिकी कंपनी कमिंस को चुना गया है।

पूर्वी लद्दाख में चीन से टकराव के बाद 12 लाख सैनिकों वाली मजबूत भारतीय सेना ने 40 से 50 टन वजन वाले रूसी मूल के टी-90 और टी-72 मुख्य युद्धक टैंक निचाई वाले इलाकों में तैनात किये हैं। सेना ने चीन को चौतरफा घेरने के लिए एलएसी पर भीष्म टी-90, टी-72 अजय और मुख्य युद्धक टैंक अर्जुन की भी तैनाती की है। इसके बावजूद उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में टैंक तैनात नहीं किए जा सके हैं, क्योंकि इन वजनी टैंकों को हजारों फीट की ऊंचाई पर चढ़ाना मुश्किल है। इन परिस्थितियों में हल्के वजन वाले टैंकों की जरूरत महसूस की गई है, ताकि इन्हें 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर ले जाया जा सके।
दरअसल, लद्दाख के ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों तक पहुंचने के लिए सेना के जवानों को कई दर्रों से गुजरना पड़ता है। ऐसी स्थिति में ऑपरेशन के दौरान आवश्यकता पड़ने पर टी-72 और अन्य भारी टैंक उस स्थान तक नहीं पहुंच सकते हैं। पूर्वी लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में उच्च ऊंचाई वाले युद्ध क्षेत्रों में हल्के टैंकों को ही तैनात किया जा सकता है। इसलिए सरकार ने खुद ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ के तहत हल्के वजन वाले 354 टैंकों का निर्माण करने का फैसला लिया। सेना ने मेक-1 श्रेणी के तहत निजी क्षेत्र से सभी 354 टैंकों का उत्पादन कराने की पुरजोर वकालत की थी, लेकिन डीआरडीओ ने सेना के इस प्रस्ताव को नकार दिया।

योजना के मुताबिक 25 टन से कम वजन वाले 354 लाइट टैंकों में से 59 डीआरडीओ को बनाने थे। शेष 295 टैंक बनाने के लिए निजी क्षेत्र की कंपनी लार्सन एंड टुब्रो डीआरडीओ के कॉम्बैट व्हीकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट के साथ ‘लीड सिस्टम इंटीग्रेटर’ के रूप में काम कर रही थी। इसके बाद टैंक में लगने वाले इंजन के लिए जर्मनी की एक फर्म से समझौता किया गया था, लेकिन समय पर इंजन की आपूर्ति न हो पाने से भारत का ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ परवान नहीं चढ़ सका है। प्रस्ताव के मुताबिक अगर योजना आगे बढ़ती, तो डीआरडीओ का पहला लाइट टैंक प्रोटोटाइप 2023 के मध्य तक रोल आउट होना था, लेकिन इंजन की अनुपलब्धता से पूरा प्रोजेक्ट पीछे चला गया। अब इंजन की सप्लाई के लिए अमेरिकी कंपनी कमिंस को चुना गया है।
क्या है प्रोजेक्ट जोरावरडीआरडीओ और लार्सन एंड टुब्रो पहले ही टैंक का डिजाइन तैयार कर चुके हैं। यह के-9 वज्र सेल्फ प्रोपेल्ड आर्टी 155 मिमी. के चेसिस पर आधारित है। लगभग 17,500 करोड़ रुपये की लागत से ‘प्रोजेक्ट जोरावर’ के तहत बख्तरबंद लड़ाकू वाहन के लिए इस परियोजना को रक्षा अधिग्रहण परिषद से ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत मंजूरी दी गई थी। लाइट टैंक के इस प्रोजेक्ट का नाम जम्मू-कश्मीर रियासत के पूर्व कमांडर जोरावर सिंह के नाम रखा गया है। जोरावर सिंह ने 19वीं सदी में चीनी सेना को हराकर तिब्बत में अपना परचम लहराया था। प्रोजेक्ट जोरावर के तहत भारतीय सेना में 354 लाइट टैंक शामिल किए जाएंगे। ये हल्के टैंक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रोन सिस्टम से लैस होंगे। इन टैंकों को चीन से सटी सीमा और तनावग्रस्त इलाकों में तैनात किया जाएगा।
साभार -हिस

Share this news

About desk

Check Also

Land Scammers POLKHOL-1 यूपी में माफियागिरी का नया रूप, लैंड स्कैमर्स सक्रिय

यूपी में माफियागिरी का नया रूप, लैंड स्कैमर्स सक्रिय

अधिकारियों की मिलीभगत से फल-फूल रहा जमीन फर्जीवाड़ा का काम फर्जी दस्तावेजों के सहारे माफियाओं …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *