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यूपीएनओ ने थारू जनजाति के परंपरागत को खेलों का किया अध्ययन, होंगी प्रतियोगिताएं

  • परम्परागत खेलों को बढ़ावा देने के लिए लगाए जाएंगे प्रशिक्षण शिविर

लखनऊ, उप्र नान ओलम्पिक एसोसिएशन (यूपीएनओ) ने लखीमपुर खीरी के थारू जनजाति के परम्परागत खेलों का अध्ययन किया है। अब उन खेलों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए जाएंगे। अब आगे उन खेलों की प्रतियोगिताएं कराने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए अन्य तरीकों पर विचार करेगा। इसके लिए संस्कृति व खेल विभाग से मिलकर अक्टूबर व नवम्बर माह में प्रशिक्षण शिविर भी लगाए जाएंगे।

इस संबंध में उप्र नान ओलंपिक संघ के महासचिव एके सक्सेना ने बताया कि पूरी रिपोर्ट मंगलवार को एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय दीप सिंह (आईएएस, सेवा निवृत्त) को सौंपी गयी है। उन्होंने बताया कि टीम ने थारू क्षेत्र के घुसकिया, बरबटा, पोया, पचपेड़ा, सौनहा, सूरमा, सरियापारा, परसिया, चंदन चौकी तथा पिपरौला में रूक कर उनके प्रचलित खेलों को वहां के बच्चों, बालिकाओं व बुजुर्गों से खेलवाकर विस्तृत अध्ययन किया। उनके नृत्य आदि को भी परखा गया और रात में चौपाल लगायी गयी। इस कार्य में मुख्य विकास अधिकारी खीरी, बीडीओ पलिया और परियोजना अधिकारी पलिया का विशेष सहयोग रहा।

उन्होंने बताया कि थारू जनजाति में मारिक, मरौहा, मीनार, डेम-डेपु, तुइरा, गोटी, दो लकड़ी का डेगा, तीरंदाजी, गुलेल, एकसरा बोल्टू फेमस हैं। महासचिव यूपीएनओए एके सक्सेना ने बताया कि इन खेलों के नियमों को लिपिबद्ध कर लिया गया है। उनकी एक किताब भी तैयार की जाएगी। इसके साथ ही खेल विभाग व संस्कृति विभाग व साई के सहयोग से प्रशिक्षण शिविर लगाकर थारू जनजाति के 23 ग्रामों में इन खेलों की तीन दिवसीय प्रतियोगिता कराई जाएगी, जिसमें पांच सौ बच्चे हिस्सा लेंगे। अध्यक्ष अजय दीप सिंह ने बताया कि देश के थारू आदिवासी जनजाति के खेलों को कराने से आदिवासियों को भी देश की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकेगा।
साभार -हिस

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