महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं? शिव जी ने अपनी धर्मपत्नी पार्वती जी से कहा कि देवी! जो व्यक्ति एक बार ‘राम’ कहता है, उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूं। इसके बाद पार्वती जी ने शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यों जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पर क्यों लगाते हैं।
उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहां एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग ‘राम नाम सत्य’ कहते हुए शव को ला रहे थे। शिव जी ने कहा की देखो पार्वती इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो ‘राम’ नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य ‘राम’ नाम निकलता है। उसी को सुनने मैं श्मशान में चला आता हूं और इतने लोगों के मुख से ‘राम’ नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूं, इसे प्रणाम करता हूं और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूं। ‘राम’ नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे इतना प्रेम है।
दूसरा प्रसंग
एक बार शिवजी कैलाश पर्वत पहुंचे और पार्वती जी से भोजन मांगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा, अभी पाठ पूरा नहीं हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए। शिव जी ने कहा की इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो।
पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं भी जानना चाहती हूं। शिव जी ने बताया, केवल एक बार ‘राम’ कह लो तुम्हे सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा। एक ‘राम’ नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। पार्वती जी ने वैसा ही किया।
प्रयास पूर्वक स्वयं भी ‘राम’ नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके ‘राम’ नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दूसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है, इसीलिए हमारे यहां प्रणाम ‘राम’ कहकर किया जाता है.
साभार पी श्रीवास्तव