मैं ‘आइसोलेशन’ में हूँ…
कक्ष मौन साधिका का,
साजो-सामान से भरा,
फिर भी यूँ लगता है,
एक निर्जन वन में हूँ,
मैं ‘आइसोलेशन’ में हूँ…।।
रात-दिन का एहसास नहीं,
आस-पास का आभास नहीं,
देखती रहती हूँ आईने में,
ख़ुद अपने ही नयनन में हूँ,
मैं ‘आइसोलेशन’में हूँ…।।
किस्से कितने ही आते हैं याद,
होता रहता मौन में अनुवाद,
लगता है फिर बार-बार,
भोले-भाले बचपन में हूँ,
मैं ‘आइसोलेशन’ में हूँ …।।
कुछ लेना, कुछ देकर जाना है,
ज़िन्दगी का यही अफ़साना है,
चलते ही रहना है जिंदगानी,
ऐसे ही उत्फुल्ल चिर यौवन में हूँ,
मैं ‘आइसोलेशन’ में हूँ…।।
सुनती हूँ साँसों की सरगम,
करती हूँ सहज निष्काम कर्म,
समझ ना पायी मैं स्वयं,
एकान्त में हूँ या अकेलेपन में हूँ,
मैं ‘आइसोलेशन’ में हूँ…।।
देती दस्तक कविता मो दुआर,
कागज़-कलम की दिल से मनुहार,
क्या लिखूँ , क्या न लिखूँ ?
समिधा सी ज्वलित प्रश्न-हवन में हूँ,
मैं ‘आइसोलेशन’ में हूँ…।।
दुआएँ शुभचिन्तकों की,
दामन मेरा भरती जा रही,
संजो लिया है पलकें मूँद,
गहरे किसी स्वप्न में हूँ,
मैं ‘आइसोलेशन’ में हूँ…।।
✍️ पुष्पा सिंघी , कटक