उधमपुर, कृष्ण सिंह वीर चक्र मैमोरियल वैलफेयर कमेटी-उरलियां की तरफ से टाउन हाल के पास स्थित श्रद्धांजलि स्थल पर एक पुष्पांजलि समारोह का आयोजन किया गया जिसमें 1948 के वीर योद्धा सूबेदार कृष्ण सिंह जम्वाल, वीर चक्र पुरस्कार विजेता को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर वैलफेयर कमेटी उरलियां के अध्यक्ष महादीप सिंह जम्बाल ने बतााय कि शहीद सूबेदार कृष्ण सिंह 15/16 जुलाई 1948 को कृष्णघाटी ‘शहीद के नाम से विख्यात‘ ने पुंछ में दुश्मनों से लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी और मरणोपरांत युद्ध के समय के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार वीर चक्र से भारत सरकार ने उन्हें अलंकृत किया था। महादीप सिंह ने दोहराया कि सरकार केवल शहीदों पर मुखर है और रैंक के आधार पर भेदभाव करती है। कृष्ण सिंह की शहादत इसका प्रमाण है। सरकार द्वारा शहीदों की मूर्तियों को खड़ा करके और उनके संबंधित स्थानों में विशिष्ट स्थानों का नामकरण करके सम्मान एक धोखा है। उच्च पदस्थ अधिकारियों के संबंध में ऐसी प्रतिमाएं रातों-रात खड़ी कर दी जाती हैं जबकि निम्न श्रेणी के शहीदों की फाइलें धूल में लटक जाती हैं। शहीद कृष्ण सिंह वीर चक्र पुरस्कार विजेता की मूर्ति को खड़ा करने और उनके नाम पर उधमपुर के एक विशिष्ट चैक का नाम रखने की फाइल 2015 से धूल फांक रही है और महामहिम उपराज्यपाल का शिकायत प्रकोष्ठ डाकघर की तरह काम कर रहा है।
जम्वाल ने सरकार को सलाह दी कि वह बात करना छोड़ दें और शहीदों के लिए काम करना शुरू करें। उन्होंने उधमपुर में उत्तरी कमान से शहीदों के परिवारों की देखभाल करने का अनुरोध किया, क्योंकि वे पिछले सैनिकों की शहादत के कारण ही आज कमान संभाल रहे हैं और शहीदों के प्रति उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह शहीदों के परिवार के कल्याण के लिए ध्यान दें।
उत्तरी कमान द्वारा आजतक शहीदों के प्रति आयोजित किसी भी समारोह में कृष्ण सिंह वीर चक्र के रिश्तेदारों या कृष्ण सिंह वीर चक्र मैमोरियल वैलफेयर कमेटी उरलियां के किसी भी सदस्य को आमंत्रित नहीं किया गया। जिसके कारण सारा गाँव उरलियां जिसने देश के प्रति एक बहादुर सैनिक समर्पित किया अपने आप में अपमानित महसूस करता है।
गौर रहे कि वैलफेयर कमेटी उरलियां के अध्यक्ष सेवानिवृत्त पुलिस अधीक्षक महादीप सिंह जम्वाल के नेतृत्व में समिति के सदस्यों और परिवार द्वारा हर साल इस दिन को याद किया जाता है। जिसमें मुख्य रूप से उधमपुर के नागरिक शामिल होते हैं।
साभार – हिस