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सऊदी अरब के तबलीगी जमात पर प्रतिबंध की घोषणा से हड़कंप

  •  कोरोना की पहली लहर में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान भी चर्चा में रही जमात

  •  कोरोना विस्फोट के लिए माना गया था जिम्मेदार

नई दिल्ली, सऊदी अरब सरकार के तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगाए जाने की घोषणा के बाद भारत में तबलीगी जमात के पदाधिकारियों और उससे जुड़े लोगों में हड़कंप मच गया है। सऊदी अरब सरकार के धार्मिक मंत्रालय ने तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। मंत्रालय ने इस बारे में कई ट्वीट किए हैं।
इनमें कहा गया है कि तबलीगी जमात भटके हुए लोगों का एक गिरोह है। मंत्रालय ने यहां तक कहा है कि तबलीगी जमात आतंकवाद का दरवाजा है। मंत्रालय ने मस्जिदों के इमामों से आने वाले जुमा की नमाज में खुतबे के दौरान तबलीगी जमात के बारे में आम जनमानस को बताने की हिदायत भी दी है। मंत्रालय ने कहा है कि आम जनमानस को तबलीगी जमात के बारे में बताया जाए और यह स्पष्ट किया जाए कि तबलीगी जमात का रास्ता आतंकवाद की तरफ जा रहा है, जिसे रोकना बेहद जरूरी है।

तबलीगी जमात पर सऊदी अरब की तरफ से लगाए गए प्रतिबंध के बाद दिल्ली के हजरत निजामुद्दीन दरगाह के पास स्थित उसके मुख्यालय में गहमागहमी देखी जा रही है। हालांकि इस सम्बंध में किसी को किसी भी तरह की टिप्पणी करने की अनुमति नहीं है। इस सिलसिले में अमीर-ए-जमात मौलाना साद से संपर्क साधने का प्रयास किया गया। फिलहाल वह उपलब्ध नहीं हुए।

काबिलेगौर है कि भारत में तबलीगी जमात उस समय काफी सुर्खियों में आई थी जब कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए पहली बार देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया था। इस दौरान तबलीगी जमात के लोग जगह-जगह फंस गए थे। यहां तक कि निजामुद्दीन मरकज में भी बड़ी संख्या में तबलीगी जमात के लोग फंसे हुए थे जिसमें विदेशी मेहमान भी शामिल थे। इनमें से कुछ लोगों की तबीयत खराब होने के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां पर कई लोगों में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए थे। इसके बाद जमात को भारत में कोरोना विस्फोट का जिम्मेदार ठहरा कर इनके खिलाफ जोरदार अभियान चलाया गया और मरकज पर सरकारी ताला लगा उसे सील दिया गया था।

तबलीगी जमात के अमीर मौलाना साद इस पूरे प्रकरण में काफी चर्चित हुए थे और उन्होंने मरकज छोड़कर कहीं अन्य स्थान पर शरण ले ली थी। बाद में इस मामले में एनआईए और दूसरी तमाम एजेंसियों को जांच सौंपी गई और जमात के खिलाफ कई मुकदमे किए गए। यहां तक कि जमात की गतिविधियों की भी जांच की जा रही है और मनी लांड्रिंग जैसे आरोपों के घेरे में भी जमात को रखा गया है।

यह भी गौर करने वाली बात है कि तबलीगी जमात को सऊदी अरब के साथ-साथ अन्य मुस्लिम देशों का समर्थन प्राप्त रहा है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी इसका काफी असर और रसूख बताया जाता है। मलेशिया और दक्षिण अफ्रीकी देशों में भी जमात का काफी दबदबा है। यूरोप, अमेरिका और कनाडा आदि में भी जमात के लोग काफी सक्रिय बताए जाते हैं। माना जा रहा है कि सऊदी अरब की तरफ से लगाए गए प्रतिबंध के बाद अब जमात पर दुनिया भर में शिकंजा कसने का प्रयास तेज हो जाएगा।

भारत में तबलीगी जमात का उदय 1926-27 में हुआ है। मौलाना मोहम्मद इलियास कांधलवी ने हरियाणा के नूंह जिले के एक गांव से इसकी शुरुआत की थी। तबलीगी जमात सुन्नी इस्लाम को मानने वालों का एक संगठन है जिसके तहत इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया जाता है और धर्म की शिक्षा दी जाती है। अरबी शब्द तबलीग का मतलब होता है, अल्लाह के संदेशों का प्रचार करना और जमात का मतलब समूह या गिरोह से है। मुगल शासन काल में इस्लाम से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में लोगों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था। लेकिन फिर भी वो लोग हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज को अपनाए रहे।

भारत में अंग्रेजों की हुकूमत आने के बाद आर्य समाज ने उन्हें दोबारा से हिंदू धर्म में लाने के लिए व्यापक तौर पर शुद्धिकरण अभियान शुरू किया था जिसके चलते मौलाना इलियास कांधलवी ने इस्लाम की शिक्षा देने का काम शुरू किया था। मौलाना ने इसके लिए मेवात क्षेत्र का चुनाव इसलिए किया था क्योंकि यहां पर लोग नाम के मुसलमान थे। उनके अंदर इस्लाम की समझ नहीं थी और वह हिन्दू धर्म की रीति रिवाज में जकड़े हुए थे। इसलिए मौलाना ने यहीं से दावत और तबलीग का काम शुरू किया और आज दुनियाभर के लगभग 213 देशों तक जमात का यह दावत का काम फैल चुका है।
मौलाना इलियास के निधन के बाद उनके परिवार से जुड़े लोग ही जमात का कार्यभार देखते आ रहे हैं। जमात के काम-धाम को देखने के लिए एक मजलिस-ए-शूरा का गठन किया गया। यह काम मौलाना इनाम साहब के कार्यकाल तक चलता रहा लेकिन मौलाना जुबेर के अमीर बनने के बाद यह सिलसिला खत्म कर दिया गया। अमीर-ए-जमात को प्रमुख मानकर उनके ही दिशा-निर्देशों के अनुसार जमात का संचालन किया जाता रहा। मौलाना जुबेर के मार्च 2014 में निधन के बाद मौलाना साद ने अमीर-ए-जमात की जिम्मेदारी संभाली और उन्होंने भी शूरा को महत्व नहीं दिया जिसकी वजह से जमात में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई और इस मामले ने तूल पकड़ा। यहां तक कि जमात से जुड़े पुराने और बुजुर्ग लोगों ने मौलाना साद का साथ छोड़ दिया।
जमात से अलग हुए लोगों ने अपनी अलग पहचान बना ली और उन्होंने तुर्कमान गेट स्थित मस्जिद दरगाह फैज-ए-इलाही में अपना मुख्यालय स्थापित कर लिया। इस सिलसिले में दोनों गुटों में आपस में झगड़ा होने का एक मामला 2015 में हजरत निजामुद्दीन दरगाह में दर्ज है। अब सऊदी अरब के जरिए तबलीगी जमात पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद यह संगठन एक बार फिर सुर्खियों में है।
साभार-हिस

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