वर्धा, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कहा कि एकात्म मानवदर्शन भारतीय संस्कृति का मूल तत्व है। मानव प्रेम हमारी चेतना का आधार है। हमारे सारे ग्रंथों का सार परोपकार है। उन्होंने कहा कि भारत ने विविधता को स्वीकार ही नहीं किया है बल्कि उसे सम्मान भी दिया है।
आरिफ मोहम्मद खान शनिवार को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के तत्वावधान में ‘एकात्म मानवदर्शन की सभ्यता दृष्टि : वैश्विक साम्प्रदायिकता का एकमात्र विकल्प’ विषय पर शनिवार को आयोजित व्याख्यान को आभासी मंच पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारत ने विविधता को स्वीकार ही नहीं किया है बल्कि उसे सम्मान भी दिया है।
राज्यपाल खान ने एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय को उद्धृत करते हुए कहा कि धर्म मंदिरों और मस्जिदों तक ही सीमित नहीं है। मंदिर, मस्जिद पंथ का निर्माण तो करते हैं, धर्म का नहीं। धर्म बहुत व्यापक परिप्रेक्ष्य को समेटे हुए है। बतौर राज्यपाल खान नस्ल, भाषा, लिंग और आस्था पद्धति में विभेद ही वैश्विक साम्प्रदायिकता है।
अफगानिस्तान की हालिया घटनाओं के संदर्भ में राज्यपाल खान ने कहा कि महिलाओं पर अत्याचार का मानस रखने वाले पूरी दुनिया के लिए खतरा पैदा करते हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में आतंकवादजनित असुरक्षा एवं शांति व्यवस्था के अभाव में लगभग सौ देशों में कोरोना रोधी वैक्सीन नहीं दी जा सकी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने की। प्रो. शुक्ल ने कहा कि संपूर्ण विश्व, सभ्यता के एक नए प्रकार के खतरे से जूझ रहा है। उपासना पद्धति के जरिए लोगों का विभाजन करने का षड्यंत्र चल रहा है। विभिन्न पंथों में जो भी श्रेष्ठ है, उसे जीवन का हिस्सा बनाकर पूरी दुनिया में शांति लाई जा सकती है। भारत की दृष्टि मूलरूप से समग्रता में सोचने की है। एकात्म मानवदर्शन मनुष्य को समग्रता में देखता है। एकात्म मानवदर्शन की यह दृष्टि पूरे विश्व के लिए कल्याणकारी है।
साभार-हिस