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आपातकाल के खिलाफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने किया था सत्याग्रह
लखनऊ, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कम्युनिस्टों की सलाह पर देश पर आपातकाल थोपा था। कश्मीर समस्या भी पंडित नेहरू की जिद का परिणाम थी। इंदिरा गांधी के समय भी उनकी जिद ही काम करती रही। इंदिरा गांधी ने 1969 में राष्ट्रपति पद के कांग्रेस उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के खिलाफ वीवी गिरि को उतारा। उस समय एक तरफ इंदिरा गांधी और कम्युनिस्ट नेता थे तो दूसरी तरफ कांग्रेस के अन्य सारे नेता। इस प्रकार कम्युनिस्ट नेता कांग्रेस के अंदर धीरे-धीरे स्थापित होते चले गये। इंदिरा गांधी की मनमानी बढ़ती गयी। चुनाव में इंदिरा गांधी ने अनैतिक हथकंडे अपनाये। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक वीरेन्द्र सिंह ने कहीं।
आपातकाल के खिलाफ संघर्ष करने वाले वीरेन्द्र सिंह ने हिन्दुस्थान समाचार से कहा कि संघ के दो स्वयंसेवकों की गवाही के कारण इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित किया गया। इंदिरा ने सब तरह से प्रलोभन दिये थे लेकिन संघ के दो कार्यकर्ताओं ने निर्भीकता पूर्वक प्राणों की बाजी लगाकर गवाही दी। 1975 में 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय आया और इंदिरा का चुनाव अवैध करार दिया गया। उसी तिथि को गुजरात के चुनाव का परिणाम आया। वहां पर विपक्ष के नेता बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री हुए। इन दोनों घटनाओं के कारण इंदिरा तिलमिला गयीं और देश में 25 जून 1975 को आपातकाल थोप दिया। 25 जून की काली रात को जय प्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई जैसे देश के प्रमुख नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया।
पुलिसिया कहर से समाज में था भय का माहौल
वीरेन्द्र सिंह के मुताबिक कानपुर में संघ शिक्षा वर्ग लगा था। उसके बाद हम लोग उन्नाव आये। 04 जुलाई को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। संघ के सभी कार्यालयों पर छापा डाला गया। आपातकाल के खिलाफ काम करने वाले लोगों को यातनाएं दी जाने लगीं। पुलिसिया कहर से समाज में भय व्याप्त हो गया। आपातकाल के समय जो अत्याचार हुआ इतिहास में ऐसी मिशाल कहीं नहीं मिलेगी।
समाज को भय से निजात दिलाने के लिए संघ ने सत्याग्रह किया
प्रमुख नेता जब जेल में बंद हो गये तो समाज में हलचल कैसे हो, विरोध कौन करे। संघ ने तय किया कि समाज को भय और आतंक से छुटकारा दिलाने के लिए आपातकाल का विरोध किया जाएगा। मीसा के तहत 34,988 लोग जेल में बंद किये गये। देशभर में सत्याग्रह हुआ। आपातकाल खत्म होने के बाद संघ के तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने कहा था कि भूल जाओ और क्षमा करो। हम और हमारा जीवन देश और समाज के लिए है। स्वयंसेवक अपने काम में लग गये। जब-जब देश एवं समाज पर संकट आया है संघ ने उस चुनौती को स्वीकार किया है।
वीरेन्द्र सिंह के मुताबिक उन्नाव में मैं रामकरन के घर पर था। पुलिस का छापा पड़ा। छापा पड़ने के बाद पुलिस ने घर को घेर लिया। रामकरन की सूझबूझ के कारण हम लोग बच गये। पंडित गिरजा शंकर पाठक थे संघ के नगर संघचालक थे। पुलिस उन्हें पकड़ ले गयी। उनकी पहुंच होने के कारण शिफारिश लगवाकर उन्हें छुड़वा लाये। उनके घर से हमारे पास संदेश आया कि मिलना चाहते हैं। हम उनके घर गये। गिरजा शंकर ने घरवालों से कहा कि पुलिस से हमको बचा लाये हो ऊपर वाले का बुलाया आएगा तो कैसे बचाओगे। पता चला कि दूसरे दिन पंडित गिरजा शंकर पाठक की मृत्यु हो गयी।
आपातकाल में बच्चों और बूढ़ों की जबरन नसबंदी कराई गयी
वीरेन्द्र सिंह के मुताबिक उन्नाव नगर में एक विद्यार्थी पोस्टर लगा रहा था। उस पर लिखा था अन्याय और अत्याचार के सामने झुकना कायरता है। बालक को पुलिस ने यातनाएं दीं। बर्फ की सिल्ली पर लिटाकर पिटाई की गयी। पुलिस पूछती रही कि बताओ वीरेन्द्र सिंह कहा हैं। वह बालक कहता था हमें मालूम है लेकिन बताउंगा नहीं। पुलिस ने बहुत पिटाई की लेकिन उस बालक ने हमारा पता नहीं बताया। एक जवाहर लाल नाम का विद्यार्थी था। उसको प्रताड़ित किया गया।
उस समय वकील नहीं मिलते थे। ऐसे संकट के समय बाजारों में ट्रक आकर खड़े होते थे। पुलिस जनता को पशुओं की तरफ घेरकर ट्रकों में भरती थे। बच्चे और बूढ़ों की नसबंदी जबरन कराई जाती थी। पुलिस को देखकर गांव के लोग खेतों में भग जाते थे। ऐसा आतंक था। एक बाबा देवानन्द थे उन्हें जेल में इस तरह पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गयी।
साभार -हिस