हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाए जाने का विधान है. यही वह विशेष दिन होता है जब भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में लोग श्रद्धाभाव से अपने गुरुओं का सम्मान करते हुए, उनका आशीर्वाद लेते हैं. शास्त्रों में भी गुरु का स्थान ईश्वर के समान बताया गया है, क्योंकि गुरु ही व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि करता है. गुरु द्वारा दिखाए गए मार्ग और ज्ञान से ही व्यक्ति समय-समय पर अपने जीवन में आ रहे हर अंधकार को दूर कर सफलता की सीढ़ी चढ़ता है. इसलिए भी गुरु पूर्णिमा का महत्व बढ़ जाता है. हर साल गुरु पूर्णिमा बड़े धूमधाम और मंदिर में ख़ास पूजा के साथ मनाया जाता है, लेकिन इस बार कोरोना के चलते इसे शांति के साथ नियमों का पालन करते हुए मनाया जाएगा.
गुरु पूर्णिमा 2021 मुहूर्त
आषाढ़ मास को चौथा मास माना गया है, जिसका पूजा-पाठ की दृष्टि से विशेष महत्त्व होता है. इसके साथ ही इस वर्ष आषाढ़ मास की पूर्णिमा 23 जुलाई, शुक्रवार को 10 बजकर 45 मिनट से आरम्भ होगी और अगले दिन यानी 24 जुलाई, शनिवार को 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में इस वर्ष 24 जुलाई को ही गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया जाएगा.
गुरु पूर्णिमा का पौराणिक महत्त्व
पौराणिक शास्त्रों व वेदों में गुरु को हर देवता से ऊपर बताया गया है, क्योंकि गुरु का हाथ पकड़कर ही शिष्य जीवन में ज्ञान के सागर को प्राप्त करता है. प्राचीन काल में जब गुरुकुल परंपरा का चलन था, तब सभी छात्र इसी दिन श्रद्धा व भक्ति के साथ अपने गुरु की पूजा-अर्चना कर, उनका धन्यवाद करते थे और शिष्यों की यही श्रद्धा असल में उनकी गुरु दक्षिणा होती थी.
पवित्र नदियों व कुण्डों में स्नान करने और दान-दक्षिणा देने का भी विधान
गुरु पूर्णिमा के शुभ पर्व पर देशभर की पवित्र नदियों व कुण्डों में स्नान करने और दान-दक्षिणा देने का भी विधान है. साथ ही इस दिन मंदिरों में भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन जगह-जगह पर भव्य मेलों का आयोजन भी होता है, लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण यह पर्व सूक्ष्म रूप से मनाया जाएगा.
साभार पी श्रीवास्तव