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उत्तर भारतियों की आवाज बुलंद होने का सता रहा भय
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शिवसेना की राजनीति पर मंडरा सकता है खतरा
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मरणोपरांत अभिनेता सुशांत सिंह उत्तर भारतियों के ब्रांड के रूप में उभरे
हेमन्त कुमार तिवारी, भुवनेश्वर
मरणोपरांत अभिनेता सुशांत सिंह उत्तर भारतियों के ब्रांड के रूप में उभरे हैं. उनकी मौत को लेकर सीबीआई जांच के बाद महाराष्ट्र में उपजी घटनाक्रम से लगता है कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अभिनेत्री कंगना राणावत से अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे हैं. कंगना के आफिस को तोड़कर एक संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है. यह संदेश खासकर गैर महाराष्ट्र के लोगों को, उत्तर भारतियों को दे रहे हैं उद्धव ठाकरे.
मुद्दा सिर्फ कंगना राणावात का मुखर होना नहीं, मुद्दा यह भी नहीं है कि सुशांत सिंह की मौत को लेकर जांच हो रही है, दरअसल छुपा मुद्दा शिवसेना को मिल रही खुली चुनौती है, उत्तर भारतियों की बुलंद होती आवाज है. आपको याद होगा कि महाराष्ट्र में उत्तर भारतियों पर हमला, प्रताड़ना और लोगों को कुचलना ही शिवसेना की राजनीति का आधार रहा है.
सत्तासीन होने से पहले सालभर में ऐसी एक-दो घटनाएं देखने को मिलती रहती थीं. तब सत्तासीन नहीं होने के कारण वह मनमानी करती थी और लोगों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार की होती थी, लेकिन अब परिस्थितियां इसके उलट हैं. अब सत्ता में शिवसेना ही है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर बहुत कुछ टिका हुआ है. इसलिए सीधे तौर पर शिवसेना कुछ नहीं कर पा रही है, इसलिए बीएमसी का प्रयोग कर कंगना की आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि कोई और आवाज मुखर न कर सके, खासकर उत्तर भारतियों के मुद्दे पर.
शिवसेना को यह अच्छी तरह से पता है कि यदि वह कंगना को रोकने में विफल रही, तो उत्तर भारतियों की आवाज बुलंद होने लगेगी और राजनैतिक परिस्थितियां शिवसेना के हाथों से निकल सकती हैं, क्योंकि केंद्र सरकार के रुख का उसको भलिभांति अंदाजा है. केंद्र में सत्तासीन भाजपा की पकड़ ज्यादातर उत्तर भारत के क्षेत्रों में है. इसलिए वह उत्तर भारत के लोगों के साथ कतई अन्याय होने नहीं देगी और यदि ऐसा हुआ तो महाराष्ट्र की राजनीति में उत्तर भारतियों की भूमिका महत्वपूर्ण होती दिखेगी. इसलिए कंगना को दबा कर यह संदेश देने का प्रयास किया जा रहा है कि जो कोई भी शिवसेना के खिलाफ आवाज बुलंद करेगा, उसका यही हस्र होगा.