वाराणसी/नई दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन करते हुये कहा कि उनके लिए भगवान लोगों के रूप में आते हैं और हर भारतीय भगवान का हिस्सा हैं। उन्होंने लोगों से देश के लिए ‘स्वच्छ’, ‘सृजन’ और ‘आत्मनिर्भर’ भारत के लिए संकल्पित होने का आग्रह करते हुये कहा कि काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण भारत को एक निर्णायक दिशा देकर उज्जवल भविष्य की तरफ ले जायेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने स्वच्छता को जीवन का एक तरीका बताते हुये इस उद्यम में विशेष रूप से नमामि गंगे मिशन में लोगों की भागीदारी का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि गुलामी के लंबे कालखंड ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास ऐसा तोड़ा कि हम अपने ही सृजन पर विश्वास खो बैठे। आज हजारों वर्ष पुरानी इस काशी से मैं प्रत्येक देशवासी का आह्वान करता हूं कि पूरे आत्मविश्वास के साथ सृजन करो, नवप्रवर्तन करो और अभिनव तरीके से करो।
उन्होंने कहा कि तीसरा एक संकल्प जो आज हमें लेना है, वह है आत्मनिर्भर भारत के लिए अपने प्रयास बढ़ाने का। यह आजादी का अमृत-काल है। हम आजादी के 75वें साल में हैं। जब भारत सौ साल की आजादी का समारोह मनायेगा, तब का भारत कैसा हो, उसके लिए हमें अभी से काम करना होगा।
वाराणसी में श्री काशी विश्वनाथ धाम का उद्घाटन करने के बाद वे अपनी बात रख रहे थे। इस दौरान उन्होंने काशी के काल भैरव मंदिर और काशी विश्वनाथ धाम में पूजा-अर्चना की। उन्होंने गंगा नदी में पवित्र स्नान भी किया। ‘नगर कोतवाल’ (भगवान काल भैरव) के चरणों में प्रणाम के साथ अपने संबोधन की शुरुआत करते हुये कहा कि उनके आशीर्वाद के बिना कुछ भी खास काम नहीं होता है।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों के लिए प्रभु का आशीर्वाद मांगा। उन्होंने पुराणों का हवाला देते हुये कहा कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है। विश्वनाथ धाम का नया परिसर सिर्फ एक भव्य इमारत नहीं है। यह हमारे भारत की सनातन संस्कृति का प्रतीक है। यह हमारी आध्यात्मिक आत्मा का प्रतीक है। यह भारत की पुरातनता, परंपराओं, भारत की ऊर्जा और गतिशीलता का प्रतीक है।
आगे प्रधानमंत्री ने कहा, ‘जब कोई यहां आएगा तो न केवल आस्था, बल्कि अतीत के गौरव को भी महसूस करेगा। पुरातनता और नवीनता एक साथ कैसे जीवंत हो उठती है, प्राचीन की प्रेरणा भविष्य को कैसे दिशा दे रही है, यह विश्वनाथ धाम परिसर में हम बहुत स्पष्ट रूप से देख रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले मंदिर का क्षेत्रफल केवल 3000 वर्ग फुट था जो अब बढ़कर लगभग 5 लाख वर्ग फुट हो गया है। अब 50 से 75 हजार भक्त मंदिर और मंदिर परिसर में दर्शन कर सकते हैं। पहले मां गंगा का दर्शन-स्नान और वहां से सीधे विश्वनाथ धाम। काशी की महिमा का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी अविनाशी है और भगवान शिव के संरक्षण में है।
उन्होंने इस भव्य परिसर के निर्माण में जुटे प्रत्येक कार्यकर्ता का आभार व्यक्त किया। मोदी ने कहा कि कोरोना में भी यहां काम रुकने नहीं दिया। इस दौरान कार्यकर्ताओं से मुलाकात मोदी ने उनका अभिनंदन किया। इस क्रम में मोदी ने धाम के निर्माण कार्य में जुटे मजदूरों के साथ दोपहर का भोजन ग्रहण किया।
प्रधानमंत्री ने कारीगरों, निर्माण से जुड़े लोगों, प्रशासन और उन परिवारों की भी सराहना की जिनका इस क्षेत्र में घर था। इन सबके साथ ही उन्होंने काशी विश्वनाथ धाम परियोजना को पूर्ण करने के लिए अथक परिश्रम करने वाली उत्तर प्रदेश सरकार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी बधाई दी।
