नई दिल्ली। रोमिका शर्मा, पैरा तीरंदाज शीतल देवी की जिंदगी में बेहद अहम शख्सियत बनी हुई हैं। जहां शीतल अपनी प्रतिभा से दुनिया भर का ध्यान आकर्षित कर रहीं हैं, वहीं, रोमिका चुपचाप शीतल की सहायता टीम में सबसे अभिन्न व्यक्तियों में से एक हैं।
शीतल खेलो इंडिया पैरा गेम्स (केआईपीजी) के पैरा तीरंदाजी इवेंट में कंपाउंड महिला ओपन वर्ग में प्रतिस्पर्धा कर रही हैं और फाइनल में पहले ही जगह बना चुकी हैं।
केआईपीजी द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में रोमिका ने कहा, “शीतल एशियाई पैरा खेलों के बाद कुछ समय तक प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहीं थीं, लेकिन अब मैं यहां उनके स्कोर से खुश हूं। वह अच्छे अंदाज में फाइनल में पहुंची हैं। शीतल ने मुझे बताया कि वह यहां खेलो इंडिया पैरा गेम्स की व्यवस्था से खुश है। इस प्रतियोगिता और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में कोई अंतर नहीं है।”
रोमिका, जो स्वयं एक कंपाउंड तीरंदाज है, अंतरराष्ट्रीय आयोजनों के दौरान शीतल की अनुरक्षक होती है। जेएंडके की जोड़ी इस समय जेएलएन स्टेडियम में है और उनके बीच की केमिस्ट्री को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
रोमिका ने कहा, “मुझे शीतल की अनुरक्षक बनकर बहुत खुशी महसूस हो रही है। तीन साल पहले कोच कुलदीप वेदवान के अनुरोध पर मैं उनसे नेशनल्स में मिली थी और तभी से मैं उनके करीब रहने लगी।”
पैरा-एथलीटों को उनकी दैनिक गतिविधियों के दौरान मदद करने के अलावा, एस्कॉर्ट के काम में ऑफ-फील्ड सहायता भी शामिल होती है। शीतल के साथ अपने रोजमर्रा के काम के बारे में बात करते हुए, 22 वर्षीया रोमिका ने कहा, “मैं उनके अभ्यास सत्रों की देखरेख करती हूं, तीर, सामान ले जाती हूं, इसके अलावा उसके स्ट्रेचिंग कार्य की निगरानी करती हूं और साथ ही उसके स्कोरिंग को भी सुनिश्चित करती हूं। मैदान के बाहर भी, जब भी उसे मदद की जरूरत होती है, मैं उसे खाना खिलाने के साथ-साथ उससे बात करने में भी मदद करती हूं।”
रोमिका आगे कहती है, ”मैं उसकी [शीतल] बहन की तरह महसूस करती हूं, भले ही मैं उसकी एक अच्छी दोस्त हूं। जब भी वह अकेले कहीं यात्रा कर रही होती है, तो मुझे चिंता होने लगती है कि वह क्या कर रही है। वह थोड़ी ‘जिद्दी’ होने के साथ-साथ ‘मासूम’ भी है और बहुत सारे सीरियल भी देखती है!”
रोमिका ने एशियाई पैरा गेम्स 2022 के क्षणों को भी याद किया जहां शीतल ने तीन पदक (2 स्वर्ण, 1 रजत) जीते और इतिहास रच दिया, ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली बिना हाथ वाली तीरंदाज बन गईं।
रोमिका ने कहा, “व्यक्तिगत कंपाउंड फाइनल (जहां शीतल ने स्वर्ण पदक जीता) में आखिरी तीरों के दौरान मैं उसके ठीक बगल में खड़ी थी। चारों ओर तनाव था और मुझे वहां कुलदीप सर की याद आई। लेकिन मैं उससे कहती रही, कोच सर ने तुम्हें क्या सिखाया!याद रखना।”
साभार -हिस