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सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले पर फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस जासूसी मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम फैसला सुरक्षित रख रहे हैं। इसमें दो-तीन दिन का समय लग सकता है। इस दौरान अगर सॉलिसिटर जनरल कुछ और कहना चाहते हैं तो वो बता सकते हैं।

सुनवाई के दौरान केंद्र ने निष्पक्ष कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया, जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में काम करेगा। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार लिख कर दे कि वह सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करती है या नहीं। हमारा मानना है कि हलफनामा दाखिल कर इस पर बहस नहीं कर सकते। आईटी एक्ट की धारा 69 सुरक्षा के लिहाज से सरकार को निगरानी की शक्ति देती है। हम निष्पक्ष कमेटी बनाएंगे। तब चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि आप कह रहे हैं कि इस पर याचिका दायर नहीं हो सकती है। तब मेहता ने कहा कि याचिका हो सकती है, पर सार्वजनिक चर्चा नहीं। हम देश के दुश्मनों तक ऐसी जानकारी जाने नहीं दे सकते हैं। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने कहा था कि संवेदनशील जानकारी हलफनामे में न लिखी जाए। बस यही पूछा था कि क्या जासूसी हुई, क्या सरकार की अनुमति से हुआ।

चीफ जस्टिस ने 2019 में तत्कालीन आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद के बयान का हवाला दिया। उसमें भारत के कुछ नागरिकों की जासूसी का अंदेशा जताया गया था। तब मेहता ने वर्तमान आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के संसद में दिए बयान का हवाला दिया। सरकार ने किसी भी तरह की जासूसी का खंडन किया है। तब मेहता ने कहा था अगर कुछ लोग अपनी जासूसी का अंदेशा जता रहे हैं तो सरकार इसे गंभीरता से लेती है। तभी कमेटी बनाने की बात कह रही है। कमेटी कोर्ट को रिपोर्ट देगी। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम बार-बार कह रहे हैं कि हमें संवेदनशील बातें नहीं जाननी। सिर्फ यही जानना है कि क्या सरकार ने जासूसी की अनुमति दी थी।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें जानना है कि क्या कोई भी स्पाईवेयर का इस्तेमाल कर सकता है। क्या इसका इस्तेमाल सरकार ने किया। क्या यह कानूनी तरीके से हुआ। सरकार अगर हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहती तो हमें आदेश पारित करना पड़ेगा। इस पर याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जेठमलानी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जानकारी देना दोनों पक्षों का कर्तव्य है। सिब्बल ने कहा कि 2019 में कहा गया था कि 120 लोगों की जासूसी की आशंका पर सरकार ने संज्ञान लिया है। व्हाट्स ऐप से जवाब मांगा गया है। इसका क्या हुआ। हमारा आरोप है कि सरकार जानकारी छिपाना चाहती है। फिर उसे कमेटी क्यों बनाने दिया जाए। हवाला केस में कोर्ट ने रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाई थी।

सुनवाई के दौरान वकील श्याम दीवान ने कहा कि आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञ संदीप शुक्ला का हलफनामा देखिए। उन्होंने बताया है कि जिसकी जासूसी हुई उसे पता ही नहीं चल पाता। दीवान ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ आनंद वी ने भी हलफनामा दाखिल किया है। बताया है कि इससे प्रभावित व्यक्ति के फोन में दूसरा सॉफ्टवेयर भी डाला जा सकता है। पत्रकार परांजय गुहा के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि सिविल प्रोसीजर कोड कहता है कि प्रतिवादी अगर किसी आरोप से इनकार करे तो वह स्पष्ट हो। सरकार आरोप को बेबुनियाद बता रही है, फिर कमेटी बनाने का भी प्रस्ताव दे रही है। द्विवेदी ने कहा कि इसका इस्तेमाल सरकार ही कर सकती है। अभिव्यक्ति को प्रभावित किया जा रहा है।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि कमेटी बने लेकिन कोर्ट बनाए। सरकार को न बनाने दिया जाए। सरकार की कमेटी को ही लोग अपना फोन सौंप दें, यह सही नहीं होगा। सरकार को एक सीधा बयान देना था कि जासूसी हुई या नहीं। सरकार ने इससे भी मना कर दिया है। वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि एसआईटी का गठन हो। तब मेहता ने कहा कि यहां लोकतंत्र को खतरा जैसी बातें कही जा रही हैं। कानून में इंटरसेप्शन की व्यवस्था है। हम निष्पक्ष कमेटी की बात कह रहे हैं। उसमें सरकारी आदमी नहीं होगा। कमेटी को देखने दीजिए। रिपोर्ट कोर्ट के पास आएगी। हम सॉफ्टवेयर पर हां या न कुछ भी कहेंगे तो यह दुश्मनों को सावधान करेगा।

