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कानपुर में गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का खतरा बढ़ा

कानपुर में गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का खतरा बढ़ा

  • छह माह के दौरान 429 गर्भवती महिलाएं मिली डायबिटीज रोगी

कानपुर। कानपुर में गर्भावस्था के दौरान मधुमेह का खतरा बढ़ाता नजर आ रहा है। गर्भावस्था के दौरान जांच कराने के बाद पता चला कि 2023 -24 में अप्रैल से अक्टूबर तक 26411 महिलाओं ने डायबिटीज़ की जांच कराया। जांच के दौरान खुलासा हुआ कि 429 महिलाएं जेस्टेशनल डायबिटीज़ की शिकार हैं। यह जानकारी शुक्रवार को चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की अपर निदेशक डॉ अंजू ने दी।

उन्होंने बताया कि सभी गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान मधुमेह जांच कराना बहुत आवश्यक है। जिससे गर्भस्थ शिशु के लिए मधुमेह को लेकर सावधानी की जा सके। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में कई तरह के बदलाव होते हैं, जिसमें एक खून में शुगर की मात्रा बढ़ना भी है, इस स्थिति को गर्भकालीन डायबिटीज़ यानि जेस्टेशनल डायबिटीज़ कहा जाता है। हालांकि यह बीमारी महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद खत्म हो जाती है और भविष्य में उन्हें डायबिटीज़ होने का ख़तरा रहता है। लेकिन इससे गर्भावस्था में कई तरह की परेशानियाँ हो सकती हैं। इससे गर्भ में पल रहे शिशु की जान को भी खतरा हो सकता है।

क्यों बढ़ जाती है रक्त में शुगर की मात्रा

गर्भावस्था के दौरान मधुमेह पर केपीएम चिकित्सालय की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ दीप्ति गुप्ता बताती हैं कि गर्भकालीन डायबिटीज़ के दौरान पेंक्रियाज़ से बनने वाला इंसुलिन ब्लड शुगर के स्तर को नीचे नहीं ला पाता है। हालांकि इंसुलिन प्लेसेंटा (गर्भनाल) से होकर नहीं गुजरता, जबकि ग्लूकोज व अन्य पोषक तत्व गुजरते हैं। ऐसे में गर्भ में पल रहे बच्चे का भी ब्लड शुगर स्तर बढ़ जाता है, क्योंकि बच्चे को जरूरत से ज्यादा ऊर्जा मिलने लगती है, जो फैट के रूप में जमा हो जाती है। इससे बच्चे का वजन बढ्ने लगता है और समय से पहले ही बच्चे के जन्म का खतरा बढ़ जाता है। वह बताती हैं आज के समय में 10 से 17 प्रतिशत गर्भवती को जेस्टेशनल डायबिटीज़ होती है।

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बच्चे पर होने वाले दुष्प्रभाव

गर्भावस्था के दौरान मधुमेह पर अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आरवी सिंह का कहना है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को माँ से ही पोषण मिलता है। ऐसे में अगर माँ का शुगर का स्तर बढ़ता है तो इसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी पड़ता है। इससे बच्चा कमजोर या ज्यादा वजन का हो सकता है, गर्भपात, या पेट में बच्चा खत्म होने का खतरा रहता है। प्रसव के बाद कुछ समय के लिए सांस की तकलीफ हो सकती है, या बच्चे के दिल में छेद की संभावना हो सकती है, समय से पूर्व प्रसव हो सकता है, यदि बच्चे का प्रसव सही से हो गया तो उसके मोटापा बढ़ने और साथ ही उसे भी शुगर होने की संभावना बढ़ जाती है।

ऐसे बचें

गर्भावस्था में डायबिटीज़ से बचने के लिए सही तरह का खानपान, सक्रिय जीवन शैली, चिकित्सीय देखभाल, ब्लड शुगर स्तर की कड़ी निगरानी जरूरी है। जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर मिश्रा ने बताया कि जीडीएम कार्यक्रम (जस्टेशनल डायबिटीज मेलिटस प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान में सम्लित है जो कि प्रति माह की 1, 9, 16 व 24 तारिख को एचआरपी दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों व उपकेन्द्रों पर गर्भवती की ओरल ग्लूकोज टरोल्वेंस टेस्ट (ओजीटीटी) होता है।

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