आक्रमणकारियों द्वारा वाराणसी को नष्ट करने की कोशिशों के संबंध में प्रधानमंत्री ने कहा कि आतातायियों ने इस शहर पर हमले किये। इसे नष्ट करने की कोशिशें कीं। यह शहर औरंगजेब के अत्याचारों और उसके आतंक के इतिहास का गवाह है, जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की, संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की। लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से अलग है। अगर यहां औरंगजेब है तो शिवाजी भी हैं। अगर कोई सालार मसूद आता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे भारत की एकता की ताकत का स्वाद चखा देते हैं। ब्रिटिश काल में भी काशी के लोग जानते हैं कि हेस्टिंग्स के साथ क्या हुआ था।
अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने काशी की महिमा और महत्व का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि काशी केवल शब्दों की बात नहीं है, यह संवेदनाओं की रचना है। काशी वह है- जहां जागृति ही जीवन है। काशी वह है- जहां मृत्यु भी मंगल है। काशी वह है- जहां सत्य ही संस्कार है। काशी वह है- जहां प्रेम ही परंपरा है।
आगे उन्होंने कहा कि वाराणसी वह नगर है, जहां से जगद्गुरु शंकराचार्य को श्रीडोम राजा की पवित्रता से प्रेरणा मिली और देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प लिया। यह वह स्थान है, जहां भगवान शंकर की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस जैसी अलौकिक रचना की।
इसी क्रम में प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि यहीं की धरती सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ। समाज-सुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीषी यहां प्रकट हुये। समाज को जोड़ने की जरूरत थी तो संत रैदास जी की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी यही काशी बनी। काशी चार जैन तीर्थंकरों की भूमि है, जो अहिंसा और तपस्या का प्रतीक है। राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा से लेकर वल्लभाचार्य, रामानन्द जी के ज्ञान तक चैतन्य महाप्रभु, समर्थगुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंद, मदनमोहन मालवीय तक कितने ही ऋषियों, आचार्यों का संबंध काशी की पवित्र धरती से रहा है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज यहां आये थे। रानीलक्ष्मी बाई से लेकर चंद्रशेखर आजाद तक कितने ही सेनानियों की कर्मभूमि-जन्मभूमि काशी रही है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद,पंडित रविशंकर और बिस्मिल्लाह खान जैसी प्रतिभायें इस स्मरण को कहां तक ले जाया जाये।
उन्होंने कहा कि काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण भारत को निर्णायक दिशा देगा और उज्जवल भविष्य की ओर ले जाएगा। यह परिसर हमारे सामर्थ्य और हमारे कर्तव्य का साक्षी है। दृढ़ संकल्प और ठोस सोच के साथ कुछ भी असंभव नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कहा, “भारतीयों में अकल्पनीय को सच करने की शक्ति है। हम तप जानते हैं, तपस्या जानते हैं और देश के लिए दिन-रात बिताना जानते हैं। चुनौती कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, हम भारतीय मिलकर उसे परास्त कर सकते हैं।”
उन्होंने कहा कि आज का भारत अपनी खोयी हुयी विरासत को पुनर्जीवित कर रहा है। यहां काशी में माता अन्नपूर्णा स्वयं निवास करती हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि काशी से चुराई गई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा को अब एक सदी के इंतजार के बाद काशी में फिर से स्थापित किया गया है।
साभार-हिस