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अक्षय तृतीया से शुरू होगा महाप्रभु की रथयात्रा के लिए रथों का निर्माण

  • तैयारियां पूरी, मदनमोहन की 21 दिवसीय चंदनयात्रा भी होगा आरंभ

  • श्री जगन्नाथ पुरी में अक्षया तृतीया का है अपना एक अलग महत्व

अशोक पाण्डेय, भुवनेश्वर

महाप्रभु श्री जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए रथों का निर्माण मान्यता के अनुसार इस साल भी 14 मई को अक्षय तृतीय के अवसर पर शुरू होगा. इसकी सभी तैयारियां पूरी हो गयी हैं. उल्लेखनीय है कि श्री जगन्नाथ पुरी धाम देश की एक ऐसी सांस्कृतिक नगरी है, जहां के श्रीमंदिर से जगत के नाथ भगवान श्री जगन्नाथ अपने बड़े भाई श्री बलभद्र, लाडली बहन सुभद्रा तथा भगवान सुदर्शन के संग अपने चतुर्धा देवविग्रह रुप में विराजमान होकर युगों-युगों से विश्वमानवता को शांति, एकता तथा मैत्री का पावन संदेश देने निकलते हैं. प्रतिवर्ष भगवान श्री जगन्नाथ की विश्वप्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथों के निर्माण का शुभारंभ और उनकी विजय प्रतिमा श्री मदनमोहन की 21 दिवसीय चंदनयात्रा का आरंभ वैशाख शुक्ल तृतीया अर्थात अक्षय तृतीया से ही होता है.

इसके साथ-साथ ओडिशा में खेतों में जुताई-बोआई का पवित्र कार्य भी अक्षय तृतीया से ही आरंभ होता है. महाप्रभु जगन्नाथ की धरा ओडिशा के घर-घर में अक्षय तृतीया का विशेष रुप से सांस्कृतिक, आध्यात्मिक तथा लौकिक महत्व स्पष्ट देखने का मिलता है. मान्यता है कि ओडिशा में मौसम में बदलाव भी अक्षय तृतीया से ही देखने को मिलता है. अक्षय तृतीया से ही ओडिशा में मानव-प्रकृति के अटूट संबंधों को देखने का मौका मिलता है. अक्षय तृतीया से ही ओडिशा में नये रिश्तों का श्रीगणेश होता है. नवनिर्मित गृहों में प्रवेश की पावन तिथि है अक्षय तृतीया. 2021 की अक्षय तृतीया 14 मई को है, जिसको लेकर पूरी तैयारी हो चुकी है. वैश्विक महामारी कोरोना की दूसरी लहर को ध्यान में रखकर पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने पूरे एहतियात के साथ रथों के निर्माण का कार्य तथा चंदन तालाब में भगवान श्री जगन्नाथ की विजय प्रतिमा श्री मदनमोहन की 21 दिवसीय चंदनयात्रा भी इस वर्ष भी आयोजित होने की उम्मीद जतायी है. हालांकि गत वर्ष 2020 की चंदनयात्रा कोरोना संक्रमण के चलते श्रीमंदिर प्रांगण के जलक्रीडा कुण्ड में ही आयोजित हुई थी.

पुरी में भगवान श्री जगन्नाथ के रथों के निर्माण की फाइल फोटो।

अक्षय तृतीया को युगादि तृतीया भी कहा जाता है. इसे भगवान परशुराम की जयंती के रुप में भी मनाया जाता है. अक्षय तृतीया से ही त्रैतायुग तथा सत्युग का आरंभ हुआ था. अक्षय तृतीया से ही भगवान बद्रीनाथजी का कपाट उनके दर्शन के लिए खोल दिये जाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया  महात्म्य कथा सुनाई थी. अक्षय तृतीया के दिन महोदधि स्नान का तथा अक्षय तृतीया व्रतपालनकर दान-पुण्य का विशेष महत्व है. स्कंदपुराण के वैष्णव खण्ड के वैशाख महात्म्य में अक्षय तृतीया स्नान तथा पूजन आदि का विस्तृत उल्लेख है. अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री जगन्नाथ कथा श्रवण एवं दान-पुण्य का विशिष्ट महत्व है. अक्षय तृतीया के पावन दिवस के दिन ही अनन्य श्रीकृष्ण भक्त सुदामा पाण्डेय नामक गरीब मित्र नंगे पांव चलकर द्वारिकाधीश से मिलने गया, जिसे बिना कुछ मांगे ही श्रीकृष्ण ने द्वारिकाधीश जैसा अलौकिक सुख प्रदान कर दिया था. अक्षय तृतीया के दिन पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ को चने की दाल के भोग निवेदित करने की परम्परा देखने को मिलती है. अपने पूर्वजों की आत्मा की चिर शांति हेतु अक्षय तृतीया के दिन फल फूल आदि का दान प्रत्येक सनातनी को खुले दिल से करना चाहिए. वैश्विक महामारी कोरोना की दूसरी लहर को ध्यान में रखकर प्रत्येक सनातनी भक्त को 14 मई को अपने-अपने घर पर ही अक्षय तृतीया व्रत-पूजन आदि की सलाह श्रीमंदिर प्रशासन पुरी की ओर से दी गई है.

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