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राजद्राेह कानून की समीक्षा को सुप्रीम कोर्ट तैयार, लंबित मामलों पर पूछा सरकार का रुख

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट राजद्रोह कानून की समीक्षा के लिए केंद्र को समय देने के लिए तैयार हो गया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम समय देंगे, पर सॉलिसीटर जनरल निर्देश लेकर बताएं कि लंबित केस और भविष्य में दर्ज होने वाले केस पर क्या असर होगा। कोर्ट ने उनसे यह भी पूछा कि क्या अभी 124ए के लंबित केस स्थगित रखे जा सकते हैं। इस मामले पर कल यानी 11 मई को भी सुनवाई होगी।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि उसने राजद्रोह के मामले में लगने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की फिर से जांच करने और इस पर दोबारा विचार करने का फैसला किया है।

केंद्र सरकार ने हलफनामा के जरिये कहा है कि इस प्रावधान के बारे में विभिन्न न्यायविदों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और सामान्य रूप से नागरिकों की ओर से सार्वजनिक रूप से अलग-अलग विचार व्यक्त किए गए हैं। केंद्र ने कहा है कि वो प्रधानमंत्री की इस धारणा के अनुरूप है कि हमारे देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं, वह अपने औपनिवेशिक बोध को दूर करने की दिशा में काम करना चाहते हैं। इसी भावना के तहत केंद्र सरकार ने 2014-15 में 1500 से अधिक पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है। केंद्र सरकार ने 25 हजार से अधिक अनुपालन बोध को भी समाप्त कर दिया है, जो हमारे देश के लोगों के लिए गैरजरूरी बाधा उत्पन्न कर रहे थे। विभिन्न किस्म के अपराध जो लोगों को बिना सोचे समझे बाधा पहुंचा रहे थे, उन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।

5 मई को कोर्ट ने कहा था कि सबसे पहले वो इस बात पर विचार करेगा कि मामला संविधान बेंच को सौंपा जाए या नहीं। 15 जुलाई, 2021 को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह जैसे कानून की जरूरत है। चीफ जस्टिस ने कहा था कि कभी महात्मा गांधी, तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज को दबाने के लिए ब्रिटिश सत्ता इस कानून का इस्तेमाल करती थी। क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि राजद्रोह में दोषी साबित होने वालों की संख्या बहुत कम है लेकिन अगर पुलिस या सरकार चाहे तो इसके जरिये किसी को भी फंसा सकती है। इन सब पर विचार करने की जरूरत है। याचिका सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एस जी बोम्बतकरे ने दायर की है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि राजद्रोह कानून वापस नहीं लिया जाना चाहिए। बल्कि कोर्ट चाहे तो नए सख्त दिशा-निर्देश जारी कर सकता है ताकि राष्ट्रीय हित में ही इस कानून का इस्तेमाल हो।

12 जुलाई, 2021 को राजद्रोह के कानून के खिलाफ मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ल की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता की ओर से वकील तनिमा किशोर ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए संविधान की धारा 19 का उल्लंघन करती है। यह धारा सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कानून की वैधता को बरकरार रखा था लेकिन अब इसके साठ साल बीतने के बाद ये कानून आज संवैधानिक कसौटी पर पास नहीं होता है।
याचिका में कहा गया है कि भारत पूरी लोकतांत्रिक दुनिया में अपने को लोकतंत्र कहता है। ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, घाना, नाइजीरिया और युगांडा ने राजद्रोह को अलोकतांत्रिक करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि दोनों याचिकाकर्ता एक मुखर और जिम्मेदार पत्रकार हैं। वे संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हैं। दोनों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कार्टून शेयर करने के लिए धारा 124ए के तहत राजद्रोह की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज किए गए हैं।
साभार-हिस

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