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पांच बार विधायक रह चुके थे, कोरोना ने ली जान
पिछले पांच दशकों से ओडिशा की राजनीति में सक्रिय और पांच बार बालेश्वर से विधायक चुने गए वरिष्ठ राजनेता अरुण दे का सोमवार को शाम 6.20 बजे भुवनेश्वर में निधन हो गया. वह 76 साल के थे. कोरोना से पीड़ित होने के बाद सात जुलाई से उनका आमरी अस्पताल में इलाज चल रहा था. उन्हें जीवन रक्षक प्रणाली में रखा गया था और निमोनिया के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया था. हालांकि, डॉक्टरों के प्रयासों के कारण वह ठीक हो गये और 14 जुलाई को केबिन में लौट आए थे. कुछ दिनों बाद वह घर लौट आने वाले थे, लेकिन सोमवार दोपहर उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने लगी. आईसीयू में एक मेडिकल टीम ने उसका इलाज जारी रखा, लेकिन महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. अंतत: कल शाम 6.20 बजे बालेश्वर की धरती से इस लोकप्रिय राजनेता के निधन की घोषणा अस्पताल के अधिकारियों ने की. अरुण के निधन से एक युग का अंत हो गया. कई भाषाओं ओड़िया, अंग्रेजी, हिंदी और बंगाली में पारंगत और वामपंथी विचारधारा में विश्वास रखने वाले वरिष्ठ राजनेता न केवल एक श्रमिकों के हक के कट्टर समर्थक थे, बल्कि वे राजनीति में एक निर्विवाद नेता भी थे. अरुण, जो अपने शेष जीवन तक अविवाहित रहे, उनके निधन की खबर के बाद से उनके गृहनगर बालेश्वर सहित पूरे राज्य में शोक छा गया है. उनके निधन पर मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान समेत कई मंत्रियों, विधायकों और राजनेताओं ने गहरा दुःख जताया है.
बालेश्वर सदर निर्वाचन क्षेत्र से पांच बार विधानसभा जा चुके अरुण सीपीआई से तीन बार, निर्दलीय और ओडिशा जनता दल से दो बार विधायक के रूप में निर्वाचित हुए हैं. वह 1972 में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हुए और 1994 तक पार्टी के एक प्रमुख नेता के रूप में पूरे राज्य के राजनीति में सक्रिय रहे. फकीर मोहन कालेज से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कॉलेज छात्र नेता के रूप में की थी. अरुण साल 1974 को पहली बार बालेश्वर निर्वाचन क्षेत्र से सीपीआई कि टिकट पर चुनाव जीता था. बाद में वह साल 1980 और साल 1990 में सीपीआई, साल 1995 में निर्दलीय और साल 2004 में ओडिशा जनता परिषद से विधान सभा के लिए चुने गए. वह पिछले साल बीजद में सामिल हुए थे. उन्होंने साल 2009 के लोकसभा चुनाव में एनसीपीपी और साल 2014 के चुनावों में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा. अरुण, जो अपने छात्र जीवन में बहुत प्रतिभाशाली थे, एक क्रांतिकारी नेता के रूप में जाने जाते थे. विशेष रूप से, उन्होंने विधानसभा में मुद्दों को इस तरह से उठाया, जिन्हें सरकार स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ता था.
कटक मधुसूदन लॉ कॉलेज में कला में स्नातक और कानून का अध्ययन करने के बाद क्रांतिकारी नेता ने कुछ वर्षों तक लोगों के लिए काम किया. बालेश्वर के मल्लिकाशपुर में साल 1946 में 30 अप्रैल को जन्मे अरुण के पिता गोलकनाथ दे एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे. अरुण तीन भाइयों और तीन बहनों में से एक थे. उनके बड़े भाई बिशेश्वर दे, साशा दे और दो अन्य बहनें हैं. छोटी बहन डॉ बसंती दे, अब संयुक्त राज्य अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं. साल में एक बार वह अपने भतीजी और भतीजों से मिलने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका जाते थे. उनके समय में बालेश्वर में सड़क, हर गांव में स्कूल, पेयजल, बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार, कारखाने आदि स्थापित करना संभव हुआ था. वह हमेशा बालेश्वर और उत्तरी ओडिशा के विभिन्न मुद्दों को विधानसभा में उठा कर हमेसा चर्चा में रहते थे. वह अंधविश्वास और अंधविश्वास के कट्टर विरोधी थे. उनका जीवन गरीबों, दलितों, किसानों, गरीबों, मजदूर वर्ग के लिए समर्पित था. प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर राजनीतिक नेताओं तक सभी ने जिले के विकास के लिए उनकी राय मांगी. उनकी असामयिक मृत्यु को विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से बालेश्वर ही नहीं, राज्य की राजनीति के लिए एक अपूरणीय क्षति के रूप में बताया गया है.
कोविद नियम के तहत उनके मृत शरीर को बालेश्वर नहीं लाया गया. आज दोपहर के समय भुवनेश्वर स्थित सत्यनगर श्मशान घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनको अंतिम विदाई दी गई. इससे पहले आज सुबह उनके पार्थिव शरीर को राज्य बीजद के मुख्यालय एवं विधानसभा भी ले जाया गया, जहां उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. अपने प्रिय नेता की मौत की खबर सुनने के बाद यहां के मलिकाशपुर स्थित उनके निवास स्थान में कल रात से ही उनके समर्थकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी थी. सभी को आशा थी कि अपने प्रिय दादा के आखरी दर्शन कर सकेंगे, मगर सरकारी आदेश से उनके समर्थकों को काफी निराश होना पड़ा.