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डॉ. मनोज चौधरी ने लखनऊ विवि की प्रो. टंडन के निर्देशन में किया शोध
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तीर्थराज पनेरू का शोधकार्य प्रो. टंडन एवं प्रो.जोशी के निर्देशन में जारी है
लखनऊ, उत्तर प्रदेश के लखनऊ विश्वविद्यालय से शोध करने वाले नेपाल के दो विश्वविद्यालयों के दो प्राध्यापकों को भारत सरकार का विज्ञान एवं अनुसंधान फैलोशिप मिलेगा। दोनों शोधकर्ता आंत्र की दवा और कैंसर की दवाओं पर काम कर रहे हैं।
फेलोशिप पाने वालों में काठमांडू स्थित त्रिभुवन विश्वविद्यालय के अमृत कैंपस के सहायक प्राध्यापक डॉ. मनोज कुमार चौधरी और महेंद्रनगर के सुदूर पश्चिमी विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक तीर्थराज पनेरू हैं। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा भारत विज्ञान अनुसंधान फेलोशिप कार्यक्रम के तहत भारत आने के लिए अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड के शोधकर्ताओं से आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं। इसके तहत शोधार्थी भारत में 3-6 महीने की अवधि के लिए इंजीनियरिंग, चिकित्सा, कृषि सहित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के सीमांत और उन्नत क्षेत्रों में शोध कार्य कर सकते हैं।
डॉ. चौधरी ने त्रिभुवन विश्वविद्यालय के प्रो. भवानी दत्त जोशी और लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रो. पूनम टंडन के निर्देशन में शोधकार्य पूरा किया। इस फेलोशिप के तहत डॉ. चौधरी अब हॉफलाइटली दवा की औषधीय गतिविधि पर कार्य करेंगे। वहीं, तीर्थराज पनेरू अभी प्रो. जोशी और प्रो. टंडन के निर्देशन में शोधकार्य कर रहे हैं। वे बेंजनिडाजोल की दवा गतिविधि का अध्ययन करेंगे, जो कैंसर रोधी, उच्च रक्तचाप रोधी, विषाणु रोधी, कवक रोधी, मधुमेह रोधी है।
लखनऊ विश्वविद्यालय की डीन प्रो. पूनम टंडन ने बताया कि इस वर्ष अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड से आवेदन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को प्राप्त हुए। विशेषज्ञों के एक पैनल की समीक्षा के बाद 50 आवेदक फेलोशिप प्राप्त करने में सफल रहे। इस फेलोशिप के तहत छह महीने तक 50 हजार रुपये प्रति माह, एक बार का यात्रा भत्ता तथा 30 हजार रुपये का आकस्मिक अनुदान प्रदान किया जाता है। यह कार्यक्रम शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को अपनी शोध क्षमता बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई दी। प्रो. राय ने कहा कि ये कदम स्नातक शिक्षा से लेकर अनुसंधान तक के हर स्तर पर परिसर के अंतरराष्ट्रीयकरण में महत्वपूर्ण कदम है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भावना को सही मायने में दर्शाता है।
साभार -हिस