18 अगस्त को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने साफ किया था कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के हिसाब से संवेदनशील कोई भी बात सरकार को बाध्य नहीं कर रहा। चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि हम नोटिस बिफोर एडमिशन जारी कर रहे हैं, कमेटी के गठन पर बाद में फैसला लेंगे।

कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से पूछा था कि क्या आप और कोई हलफनामा दाखिल नहीं करना चाहते। तब मेहता ने कहा था कि भारत सरकार कोर्ट के सामने है। याचिकाकर्ता चाहते हैं कि सरकार यह सब बताए कि वह कौन सा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करती है, कौन सा नहीं। राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में यह सब हलफनामे के रूप में नहीं बताया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि हम विशेषज्ञ कमेटी को सब बताएंगे। कल कोई वेबसाइट मिलिट्री उपकरण के इस्तेमाल पर कोई खबर प्रकाशित कर दे तो क्या हम सार्वजनिक रूप से उन सभी बातों का खुलासा करने लगेंगे। भारत सरकार कमेटी को हर बात बताएगी। हलफनामे में यह सब नहीं बताया जा सकता। कमेटी कोर्ट को रिपोर्ट देगी। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि हम में से कोई नहीं चाहता कि राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता हो। हम संवेदनशील बातें नहीं पूछ रहे। लेकिन याचिकाकर्ता नागरिकों की निजता का सवाल उठा रहे हैं। अगर वैध तरीके से कोई जासूसी हुई है तो इसकी अनुमति देने वाली संस्था को हलफनामा दाखिल करना चाहिए।

कोर्ट ने कहा था हम सिर्फ लोगों की निजता जासूसी की वैधता के पहलू पर नोटिस जारी करना चाहते है। आपको संवेदनशील बातें बताने की ज़रूरत नहीं। तब मेहता ने कहा था बेहतर यही होगा कि हमें विशेषज्ञ कमेटी के सामने बातें रखने दीजिए। कमेटी कोर्ट को रिपोर्ट देगी। तब चीफ जस्टिस ने कहा था हम आपको कुछ भी ऐसा बताने को बाध्य नहीं कर रहे जो आप नहीं बता सकते। हम सीमित प्रश्न पर नोटिस जारी करना चाहते हैं। तब वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था हम भी नहीं चाहते कि सरकार अपने सॉफ्टवेयर जैसी संवेदनशील बातों को सार्वजनिक करे। तब मेहता ने कहा था हमें कमेटी बनाने दीजिए। कमेटी कोर्ट को रिपोर्ट देगी।

पिछली 17 अगस्त को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि हम सभी आरोपों का खंडन करते हैं। एक वेब पोर्टल ने संसद सत्र की शुरुआत से पहले सनसनी फैलाने के लिए कुछ अपुष्ट बातें प्रकाशित कर दीं। फिर भी हम स्थिति साफ करने के लिए निष्पक्ष तकनीकी विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाना चाहते हैं।

सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने कहा था कि सरकार को शपथ लेकर बताना था कि क्या उसने कभी भी पेगासस का इस्तेमाल किया। इस बिंदु पर कोई साफ बात नहीं कही है। सिर्फ आरोपों का खंडन कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट में पेगासस की जांच की मांग करते हुए अब तक पांच याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिका दायर करने वालों में वकील मनोहर लाल शर्मा, सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास, वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार, परांजय गुहा ठाकुरता समेत पांच पत्रकार और एडिटर्स गिल्ड की याचिका शामिल है।
साभार-हिस

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